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Latest revision as of 12:41, 20 April 2018

थाना अंग्रेज़ी के शब्द 'पुलिस स्टेशन' का हिन्दी पर्यायवाची है। सामान्य वार्ता में इस शब्द का प्रयोग न केवल थाने के भौगोलिक अधिकार क्षेत्र को सूचित करने के निमित्त होता है, वरन् इस शब्द के द्वारा थाना भवन का भी बोध होता है।

आविर्भाव

इस शब्द का आविर्भाव ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सुस्थिर शासन स्थापित होने पर हुआ। भारत एवं पाकिस्तान में थाना, पुलिस प्रशासन की प्रमुख इकाई है। नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों को पुलिस शासन की दृष्टि से अनेक उपक्षेत्रों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक उपक्षेत्र को थाने की संज्ञा दी जाती है।[1]

वर्गीकरण

नगरों के थानों के अंतर्गत अनेक मुहल्ले एवं ग्रामीण थाने के अंतर्गत अनेक ग्राम होते हैं। राजनीतिक, अपराध संबंधी, व्यावसायिक अथवा धार्मिक महत्ता के अनुसार थानों का उच्च अथवा निम्न श्रेणियों में वर्गीकरण किया जाता है। थाने का प्रमुख अधिकारी थानेदार कहलाता है। थाने के महत्व के अनुसार वहाँ एक अथवा एक से अधिक पुलिस सबइंस्पेक्टर नियुक्त किए जाते हैं। कुछ प्रदेशों में अत्यंत महत्वपूर्ण थानों का अध्यक्ष पुलिस इंसपेक्टर की कोटि का अधिकारी होता है।

कर्मचारी

जिन थानों के क्षेत्र विस्तृत अथवा सघन जनसंख्या वाला होले हैं, वहाँ व्यवस्था की सुविधा के लिये अधिकार क्षेत्र को उपक्षेत्रों में विभक्त कर चौकियों के अधिकार में दिया जाता है। थाना एवं चौकियों में नियुक्त कर्मचारियों द्वारा उस क्षेत्र में व्यवस्था, अपराध-निरोध, अपराधों की विवेचना आदि कार्य का संपादन किया जाता है। थानाध्यक्ष एवं उसके सहकारी सबइंसपेक्टरों के अतिरिक्त प्रत्येक थाने एवं चौकी में हेड कानिस्टबिल और कानिस्टबिल होते हैं। इनके उपयोग के लिये एक छोटा शास्त्रागार एवं अन्य साज-सज्जा भी होती है, जिससे युक्त होकर आवश्यकतानुसार वे दुस्साहसी अपराधियों अथवा विधि विरुद्ध आचरण करने वालों का सामना कर सकते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 थाना (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 15 फरवरी, 2015।

संबंधित लेख

शब्द संदर्भ कोश
काश्तकार अंतरराष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय कल्पसिद्धि गाथा उपाख्यान आख्यान शताब्दी सुई न्यग्रोध महाप्राण व्यंजन अन्तःस्थ व्यंजन ओष्ठ्य व्यंजन दन्त्य व्यंजन मूर्धन्य व्यंजन तालव्य व्यंजन कण्ठ्य व्यंजन अव्यय वत्स कुमार किम्पुरुष सत्य वाह संवर्त्तक (हल) स्थावर जरा मोहनास्त्र ऐषीक शस्त्र रात सनातन अनन्त अद्भुत वराह दण्ड विमुख कुकुर वृषध्वज (बहुविकल्पी) यायावर सत्र कुलपति चरु शूर्प यूथनाथ द्वारपाल कलाबत्तू धत्ता कड़वक क्लीब भृंग पतोहू अट्टगत्तर अट्टगम अचल प्रवृत्ति अबोहन अंत-अयम् बराबर क्षेत्र हिरण्य हरणीपर्यंत हल्लि हल्लिकार हलिक हैमन शस्य श्रणी स्ववीर्योपजीविन सुनु सूना स्थान स्थान मान्य स्थल स्थल वृत्ति स्त्रोत चतुर्थ पंचभागिकम गुणपत्र खेत्तसामिक बलिदान कृप्यगृह कुमारगदियानक कुल्यवाप कर्मान्तिक सीमा एकपुरुषिकम उत्पाद्यमानविष्टि आवात आसिहार आलि आघाट आधवाय आदाणक स्कंधावार सीत्य सिद्ध सेवा सेतुबंध सेनाभक्त सर्वमान्य सर्व-आभ्यांतर-सिद्धि सन्निधाता संग्रहत संक्रांत संकर कुल संकर ग्राम साध्य अयनांगल अट्टपतिभाग अस्वयंकृत कृषि अर्धसीतिका अक्षयनीवी अक्षपटलाध्यक्ष अक्षपटल अकृत अकृष्ट अकरदायिन अकरद 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वाहिक क्षतज क्षत क्षारण क्षार घालना घाल बिललाना बंधक झिलमिला झिलम क्षितिज यथार्थवाद ऊखा यथार्थ ऊख ऊगट खनक खन कनक लाघवी लाघविक लाघवकारी लाघव क्षिप्रहस्त छाक हवि हव्य कनिष्ठिका सुगत जनांत तुष हृति हृताधिकार दृष्टि दृष्टार्थ दृष्टांत दृष्टवाद प्रत्यक्षवाद प्रत्यगात्मा क्षिप्रकारी क्षिप्र हृत प्रत्यक्षर हृच्छूल खेह प्रत्यक्ष दृष्टवत मूलभूत दृष्टफल वायवी वायवीय कनिष्ठा वायव कनिष्ठ मौलिक दृष्ट दोष दृष्टकूट मूलिक दृष्ट विष्टि निदाघ हर्म्य अच्युत पुनीत तत्त्व मुकरी आनन्द यंत्र पद अंधता साधु यश संत दीक्षा विधु मुरमर्दन पुरुषोत्तम भव पीताम्बर हर माधव चतुर्भुज उग्र उपेन्द्र स्थाणु क्रतुध्वंसिन भर्ग नीललोहित त्रिलोचन विरूपाक्ष वामदेव (शिव) शितकिण्ठ (शिव) शितकिण्ठ गरुड़ध्वज गिरीश गोविन्द सुपर्ण श्रीकण्ठ कपर्दिन पिनाकी मृत्युंजय मृड गिरिश नागान्तक भूतेश शंकर शर्व नारायण महेश्वर (शिव) वैनतेय शूलिन पशुपति तार्क्ष्य ईश मुनि विकट मुनीन्द्र विघ्ननाशक सुमुख लोकजित गरुत्मत् मारजित भगवत तथागत धर्मराज सर्वज्ञ विनायक अगाध अर्य अर्ह अल्प इक्षु इच्छा आस्रव आस्य आहार्य आक्रन्द आकर्ष असूयक अक्षर ओज प्रकर्ष पन्थ 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