बाणभट्ट के अनमोल वचन: Difference between revisions
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* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। | * जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। | ||
* सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और | * सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत् के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है। | ||
* सज्जनों के मन थोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। | * सज्जनों के मन थोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। | ||
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। | * परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। | ||
* मनस्विता धन की गरमी से लता के समान झुलस जाती है। | * मनस्विता धन की गरमी से लता के समान झुलस जाती है। | ||
* सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और | * सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दु:ख छीर्घकालिक। | ||
* सज्जन लोग स्वभाव से ही स्वार्थसिद्धि में आलसी और परोपकार में दक्ष होते हैं। | * सज्जन लोग स्वभाव से ही स्वार्थसिद्धि में आलसी और परोपकार में दक्ष होते हैं। | ||
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी [[हृदय]] के समीप कर देती है। | * शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी [[हृदय]] के समीप कर देती है। |