विनोबा भावे के अनमोल वचन: Difference between revisions

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*ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए, जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। -
*ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए, जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। -
*स्वतंत्र वही हो सकता है, जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
*स्वतंत्र वही हो सकता है, जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
*दो धर्मो का कभी झगड़ा नहीं होता, सब धर्मो का अधर्म से ही झगड़ा होता है।
*द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। <ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/vichar/amarvani3.htm |title=सूक्तियाँ |accessmonthday=[[14 अप्रॅल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अभिव्यक्ति |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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* कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है। 
* कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए। 
* काम आरंभ करने मे देर न करो। और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा कर के ही छोड़ो।   
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं रखता, उसकी चित्त शुद्धि होती है और उसका काम सहज ही परमात्मा को अर्पित हो जाता है। 
* जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है। 
* जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की ज़रूरत नहीं होती। ज़रूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है।   
* जिसने ज्ञान को आचरण मे उतार लिया, उसने ईश्वर को ही मूर्तिमान कर लिया।   
* जब तक तकलीफ सहने की तैयारी नहीं होती तब तक फ़ायदा दिखाई दे ही नहीं सकता। फायदे की इमारत नुकसान की धूप में बनी है। 
* सच्चा बलवान तो वही होता है, जिसने अपने मन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया हो। 
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। 
* सेवा छोटी है या बड़ी, इसकी कीमत नहीं है। किस भावना से, किस दृष्टि से वह की जा रही है, उसकी कीमत है। 
* सुधारक चाहे कितना भी श्रेष्ठ पंक्ति का क्यों न हो, जब तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात नहीं सुनेगी। 
* धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है।   
* पत्थर में ईश्वर के दर्शन करना काव्य का काम है। इसके लिए व्यापक प्रेम की आवश्यकता है। ज्ञानेश्वर महाराज भैंसे की आवाज़ में भी वेद श्रवण कर सके, इसलिए वह कवि हैं। 
* निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। 
* डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं।   
* त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है।   
* नम्रता की ऊंचाई का कोई नाप नहीं होता। 
* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। 
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। 
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Latest revision as of 10:45, 2 January 2018

विनोबा भावे के अनमोल वचन

link=विनोबा भावे|right|100px

  • ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए, जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। -
  • स्वतंत्र वही हो सकता है, जो अपना काम अपने आप कर लेता है।
  • दो धर्मो का कभी झगड़ा नहीं होता, सब धर्मो का अधर्म से ही झगड़ा होता है।
  • द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। [1]
  • किसी को भी भूख-प्यास अगर न लगती तो हमें अतिथि सत्कार का मौका कैसे मिलता।
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में, यह तो स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है।
  • कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है।
  • कर्म वह आईना है जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए।
  • काम आरंभ करने मे देर न करो। और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा कर के ही छोड़ो।
  • जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं रखता, उसकी चित्त शुद्धि होती है और उसका काम सहज ही परमात्मा को अर्पित हो जाता है।
  • जहां भगवान हैं और जहां भक्त हैं वहां सब कुछ है, लेकिन भगवान को तो हमने देखा नहीं, भक्त को हम देख सकते हैं, इसलिए हमारी निगाह में भक्त की महिमा बढ़ जाती है।
  • जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की ज़रूरत नहीं होती। ज़रूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है।
  • जिसने ज्ञान को आचरण मे उतार लिया, उसने ईश्वर को ही मूर्तिमान कर लिया।
  • जब तक तकलीफ सहने की तैयारी नहीं होती तब तक फ़ायदा दिखाई दे ही नहीं सकता। फायदे की इमारत नुकसान की धूप में बनी है।
  • सच्चा बलवान तो वही होता है, जिसने अपने मन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया हो।
  • स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए।
  • सेवा छोटी है या बड़ी, इसकी कीमत नहीं है। किस भावना से, किस दृष्टि से वह की जा रही है, उसकी कीमत है।
  • सुधारक चाहे कितना भी श्रेष्ठ पंक्ति का क्यों न हो, जब तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात नहीं सुनेगी।
  • धर्म का कार्य मनुष्य के हृदय को विशाल बनाना है।
  • पत्थर में ईश्वर के दर्शन करना काव्य का काम है। इसके लिए व्यापक प्रेम की आवश्यकता है। ज्ञानेश्वर महाराज भैंसे की आवाज़ में भी वेद श्रवण कर सके, इसलिए वह कवि हैं।
  • निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है।
  • डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं।
  • त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है।
  • नम्रता की ऊंचाई का कोई नाप नहीं होता।
  • द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है।
  • मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूक्तियाँ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 14 अप्रॅल, 2011

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