अज्ञात के अनमोल वचन: Difference between revisions
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* कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है। | * कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है। | ||
* कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। | * कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। | ||
* क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है | * क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है दु:ख भी, भय भी है तिरस्कार भी, घमंड भी है और अविवेकता भी। | ||
* कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। | * कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। | ||
* केवल पढ़-लिख लेने से कोई | * केवल पढ़-लिख लेने से कोई विद्वान् नहीं होता। जो सत्य, तप, ज्ञान, अहिंसा, विद्वानों के प्रति श्रद्धा और सुशीलता को धारण करता है, वही सच्चा विद्वान् है। | ||
* किसी जगह पर विनोदी इंसान के आने से ऐसा लगता है जैसे दूसरा दीपक जला दिया गया हो। | * किसी जगह पर विनोदी इंसान के आने से ऐसा लगता है जैसे दूसरा दीपक जला दिया गया हो। | ||
* हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। | * हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। | ||
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* विद्या के लिए मोमबत्ती की तरह पिघलना चाहिए। | * विद्या के लिए मोमबत्ती की तरह पिघलना चाहिए। | ||
* वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है। | * वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है। | ||
* दूसरों को | * दूसरों को दु:ख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। | ||
* दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है। | * दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है। | ||
* दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। | * दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। | ||
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* उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता। | * उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता। | ||
* उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। | * उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। | ||
* गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही | * गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान् गुण है कि यह परोपकार का साधन है। | ||
* गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। | * गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। | ||
* ग़लती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम ग़लती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है। | * ग़लती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम ग़लती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है। | ||
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* निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। | * निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। | ||
* चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। | * चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। | ||
* तू ने स्वर्ग | * तू ने स्वर्ग औरनरकनहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है। | ||
* श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। | * श्रेष्ठ पुरुषों के मनोरथों को पूर्ण करने में श्रेष्ठ पुरुष ही समर्थ होते हैं। | ||
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