अहल्याश्रम

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'मिथिलोपवने तत्र आश्रमं दृश्य राघव: पुराणं निर्जनं रम्यं पप्रच्छ मुनिपुंगवम्'।[2]
  • रामायण के वर्णन से ज्ञात होता है कि गौतम के शाप के कारण अहल्या इसी निर्जन स्थान में रह कर तपस्या के रूप में अपने पाप का प्रायश्चित कर रही थी।
  • तपस्या पूर्ण होने पर रामचन्द्रजी ने उसका अभिनन्दन किया और उसको गौतम के शाप से निवृत्ति दिलाई।
  • रघुवंश[3] में कालिदास ने भी मिथिला के निकट ही इस आश्रम का उल्लेख किया है-
'ते: शिवेषु वसतिर्गताध्वभि: सायमाश्रमतरुष्व गृह्यत येषु दीर्घतपस: परिग्रहोवासव क्षणकलत्रतां ययौ।' कालिदास ने अहल्या को शिलामयी कहा है।[4]
  • यद्यपि ऐसा कोई उल्लेख वाल्मीकि-रामायण में नहीं है।
  • जानकीहरण में कुमारदास ने भी इस आश्रम का वर्णन किया है।[5]
  • अध्यात्मरामायण में विस्तारपूर्वक अहल्याश्रम की प्राचीन कथा दी हुई है।[6]
  • एक किंवदंती के अनुसार उत्तर-पूर्व-रेलवे के कमतौल स्टेशन के निकट अहियारी ग्राम अहल्या के स्थान का बोध कराता है।
  • इसे सिंहेश्वरी भी कहते हैं।


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