अनमोल वचन 12: Difference between revisions
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* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। ~ तुकाराम | * यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। ~ तुकाराम | ||
* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। ~ स्वामी विवेकानंद | * पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। ~ स्वामी विवेकानंद | ||
* असंयमी | * असंयमी विद्वान् अंधा मशालदार है। ~ शेख सादी | ||
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। ~ एमर्सन | * यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। ~ एमर्सन | ||
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* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड | * जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड | ||
* परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर | * परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर | ||
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी | * किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी ज़रूरत पड़ती है। ~ गेटे | ||
===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है=== | ===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है=== | ||
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===पाले हुए शत्रु के समान धन=== | ===पाले हुए शत्रु के समान धन=== | ||
* यदि धन अपने पास इकट्ठा हो जाए तो वह पाले हुए शत्रु के समान है। उसको छोड़ना भी कठिन हो जाता है। ~ वेदव्यास | * यदि धन अपने पास इकट्ठा हो जाए तो वह पाले हुए शत्रु के समान है। उसको छोड़ना भी कठिन हो जाता है। ~ वेदव्यास | ||
* जब धन | * जब धन ज़रूरत से ज्यादा हो जाता है तो अपने लिए निकास का मार्ग खोजता है। वह यों तो निकल न पाएगा, इसलिए जुए में जाएगा, घुड़दौड़ में जाएगा या ऐयाशी में जाएगा। ~ प्रेमचंद | ||
* जो अधिक धनवान है, वही अधिक मोहताज है। ~ शंकराचार्य | * जो अधिक धनवान है, वही अधिक मोहताज है। ~ शंकराचार्य | ||
* यह धन का ही प्रभाव है कि अपूजनीय भी पूजनीय, अगमनीय भी गमनीय और अवंदनीय भी वंदनीय हो जाता है। ~ पंचतंत्र | * यह धन का ही प्रभाव है कि अपूजनीय भी पूजनीय, अगमनीय भी गमनीय और अवंदनीय भी वंदनीय हो जाता है। ~ पंचतंत्र | ||
Line 307: | Line 307: | ||
===पृथ्वी पर तीन रत्न हैं=== | ===पृथ्वी पर तीन रत्न हैं=== | ||
* यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें | * यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें ज़रूरत पड़ सकती है, संचित करते हो और जिनकी रखवाली करते हो। ~ खलील जिब्रान | ||
* मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान् नहीं बन सकता। ~ सुभाषचंद बोस | * मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान् नहीं बन सकता। ~ सुभाषचंद बोस | ||
* छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं। ~ नारायण पंडित | * छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं। ~ नारायण पंडित | ||
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* जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध | * जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध | ||
* सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद | * सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद | ||
* सेवा उसकी करो जिसे सेवा की | * सेवा उसकी करो जिसे सेवा की ज़रूरत है। जिसे सेवा की ज़रूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी | ||
* निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज़्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा | * निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज़्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा | ||
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===पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है=== | ===पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है=== | ||
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की | * मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। ~ स्वामी रामतीर्थ | * जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। ~ स्वामी रामतीर्थ | ||
* जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है। ~ महात्मा गांधी | * जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है। ~ महात्मा गांधी | ||
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* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास | * प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास | ||
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर | * वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर | ||
* जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, | * जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन् कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है। ~ सेनेका | ||
===परिश्रमी भाग्य को भी कर देता है परास्त=== | ===परिश्रमी भाग्य को भी कर देता है परास्त=== | ||
* शास्त्र को जानने वाला भी जो पुरुष लोक व्यवहार में पटु नहीं होता, वह मूर्ख के समान है। ~ चाणक्यसूत्राणि | * शास्त्र को जानने वाला भी जो पुरुष लोक व्यवहार में पटु नहीं होता, वह मूर्ख के समान है। ~ चाणक्यसूत्राणि | ||
* | * विद्वान् तो बहुत होते हैं, पर विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले बहुत कम होते हैं। ~ सरदार वल्लभ भाई पटेल | ||
* संसार में दो ही व्यक्ति दुर्लभ हैं- उपकारी और कृतज्ञ। ~ अंगुत्तरनिकाय | * संसार में दो ही व्यक्ति दुर्लभ हैं- उपकारी और कृतज्ञ। ~ अंगुत्तरनिकाय | ||
* निरंतर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर | * निरंतर अथक परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर | ||
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* शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता। ~ अज्ञात | * शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता। ~ अज्ञात | ||
* संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान् पाप है। ~ लोकमान्य तिलक | * संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान् पाप है। ~ लोकमान्य तिलक | ||
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक | * मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
===फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि=== | ===फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि=== | ||
* फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है। फिर भी | * फल मनुष्य के कर्म के अधीन है। बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है। फिर भी विद्वान् और महात्मा लोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई कर्म करते हैं। ~ चाणक्य | ||
* मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनो मे अंतर रहता है। ~ अज्ञात | * मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनो मे अंतर रहता है। ~ अज्ञात | ||
* इस धरती पर कर्म करते सो साल तक जीने की इच्छा रखो क्योेंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्मनिष्ठा छोड़ कर भोग-वृत्ति रखता है वह मृत्यु का अधिकारी माना जाता है। ~ वेद | * इस धरती पर कर्म करते सो साल तक जीने की इच्छा रखो क्योेंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी है। जो कर्मनिष्ठा छोड़ कर भोग-वृत्ति रखता है वह मृत्यु का अधिकारी माना जाता है। ~ वेद | ||
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* भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित | * भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित | ||
* जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट | * जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट | ||
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की | * प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की ज़रूरत होती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक | * मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की ग़लतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक | ||
* जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन | * जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन | ||
Line 568: | Line 568: | ||
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट | * शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है। ~ बाणभट्ट | ||
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | * दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं। वास्तव में | * बहुत से लोग शास्त्र पढ़कर भी मूर्ख होते हैं। वास्तव में विद्वान् वही हैं जो क्रियावान हैं। ~ नारायण पंडित | ||
==भ== | ==भ== | ||
Line 606: | Line 606: | ||
===भूखा मनुष्य=== | ===भूखा मनुष्य=== | ||
* जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। ~ तांड्य महाब्राह्मण | * जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। ~ तांड्य महाब्राह्मण | ||
* केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख जगत् में ख्याति नहीं पा सकता। गुफा में छिपे रहने पर भी | * केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख जगत् में ख्याति नहीं पा सकता। गुफा में छिपे रहने पर भी विद्वान् की सर्वत्र प्रसिद्धि होती है। ~ महाभारत | ||
* संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है। ~ पंचतंत्र | * संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है। ~ पंचतंत्र | ||
* अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति | * अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति |
Latest revision as of 16:31, 19 June 2022
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