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सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश), पाँच ज्ञानेद्री (कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं।
सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश), पाँच ज्ञानेद्री (कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं।
==अठारह विद्याएँ==  
==अठारह विद्याएँ==  
छः [[वेदांग]], चार [[वेद]], [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]], [[न्यायशास्त्र]], [[पुराण]], [[धर्मशास्त्र]], [[अर्थशास्त्र]], [[आयुर्वेद]], धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं।
छह [[वेदांग]], चार [[वेद]], [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]], [[न्यायशास्त्र]], [[पुराण]], [[धर्मशास्त्र]], [[अर्थशास्त्र]], [[आयुर्वेद]], धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं।
==काल के अठारह भेद==
==काल के अठारह भेद==
एक [[संवत्|संवत्सर]], पाँच [[ऋतुएँ]] और बारह [[महीने]] - ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताते हैं।
एक [[संवत्|संवत्सर]], पाँच [[ऋतुएँ]] और बारह [[महीने]] - ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताते हैं।

Latest revision as of 10:07, 9 February 2021

18
विवरण इस लेख में संख्या 18 (अठारह) संख्या के महत्त्व को बताया गया है
हिंदी अठारह
अंग्रेज़ी Eighteen
रोमन XVIII
महत्त्व महाभारत युद्ध- 18 दिन

पुराणों की संख्या- 18
गीता में अध्याय- 18
गीता में श्लोक- 18 हज़ार
इनके अतिरिक्त सिद्धियाँ, तत्त्व, विद्याएँ की भी संख्या 18 है।

संबंधित लेख अंक 7, 786

इस लेख में संख्या 18 (अठारह) संख्या के महत्त्व को बताया गया है

महाभारत में 18 का महत्त्व

गीता में 18 का महत्त्व

  • श्रीमद्भागवत गीता के अध्यायों की संख्या अठारह है।
  • श्रीमद् भागवत में कुल श्लोकों की संख्या अठारह हज़ार है।

अठारह सिद्धियाँ

अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व या वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, सृष्टि, पराकायप्रवेश, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहारकरणसामर्थ्य, भावना, अमरता, सर्वन्याय - ये अट्ठारह सिद्धियाँ मानी जाती हैं।

अठारह तत्त्व

[[चित्र:Puran-1.png|thumb|पुराण]] सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश), पाँच ज्ञानेद्री (कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं।

अठारह विद्याएँ

छह वेदांग, चार वेद, मीमांसान्यायशास्त्र, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्रआयुर्वेद, धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं।

काल के अठारह भेद

एक संवत्सर, पाँच ऋतुएँ और बारह महीने - ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताते हैं।

देवी के अठारह स्वरूप

राधाकात्यायनीकालीताराकूष्मांडालक्ष्मीसरस्वतीगायत्री, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, पार्वती, सिद्धिदात्री, भगवती, जगदम्बा के ये अठारह स्वरूप माने जाते हैं।

अठारह भुजा

विष्णुशिवब्रह्माइन्द्र आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख