अंगुश्ताना: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''अंगुश्ताना''' सूई से सिलाई करते समय अंगुली पर पहना ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
'''अंगुश्ताना''' सूई से सिलाई करते समय अंगुली पर पहना जाता है। यह पीतल या [[लोहा|लोहे]] की एक छोटी-सी टोपी होती है, जिसमें छोटे-छोटे गड्डे बने रहते हैं।
[[चित्र:Angustana.jpg|thumb|250px|अंगुश्ताना के साथ सूई का प्रयोग]]
'''अंगुश्ताना''' सूई से सिलाई करते समय अंगुली पर पहना जाता है। यह पीतल या [[लोहा|लोहे]] की एक छोटी-सी टोपी होती है, जिसमें छोटे-छोटे गड्डे बने रहते हैं। [[महात्मा बुद्ध]] के समय में भी '[[चीवर]]' आदि सिलने के लिए [[बौद्ध]] भिक्षु अंगुश्ताना का प्रयोग किया करते थे। पिटक काल में भी इसका प्रयोग सर्वमान्य था। उस समय इसे 'प्रतिग्रह' (पटिग्गह) कहा जाता था।<ref>चुल्ल. 5-11-5</ref>


*इसे दरजी लोग कपड़ा सीते समय एक अँगुली में पहन लेते हैं, जिससे सूई चुभ न जाये।
*इसे दरजी लोग कपड़ा सीते समय एक अँगुली में पहन लेते हैं, जिससे सूई चुभ न जाये।
*अंगुश्ताना से दरजी सूई को उसका पिछला हिस्सा दबाकर आगे बढ़ाते हैं।
*अंगुश्ताना से दरजी सूई को उसका पिछला हिस्सा दबाकर आगे बढ़ाते हैं।
*कपड़ों में जब सूई से बहुत ही महीन टांके या तुरपन की जाती है, तब अंगुश्ताना का प्रयोग अधिक किया जाता है।
*कपड़ों में जब सूई से बहुत ही महीन टांके या तुरपन की जाती है, तब अंगुश्ताना का प्रयोग अधिक किया जाता है।
*पिटक काल में समाज में [[सोना|सोने]]-[[चाँदी]] के प्रतिग्रह (अंगुश्ताना) चलते थे, किंतु यह अनुमान किया जाता है कि [[बौद्ध]] भिक्षुओं के लिए [[शंख]], हट्टी, दाँत, [[बाँस]] और लकड़ी इसी प्रकार के पटिग्गह होते होंगे।<ref>{{cite web |url=http://books.google.co.in/books?id=aa30rUHD4ecC&pg=PA36&lpg=PA36&dq=%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B0&source=bl&ots=3sLyt7SFHy&sig=IdvQFSuxbzdja2Lj_G7ye6arEUQ&hl=hi&sa=X&ei=rhplUYXjJonQrQe1vYDADA&ved=0CEgQ6AEwBjgU#v=onepage&q=%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%B0&f=false|title=सीना पिरोना|accessmonthday=11 अप्रैल|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 9: Line 11:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भूले बिसरे शब्द}}
{{भूले बिसरे शब्द}}{{घरेलू उपकरण}}
[[Category:भूला-बिसरा भारत]][[Category:घरेलू उपकरण]]
[[Category:भूला-बिसरा भारत]][[Category:घरेलू उपकरण]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:55, 4 June 2013

thumb|250px|अंगुश्ताना के साथ सूई का प्रयोग अंगुश्ताना सूई से सिलाई करते समय अंगुली पर पहना जाता है। यह पीतल या लोहे की एक छोटी-सी टोपी होती है, जिसमें छोटे-छोटे गड्डे बने रहते हैं। महात्मा बुद्ध के समय में भी 'चीवर' आदि सिलने के लिए बौद्ध भिक्षु अंगुश्ताना का प्रयोग किया करते थे। पिटक काल में भी इसका प्रयोग सर्वमान्य था। उस समय इसे 'प्रतिग्रह' (पटिग्गह) कहा जाता था।[1]

  • इसे दरजी लोग कपड़ा सीते समय एक अँगुली में पहन लेते हैं, जिससे सूई चुभ न जाये।
  • अंगुश्ताना से दरजी सूई को उसका पिछला हिस्सा दबाकर आगे बढ़ाते हैं।
  • कपड़ों में जब सूई से बहुत ही महीन टांके या तुरपन की जाती है, तब अंगुश्ताना का प्रयोग अधिक किया जाता है।
  • पिटक काल में समाज में सोने-चाँदी के प्रतिग्रह (अंगुश्ताना) चलते थे, किंतु यह अनुमान किया जाता है कि बौद्ध भिक्षुओं के लिए शंख, हट्टी, दाँत, बाँस और लकड़ी इसी प्रकार के पटिग्गह होते होंगे।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चुल्ल. 5-11-5
  2. सीना पिरोना (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 अप्रैल, 2013।

संबंधित लेख