पदार्थ तत्त्व निरूपणम: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''रघुनाथ शिरोमणि रचित पदार्थ तत्त्व निरूपणम (पदार्थखण्डनम्)''' | '''रघुनाथ शिरोमणि रचित पदार्थ तत्त्व निरूपणम (पदार्थखण्डनम्)''' | ||
*रघुनाथ शिरोमणि | *[[रघुनाथ शिरोमणि]] द्वारा वैशेषिक दर्शन पर रचित पदार्थ तत्त्व निरूपण नामक ग्रन्थ पदार्थखण्डनम तथा पदार्थविवेचनम के अपर नामों से भी ख्याति है। | ||
*रघुनाथ ने वैशेषिक के सात पदार्थों की समीक्षा की और विशेष के पदार्थत्व का खण्डन किया। | *रघुनाथ ने वैशेषिक के सात पदार्थों की समीक्षा की और विशेष के पदार्थत्व का खण्डन किया। | ||
*इसी प्रकार उन्होंने नौ द्रव्यों के स्थान पर छ: द्रव्य माने। आकाश, काल और दिशा रघुनाथ की दृष्टि में तीन अलग-अलग द्रव्य नहीं, अपितु एक ही द्रव्य के तीन रूप हैं। | *इसी प्रकार उन्होंने नौ द्रव्यों के स्थान पर छ: द्रव्य माने। आकाश, काल और दिशा रघुनाथ की दृष्टि में तीन अलग-अलग द्रव्य नहीं, अपितु एक ही द्रव्य के तीन रूप हैं। | ||
*उन्होंने परमाणु और द्वयणुक की संकल्पना का खण्डन किया और पृथक्त्व, परत्व, अपरत्व और संख्या को गुण नहीं माना। | *उन्होंने परमाणु और द्वयणुक की संकल्पना का खण्डन किया और पृथक्त्व, परत्व, अपरत्व और संख्या को गुण नहीं माना। | ||
== | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{वैशेषिक दर्शन2}} | {{वैशेषिक दर्शन2}} | ||
{{वैशेषिक दर्शन}} | {{वैशेषिक दर्शन}} | ||
{{दर्शन शास्त्र}} | {{दर्शन शास्त्र}} | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:वैशेषिक दर्शन]] | [[Category:वैशेषिक दर्शन]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 14:22, 20 August 2011
रघुनाथ शिरोमणि रचित पदार्थ तत्त्व निरूपणम (पदार्थखण्डनम्)
- रघुनाथ शिरोमणि द्वारा वैशेषिक दर्शन पर रचित पदार्थ तत्त्व निरूपण नामक ग्रन्थ पदार्थखण्डनम तथा पदार्थविवेचनम के अपर नामों से भी ख्याति है।
- रघुनाथ ने वैशेषिक के सात पदार्थों की समीक्षा की और विशेष के पदार्थत्व का खण्डन किया।
- इसी प्रकार उन्होंने नौ द्रव्यों के स्थान पर छ: द्रव्य माने। आकाश, काल और दिशा रघुनाथ की दृष्टि में तीन अलग-अलग द्रव्य नहीं, अपितु एक ही द्रव्य के तीन रूप हैं।
- उन्होंने परमाणु और द्वयणुक की संकल्पना का खण्डन किया और पृथक्त्व, परत्व, अपरत्व और संख्या को गुण नहीं माना।
संबंधित लेख