अनमोल वचन 12: Difference between revisions
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===प्रेम की शक्ति=== | ===प्रेम की शक्ति=== | ||
* | * जगत् में जो भी उन्नति वह प्रेम की शक्ति से ही हुई है। दोष बता बताकर कभी भी अच्छा काम नहीं किया जा सकता। ~ विवेकानंद | ||
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम | * प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम | ||
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय। ~ बंकिमचंद्र | * प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय। ~ बंकिमचंद्र | ||
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===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं=== | ===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं=== | ||
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से | * भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दु:ख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दु:ख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। ~ विमल मित्र | ||
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। ~ उमाशंकर जोशी | * प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। ~ [[उमाशंकर जोशी]] | ||
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। ~ खलील जिब्रान | * प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। ~ खलील जिब्रान | ||
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद्र | * प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद्र | ||
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* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। ~ तुकाराम | * यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। ~ तुकाराम | ||
* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। ~ स्वामी विवेकानंद | * पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
* असंयमी | * असंयमी विद्वान् अंधा मशालदार है। ~ शेख सादी | ||
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। ~ एमर्सन | * यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। ~ एमर्सन | ||
Line 138: | Line 138: | ||
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। ~ एकनाथ | * राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। ~ एकनाथ | ||
===प्रतिभा धैर्य की | ===प्रतिभा धैर्य की महान् क्षमता मात्र है=== | ||
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा | * असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा | ||
* जब प्रकृति को कोई | * जब प्रकृति को कोई महान् कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन | ||
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ | * प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ | ||
* प्रतिभा धैर्य की | * प्रतिभा धैर्य की महान् क्षमता मात्र है। ~ बफां | ||
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल्स | * प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल्स | ||
Line 171: | Line 171: | ||
===परोपकार संतों का सहज स्वभाव=== | ===परोपकार संतों का सहज स्वभाव=== | ||
* | * दु:ख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते हैं। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर होते रहते हैं। ~ कालिदास | ||
* सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आत्यंतिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | * सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आत्यंतिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* परोपकार संतों का सहज स्वभाव है। वे वृक्ष के समान हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ | * परोपकार संतों का सहज स्वभाव है। वे वृक्ष के समान हैं जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं। ~ एकनाथ | ||
Line 188: | Line 188: | ||
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे | * किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे | ||
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य | * परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य | ||
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए | * तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत् शुद्ध है। ~ शिव | ||
* मनुष्य सुख और | * मनुष्य सुख और दु:ख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। ~ भगवतीचरण वर्मा | ||
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष | * अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष | ||
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी | * संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी | ||
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* छिपाने के द्वारा पाप का पोषण किया जाता है और उसे जीवित रखा जाता है। ~ वर्जिल | * छिपाने के द्वारा पाप का पोषण किया जाता है और उसे जीवित रखा जाता है। ~ वर्जिल | ||
* भय और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते। ~ रामतीर्थ | * भय और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते। ~ रामतीर्थ | ||
* दूसरों के पाप गिनाने से पहले अपने पाप गिनो। ~ | * दूसरों के पाप गिनाने से पहले अपने पाप गिनो। ~ क़ाज़ीनजरुल इस्लाम | ||
===परंपरा और विद्रोह=== | ===परंपरा और विद्रोह=== | ||
Line 205: | Line 205: | ||
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड | * जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड | ||
* परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर | * परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर | ||
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी | * किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी ज़रूरत पड़ती है। ~ गेटे | ||
===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है=== | ===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है=== | ||
Line 238: | Line 238: | ||
* यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर रहने वाले नहीं। मगर यह भी सच है कि किनारे पर रहने वाले कभी तैरना नहीं सीख पाते। ~ वल्लभभाई पटेल | * यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर रहने वाले नहीं। मगर यह भी सच है कि किनारे पर रहने वाले कभी तैरना नहीं सीख पाते। ~ वल्लभभाई पटेल | ||
===पलटने और पढ़ने में बड़ा | ===पलटने और पढ़ने में बड़ा फ़र्क़ है=== | ||
* पलटने और पढ़ने में बड़ा | * पलटने और पढ़ने में बड़ा फ़र्क़ है। जो पाठक किताब को सचमुच पढ़ लेते हैं, वे सदा उसे अपने साथ महसूस कर सकते हैं। ~ राधाकृष्णन | ||
* अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने भले मित्रों के साथ न रहने की कमी नहीं खटकती। जितना ही मैं पुस्तकों का अध्ययन करता गया उतना ही अधिक मुझे उनकी विशेषताएं मालूम होती गईं। ~ महात्मा गांधी | * अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने भले मित्रों के साथ न रहने की कमी नहीं खटकती। जितना ही मैं पुस्तकों का अध्ययन करता गया उतना ही अधिक मुझे उनकी विशेषताएं मालूम होती गईं। ~ महात्मा गांधी | ||
* रोग की तकलीफ शांत करने के लिए चित्ताकर्षक और मनोरंजक पुस्तक से बढ़ कर दूसरा कोई अच्छा साधन नहीं है। ~ अज्ञात | * रोग की तकलीफ शांत करने के लिए चित्ताकर्षक और मनोरंजक पुस्तक से बढ़ कर दूसरा कोई अच्छा साधन नहीं है। ~ अज्ञात | ||
Line 251: | Line 251: | ||
===परमात्मा की प्रार्थना करने के=== | ===परमात्मा की प्रार्थना करने के=== | ||
* परमात्मा की प्रार्थना करने के लिए एकत्र होने वाले लोग हृदय से एक हो जाते हैं। ~ विनोबा | * परमात्मा की प्रार्थना करने के लिए एकत्र होने वाले लोग हृदय से एक हो जाते हैं। ~ विनोबा | ||
* भजन का फल अनंत है, | * भजन का फल अनंत है, महान् है, उसे वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता। ~ वेदव्यास | ||
* संसार में छल, प्रवंचना और हत्यारों को देखकर कभी-कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह | * संसार में छल, प्रवंचना और हत्यारों को देखकर कभी-कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत् ही नरक है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* जनता जो कुछ सीखती है वह घटनाक्रम की पाठशाला में सीखती है और दुख-दर्द ही उसका शिक्षक है। ~ जवाहरलाल नेहरू | * जनता जो कुछ सीखती है वह घटनाक्रम की पाठशाला में सीखती है और दुख-दर्द ही उसका शिक्षक है। ~ जवाहरलाल नेहरू | ||
* आत्मा को आत्मा की ही आवाज जगा सकती है। ~ प्रेमचंद | * आत्मा को आत्मा की ही आवाज जगा सकती है। ~ प्रेमचंद | ||
Line 290: | Line 290: | ||
===पाले हुए शत्रु के समान धन=== | ===पाले हुए शत्रु के समान धन=== | ||
* यदि धन अपने पास इकट्ठा हो जाए तो वह पाले हुए शत्रु के समान है। उसको छोड़ना भी कठिन हो जाता है। ~ वेदव्यास | * यदि धन अपने पास इकट्ठा हो जाए तो वह पाले हुए शत्रु के समान है। उसको छोड़ना भी कठिन हो जाता है। ~ वेदव्यास | ||
* जब धन | * जब धन ज़रूरत से ज्यादा हो जाता है तो अपने लिए निकास का मार्ग खोजता है। वह यों तो निकल न पाएगा, इसलिए जुए में जाएगा, घुड़दौड़ में जाएगा या ऐयाशी में जाएगा। ~ प्रेमचंद | ||
* जो अधिक धनवान है, वही अधिक मोहताज है। ~ शंकराचार्य | * जो अधिक धनवान है, वही अधिक मोहताज है। ~ शंकराचार्य | ||
* यह धन का ही प्रभाव है कि अपूजनीय भी पूजनीय, अगमनीय भी गमनीय और अवंदनीय भी वंदनीय हो जाता है। ~ पंचतंत्र | * यह धन का ही प्रभाव है कि अपूजनीय भी पूजनीय, अगमनीय भी गमनीय और अवंदनीय भी वंदनीय हो जाता है। ~ पंचतंत्र | ||
Line 301: | Line 301: | ||
===पृथ्वी पर तीन चीज़ें व्यर्थ हैं=== | ===पृथ्वी पर तीन चीज़ें व्यर्थ हैं=== | ||
* सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और | * सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत् के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है। ~ बालकृष्ण भट्ट | ||
* शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। ~ वाल्मीकि | * शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। ~ वाल्मीकि | ||
* वैराग्य के बिना कोई भी अपने संपूर्ण अंत:करण को परोपकार के काम में नहीं लगा सकता। ~ विवेकानंद | * वैराग्य के बिना कोई भी अपने संपूर्ण अंत:करण को परोपकार के काम में नहीं लगा सकता। ~ विवेकानंद | ||
Line 307: | Line 307: | ||
===पृथ्वी पर तीन रत्न हैं=== | ===पृथ्वी पर तीन रत्न हैं=== | ||
* यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें | * यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें ज़रूरत पड़ सकती है, संचित करते हो और जिनकी रखवाली करते हो। ~ खलील जिब्रान | ||
* मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि | * मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान् नहीं बन सकता। ~ सुभाषचंद बोस | ||
* छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं। ~ नारायण पंडित | * छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं। ~ नारायण पंडित | ||
* कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या | * कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या | ||
Line 336: | Line 336: | ||
* जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध | * जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध | ||
* सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद | * सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद | ||
* सेवा उसकी करो जिसे सेवा की | * सेवा उसकी करो जिसे सेवा की ज़रूरत है। जिसे सेवा की ज़रूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी | ||
* निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज़्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा | * निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज़्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा | ||
Line 350: | Line 350: | ||
* कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। ~ अज्ञात | * कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। ~ अज्ञात | ||
* जितने में पेट भर जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत | * जितने में पेट भर जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत | ||
* बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में | * बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी अपने वर्तमान दुखों के लिए रोया नहीं करते, अपितु वर्तमान में दु:ख के कारणों को रोका करते हैं। ~ शेक्सपियर | ||
===पापी कहना पाप है=== | ===पापी कहना पाप है=== | ||
Line 384: | Line 384: | ||
===पुरुषों को महिलाओं से बात करने का लहजा नहीं आता=== | ===पुरुषों को महिलाओं से बात करने का लहजा नहीं आता=== | ||
* मुझे लगता है कि पुरुषों का एक तबका अभी भी नहीं जानता कि महिलाओं से बात करने का लहजा क्या होना चाहिए। इसलिए इससे कोई | * मुझे लगता है कि पुरुषों का एक तबका अभी भी नहीं जानता कि महिलाओं से बात करने का लहजा क्या होना चाहिए। इसलिए इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि इंसान निएंडरथल से आज के आधुनिक रूप में सामने आ गया हो। ~ सोनम कपूर, ऐक्ट्रेस | ||
* लोग नंगा सच देखना पसंद नहीं करते, इसके बजाय उन्हें ढका हुआ झूठ ज्यादा पसंद आता है। ~ राम गोपाल वर्मा, डायरेक्टर | * लोग नंगा सच देखना पसंद नहीं करते, इसके बजाय उन्हें ढका हुआ झूठ ज्यादा पसंद आता है। ~ राम गोपाल वर्मा, डायरेक्टर | ||
* रात के डर से सूरज अपनी रोशनी देना बंद नहीं करता, तो फिर नाकामयाबी के डर से क्यों हम अपना काम करना बंद कर दें। ~ भाग्यश्री, ऐक्ट्रेस | * रात के डर से सूरज अपनी रोशनी देना बंद नहीं करता, तो फिर नाकामयाबी के डर से क्यों हम अपना काम करना बंद कर दें। ~ भाग्यश्री, ऐक्ट्रेस | ||
Line 408: | Line 408: | ||
* हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल | * हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल | ||
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। ~ अज्ञात | * जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। ~ अज्ञात | ||
* वही अच्छी प्रार्थना है जो | * वही अच्छी प्रार्थना है जो महान् और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कॉलरिज | ||
===प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है=== | ===प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है=== | ||
Line 426: | Line 426: | ||
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास | * प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास | ||
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर | * वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर | ||
* जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, | * जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन् कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है। ~ सेनेका | ||
===परिश्रमी भाग्य को भी कर देता है परास्त=== | ===परिश्रमी भाग्य को भी कर देता है परास्त=== | ||
* शास्त्र को जानने वाला भी जो पुरुष लोक व्यवहार में पटु नहीं होता, वह मूर्ख के समान है। ~ चाणक्यसूत्राणि | * शास्त्र को जानने वाला भी जो पुरुष लोक व्यवहार में पटु नहीं होता, वह मूर्ख के समान है। ~ चाणक्यसूत्राणि | ||
* | * विद्वान् तो बहुत होते हैं, पर विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले बहुत कम होते हैं। ~ सरदार वल्लभ भाई पटेल | ||
* संसार में दो ही व्यक्ति दुर्लभ हैं- उपकारी और कृतज्ञ। ~ अंगुत्तरनिकाय | * संसार में दो ही व्यक्ति दुर्लभ हैं- उपकारी और कृतज्ञ। ~ अंगुत्तरनिकाय | ||
* निरंतर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर | * निरंतर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर | ||
Line 441: | Line 441: | ||
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ भारवि | * परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ भारवि | ||
* मनुष्य परिस्थितियों के लिए सृष्टि नहीं है, बल्कि परिस्थितियां मनुष्य के लिए सृष्टि हैं। ~ डिजरायली | * मनुष्य परिस्थितियों के लिए सृष्टि नहीं है, बल्कि परिस्थितियां मनुष्य के लिए सृष्टि हैं। ~ डिजरायली | ||
* पागल बने बिना कोई | * पागल बने बिना कोई महान् नहीं हो सकता। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक पागल व्यक्ति महान् होता है। ~ सुभाषचंद्र बोस | ||
* उद्यमी व्यक्ति योग्य न हो, तो भी सफलता प्राप्त कर लेता है। ~ अज्ञात | * उद्यमी व्यक्ति योग्य न हो, तो भी सफलता प्राप्त कर लेता है। ~ अज्ञात | ||
Line 462: | Line 462: | ||
* इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार | * इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार | ||
* शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता। ~ अज्ञात | * शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता। ~ अज्ञात | ||
* संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना | * संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान् पाप है। ~ लोकमान्य तिलक | ||
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद | * मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
===फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि=== | ===फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि=== | ||
* फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है। फिर भी | * फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है। फिर भी विद्वान् और महात्मा लोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई कर्म करते हैं। ~ चाणक्य | ||
* मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनो मे अंतर रहता है। ~ अज्ञात | * मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनो मे अंतर रहता है। ~ अज्ञात | ||
* इस धरती पर कर्म करते सो साल तक जीने की इच्छा रखो क्योेंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्मनिष्ठा छोड़ कर भोग-वृत्ति रखता है वह मृत्यु का अधिकारी माना जाता है। ~ वेद | * इस धरती पर कर्म करते सो साल तक जीने की इच्छा रखो क्योेंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्मनिष्ठा छोड़ कर भोग-वृत्ति रखता है वह मृत्यु का अधिकारी माना जाता है। ~ वेद | ||
Line 485: | Line 485: | ||
* पड़ोसी से प्रेम करने वाला विपत्ति में भी सुखी रहता है, जबकि पड़ोसी से वैर ठानने वाला संपत्ति पाकर भी दुखी रहता है। ~ रामप्रताप त्रिपाठी | * पड़ोसी से प्रेम करने वाला विपत्ति में भी सुखी रहता है, जबकि पड़ोसी से वैर ठानने वाला संपत्ति पाकर भी दुखी रहता है। ~ रामप्रताप त्रिपाठी | ||
* अपना कर्तव्य करने से पहले दूसरे के कर्तव्य की आलोचना करना पाप होता है। ~ शरत्चंद्र | * अपना कर्तव्य करने से पहले दूसरे के कर्तव्य की आलोचना करना पाप होता है। ~ शरत्चंद्र | ||
* | * महान् ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद और उल्लास है। ~ जवाहर लाल नेहरू | ||
* जब तक मन नहीं जीता, राग-द्वेष शांत नहीं होते। ~ विनोबा भावे | * जब तक मन नहीं जीता, राग-द्वेष शांत नहीं होते। ~ विनोबा भावे | ||
Line 510: | Line 510: | ||
===बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है=== | ===बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है=== | ||
* | * दु:ख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना। ~ वेदव्यास | ||
* 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो। ~ डिजरायली | * 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो। ~ डिजरायली | ||
* बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। ~ बेकन | * बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। ~ बेकन | ||
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* भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित | * भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित | ||
* जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट | * जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट | ||
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की | * प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की ज़रूरत होती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक | * मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक | ||
* जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन | * जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन | ||
Line 568: | Line 568: | ||
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट | * शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट | ||
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | * दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं। वास्तव में | * बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं। वास्तव में विद्वान् वही हैं जो क्रियावान हैं। ~ नारायण पंडित | ||
==भ== | ==भ== | ||
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* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। ~ बाल्मीकि | * भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। ~ बाल्मीकि | ||
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद | * भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद | ||
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए | * यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाज़ा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ | ||
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। ~ स्वेट मार्डेन | * जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। ~ स्वेट मार्डेन | ||
Line 606: | Line 606: | ||
===भूखा मनुष्य=== | ===भूखा मनुष्य=== | ||
* जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। ~ तांड्य महाब्राह्मण | * जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। ~ तांड्य महाब्राह्मण | ||
* केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख | * केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख जगत् में ख्याति नहीं पा सकता। गुफा में छिपे रहने पर भी विद्वान् की सर्वत्र प्रसिद्धि होती है। ~ महाभारत | ||
* संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है। ~ पंचतंत्र | * संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है। ~ पंचतंत्र | ||
* अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति | * अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति | ||
Line 650: | Line 650: | ||
* भूतकाल स्वप्न है और भविष्य काल अनुमान है और वह समय जो वर्तमान है, उसे गनीमत समझ। ~ फारसी लोकोक्ति | * भूतकाल स्वप्न है और भविष्य काल अनुमान है और वह समय जो वर्तमान है, उसे गनीमत समझ। ~ फारसी लोकोक्ति | ||
* सभ्यताओं का जन्म असाधारण रूप से कठिन परिवेशों में होता है, न कि असाधारण रूप से सरल परिवेशों में। ~ आर्नोल्ड टायनबी | * सभ्यताओं का जन्म असाधारण रूप से कठिन परिवेशों में होता है, न कि असाधारण रूप से सरल परिवेशों में। ~ आर्नोल्ड टायनबी | ||
* दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में | * दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में दु:ख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है। ~ विसुद्धिमग्ग | ||
===भगवान तुम्हारे सामने है=== | ===भगवान तुम्हारे सामने है=== | ||
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* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद | * भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद | ||
* भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। ~ सत्य साईं बाबा | * भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। ~ सत्य साईं बाबा | ||
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए | * यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाज़ा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्र | ||
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। ~ इमर्सन | * जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। ~ इमर्सन | ||
Latest revision as of 16:31, 19 June 2022
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- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
अनमोल वचन |
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