खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ । बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ । महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ । लहजा था ना-शनास[1] मगर मुस्कुराया हाथ । फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी, बादे सबा[2] ने चुपके से आकर दबाया हाथ । यूँ ज़िन्दगी से मेरे मरासिम[3] हैं आज कल, हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ । मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी, अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।