अगोरा: Difference between revisions
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Latest revision as of 05:40, 23 May 2018
अगोरा का शाब्दिक अर्थ है एकत्रित होना या आपस में मिलना। इसका प्रयोग विशेषकर युद्ध या अन्य महत्वपूर्ण कार्य के लिए लोगों को एकत्रित करने के अर्थ में होता है। क्लीस्थेनीज़ ने एथेंस की पूरी आबादी को जिन दस जातियों में बाँटा था उनमें से प्रत्येक जाति पुन कुछ दीमिजों में बँटी थी। अगोरा से तात्पर्य विभिन्न दीमिज़ों के बाजार से था। यूनान के नागरिकों का आपस में मिलना सदैव अनिवार्य समझा जाता था। ऐसे सम्मेलन के लिए एक सार्वजनिक स्थान की आवश्यकता थी, इस दृष्टि से नगर का बाजार या अगोरा सबसे उपयुक्त था। बाजार केवल क्रय-विक्रय का ही स्थान नहीं वरन् वह ऐसा मिलन स्थान भी था जहाँ लोग घूमने जाते, नगर के नवीन समाचार प्राप्त करते तथा राजनीतिक समस्याओं पर विचार करते। यहीं जनमत का रूप निर्धारित होता था। इस प्रकार अगोरा सरकार के निर्णयों पर विचार करने के लिए जनता की साधारण सभा (असेंबली) का उपयुक्त स्थल बन गया। ऐसे सम्मेलनों का नाम भी अगोड़ा पड़ा, यहाँ तक कि सैन्य शिविरों में भी अगोरा की आवश्यकता रहती थी। त्रोजन युद्ध के समय ऐसा ही एक अगोरा था जहाँ से एकियन युद्ध नेता अपनी घोषणाएँ तथा न्याय की व्यवस्था करते थे। अगोरा इतना आवश्यक समझा जाता था कि होमर ने अगोरा का न होना ही कीक्लीष दैत्यों की बर्बरता का प्रमुख लक्षण बताया तथा हेरोदोतस् ने यूनानियों और ईरानियों में सबसे बड़ा अंतर इसी बात में देखा कि ईरानियों के यहाँ कोई अगोरा नहीं था।
सैंकड़ों नगरों वाले यूनान में इस संस्था के विभिन्न स्वरूप थे। थिसाली के जनतंत्रीय नगरों में अगोरा को स्वतंत्रता का स्था कहते थे। इन नगरों में अगोरा की सदस्यता सभी के लिए न होकर केवल विशिष्ट लोगों के लिए ही थी। जनतंत्रीय नगरों में प्राचीन अगोरा जब जनसंख्या के बढ़ने के कारण सार्वजनिक सभा की बढ़ती हुई सदस्यता के लिए छोटा पड़ने लगा तब लोग अन्य स्थान पर एकत्रित होने लगे। उदाहरणार्थ ई. पू. पाँचवीं शताब्दी में एथेंस वासियों की सभा प्निक्स की पहाड़ी पर होती थी और केवल कुछ विशिष्ट अवसरों के अतिरिक्त अगोरा या बाजार में एकत्रित होना बंद हो गया। इस स्थानांतरित सभा का नाम भी अगोरा न होकर एस्लेसिया पड़ा। त्राय में अगोरा का अधिवेशन राजभवन और अपोलो तथा एथिनी के मंदिरों के निकट एक्रोपोलिस में होता था। समुद्रतट पर बसे नगरों, यथा पीलीस, स्खेरिया आदि में उसका स्थान पीसिदोन के किसी मंदिर के समुख बंदरगाह के निकट वृत्ताकार होता था। चुनाव संबंधा कार्य के अतिरिक्त दीमिज़ के प्रशासन संबंधी सभी महत्वपूर्ण निर्णय अगोरा में ही होते थे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
सं. ग्रं.- ग्लॉज, जी. दी ग्रीक सिटी ऐंड इट्स इंस्टीट्यूशंस, लंदन, 1950; ग्रीनिज, ए. एच.जे. ए हैंडबुक ऑव ग्रीक कांस्टिट्यूशनल हिस्ट्री, लंदन, 1920; मायर्स, जे.एल. दे पोलिटिकल आइडियाज़ ऑव द ग्रीक्स, लंदन, 1927।
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 73 |