वर्धमान

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:35, 7 November 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

महावीर
Mahaveer|thumb|250px
वर्धमान / महावीर स्वामी
महावीर स्वामी (वर्धमान) (जन्म- 599 ई.पू. — मृत्यु- 527 ई.पू.) विश्व के उन महात्माओं में से एक थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए राजपाट छोड़कर तप और त्याग का मार्ग अपनाया था। बचपन से ही उनमें महानता के लक्षण दृष्टिगत होने लगे थे। 30 वर्ष की आयु में वन में जाकर 'केशलोच' के साथ उन्होंने गृह त्याग कर दिया। 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में एक शाल वृक्ष के नीचे उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ और क्रमशः उनके उपदेश चतुर्दिक फैलने लगे। बिम्बिसार जैसे बड़े-बड़े राजा उनके अनुयायी बन गये। तीस वर्ष तक महावीर ने त्याग, प्रेम एवं अहिंसा का संदेश फैलाया। जैन धर्म के वे 24वें तीर्थंकर थे। वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयन्ती के रूप में मनाया जाता है।

जन्म और शिक्षा

वर्धमान (महावीर) का जन्म 599 ई.पू. वैशाली (जो अब बिहार प्रान्त) के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला था। वर्धमान चैत्र शुक्ला, 13 को सोमवार की प्रातः जन्मे थे। 5 वर्ष की आयु में उन्हें गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज दिया गया। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। लेकिन बाल्यकाल से ही वे आध्यात्मिक विषयों के बारे में सोचते रहते थे। वर्धमान के तीस वर्ष सुख-सम्पदा में व्यतीत हुए। श्वेतांबर जैनियों के अनुसार उनका विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था, जिससे उन्हें एक पुत्री प्रियदर्शन उत्पन्न हुई। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ तो लोकांतक देवों ने उस भाव को विशेष प्रश्रय दिया। मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष की दशमी के अवसर पर महावीर ने गृहत्याग कर दीक्षा ग्रहण की। उत्तरोत्तर अलौकिक उपलब्धियाँ बढ़ती गईं। सबसे पहले उन्होंने सात ऋद्धियाँ प्राप्त कीं। एक श्मशान में रुद्र के उपसर्ग को धैर्यपूर्ण ग्रहण कर अविचल रहने के कारण वे 'महातिवीर' कहलाए।

ज्ञान की प्राप्ति

30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृहत्याग दिया और एक वर्ष तक वस्त्र धारण करके भटकते रहे। तत्पश्चात् उन्होंने वस्त्र, भिक्षापात्र आदि सभी चीज़ों का त्याग कर दिया और घोर तपस्या में लीन हो गये। लगभग 12 वर्षों के कठोर तप के पश्चात् उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् उन्होंने जीवन भर घूम-घूम कर अपने मत का प्रचार किया। वैशाख, शुक्ल पक्ष की दशमी के अवसर पर ऋजुकुला नदी के तट पर स्थित जृंजग्राम में उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। देवताओं ने तरह-तरह से अपने हर्ष का उदघोष किया। इन्द्र ने कुबेर को आज्ञा दी कि वह समवसरण की रचना करे। इन्द्र स्वयं गौतम ग्राम से इन्द्रभूति ब्राह्मण को, उसके पाँच सौ शिष्यों सहित लाया। उन सबने वर्धमान का शिष्यत्व ग्रहण किया। इस प्रकार महावीर ने लगभग तीन वर्ष तक धर्म का प्रचार किया। तदुपरान्त कार्तिक, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के अन्तिम मुहूर्त में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।[1]

निधन

विश्वबंधुत्व और समानता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 527 ई.पू.72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्णा 14 (दीपावली की पूर्व संध्या) को निर्वाण को प्राप्त हुए।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्धमान चरितम, सर्ग 17-18

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः