बुरहानपुर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "पढने" to "पढ़ने")
 
(22 intermediate revisions by 6 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{tocright}}
[[चित्र:Raja-Jai-Singh-Chhatri-Burhanpur.jpg|thumb|250px|राजा जय सिंह की छतरी, बुरहानपुर]]
बुरहानपुर [[मध्य प्रदेश]] में [[ताप्ती नदी]] के किनारे पर स्थित एक नगर है। यह ख़ान देश की राजधानी था। इसको चौदहवीं शताब्दी में ख़ान देश के फ़ारुखी वंश के सुल्तान [[मलिक अहमद]] के पुत्र नसीर द्वारा बसाया गया।   
'''बुरहानपुर''' [[मध्य प्रदेश]] में [[ताप्ती नदी]] के किनारे पर स्थित [[खानदेश]] का एक प्रख्यात नगर है। यह नगर पहले ख़ानदेश की राजधानी हुआ करता था। 14वीं शताब्दी में इस नगर को ख़ानदेश के [[फ़ारूक़ी वंश]] के सुल्तान [[मलिक अहमद]] के पुत्र नसीर द्वारा बसाया गया। [[मुग़ल]] बादशाह [[शाहजहाँ]] की प्रिय बेगम [[मुमताज महल|मुमताज]] की सन 1631 में इसी स्थान पर मृत्यु हुई थी, जहाँ से उसका शव [[आगरा]] ले जाया गया था।  
==इतिहास==
==इतिहास==
[[अकबर]] ने 1599 ई. में बुरहानपुर पर अधिकार कर लिया। अकबर ने 1601 ई. में ख़ान देश को [[मुग़ल]] साम्राज्य में शामिल कर लिया। [[शाहजहाँ]] की प्रिय बेगम मुमताज़ की सन 1631 ई. में यहीं मृत्यु हुई। [[मराठा|मराठों]] ने बुरहानपुर को अनेक बार लूटा और बाद में इस प्रांत से चौथ वसूल करने का अधिकार भी मुग़ल साम्राट से प्राप्त कर लिया। बुरहानपुर कई वर्षों तक मुग़लों और मराठों की झड़पों का गवाह रहा और इसे बाद में आर्थर वेलेजली ने सन 1803 ई. में जीता। सन 1805 ई. में इसे सिंधिया को वापस कर दिया और 1861 ई. में यह [[ब्रिटिश साम्राज्य|ब्रिटिश]] सत्ता को हस्तांतरित हो गया।
[[अकबर]] ने 1599 ई. में ही बुरहानपुर पर अधिकार कर लिया था। उसने 1601 ई. में ख़ानदेश को [[मुग़ल साम्राज्य]] में शामिल किया। शाहजहाँ की प्रिय बेगम मुमताज की सन 1631 ई. में इसी स्थान पर प्रसव काल में मृत्यु हुई। [[मराठा|मराठों]] ने बुरहानपुर को अनेक बार लूटा और बाद में इस प्रांत से चौथ वसूल करने का अधिकार भी मुग़ल साम्राट से प्राप्त कर लिया। शाहजहाँ तथा [[औरंगज़ेब]] के समय में बुरहानपुर दक्कन के सूबे का मुख्य स्थान था। बुरहानपुर कई वर्षों तक मुग़लों और मराठों की झड़पों का गवाह रहा और इसे बाद में आर्थर वेलेजली ने सन् 1803 ई. में जीता। सन् 1805 ई. में इसे सिंधिया को वापस कर दिया और 1861 ई. में यह [[ब्रिटिश साम्राज्य|ब्रिटिश सत्ता]] को हस्तांतरित हो गया।
====<u>मुख्य केन्द्र</u>====
====मुख्य केन्द्र====
[[शेरशाह]] के समय बुरहानपुर की सड़क का मार्ग सीधा [[आगरा]] से जुड़ा हुआ था। दक्षिण जाने वाली सेनायें बुरहानपुर होकर जाती थी। अकबर के समय बुरहानपुर एक बड़ा, समृद्ध एवं जन-संकुल नगर था। बुरहानपुर सूती कपड़ा बनाने वाला एक मुख्य केन्द्र था। आगरा और [[सूरत]] के बीच सारा यातायात बुरहानपुर होकर जाता था।  
[[शेरशाह]] के समय बुरहानपुर की सड़क का मार्ग सीधा [[आगरा]] से जुड़ा हुआ था। दक्षिण जाने वाली सेनायें बुरहानपुर होकर जाती थी। अकबर के समय बुरहानपुर एक बड़ा, समृद्ध एवं जन-संकुल नगर था। बुरहानपुर सूती कपड़ा बनाने वाला एक मुख्य केन्द्र था। आगरा और [[सूरत]] के बीच सारा यातायात बुरहानपुर होकर जाता था। बुरहानपुर में ही [[मुग़ल]] युग की [[रहीम|अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना]] द्वारा बनवाई गई प्रसिद्ध '[[अकबरी सराय]]' भी है।
====<u>उद्योग व व्यवसाय</u>====
==स्थापत्य कला==
बिरहानपुर से आगरा को रूई भेजी जाती थी। [[अंग्रेज़]] यात्री 'पीटर मुण्डी' ने इस नगर के बारे में लिखा है कि यहाँ सभी आवश्यक वस्तुओं का भण्डार था। यहाँ बड़े-बड़े 'काफ़िले' सामान लेकर पहुँचते रहते थे। बुरहानपुर में व्यापक पैमाने पर मलमल, सोने और [[चाँदी]] की जरी बनाने और लेस बुनने का व्यापार विकसित हुआ, जो 18वीं शताब्दी में मंदा पड़ गया, फिर भी लघु स्तर पर इन पर इन वस्तुओं का उत्पादन जारी रहा।
बुरहानपुर में अनेकों स्थापत्य कला की इमारतें आज भी अपने सुन्दर वैभव के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
====अकबरी सराय====
{{main|अकबरी सराय}}
बुरहानपुर के मोहल्ला क़िला अंडा बाज़ार की ताना गुजरी मस्जिद के उत्तर में [[मुग़ल]] युग की प्रसिद्ध यादगार '''अकबरी सराय''' है। जिसे [[रहीम|अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना]] ने बनवाया था। उस समय ख़ानख़ाना सूबा [[ख़ानदेश]] के सूबेदार थे। बादशाह [[जहांगीर]] का शासन था और निर्माण उन्हीं के आदेश से हुआ था। बादशाह जहांगीर के शासन काल में इंग्लैंड के बादशाह जेम्स प्रथम का राजदूत सर टॉमस रॉ यहाँ आया था। वह इसी सराय मे ठहरा था। उस समय [[शहज़ादा परवेज़]] और उसका पिता जहांगीर शाही क़िले में मौजूद थे।
{| class="bharattable" align="right" style="margin:10px; text-align:center"
|+ <small>स्थापत्य कला की इमारतें</small>
|-
| [[चित्र:Mahal Gulara.jpg|महल गुलआरा, बुरहानपुर|200px|center]]
|-
|<small>[[महल गुलआरा]], बुरहानपुर</small>
|-
| [[चित्र:Shah Nawaz.jpg|शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, बुरहानपुर|200px|center]]
|-
|<small>[[शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा]], बुरहानपुर</small>
|-
| [[चित्र:Jama Masjid-1.jpg|जामा मस्जिद, बुरहानपुर|200px|center]]
|-
|<small>[[जामा मस्जिद बुरहानपुर|जामा मस्जिद]], बुरहानपुर</small>
|}


====महल गुलआरा====
{{main|महल गुलआरा}}'''महल गुलआरा''' बुरहानपुर से लगभग 21 किमी. की दूरी पर, [[अमरावती]] रोड पर स्थित ग्राम सिंघखेड़ा से उत्तर की दिशा में है। [[फ़ारूक़ी वंश|फ़ारूक़ी]] बादशाहों ने पहाड़ी नदी बड़ी उतावली के रास्ते में लगभग 300 फुट लंबी एक सुदृढ  दीवार बाँधकर पहाड़ी जल संग्रह कर सरोवर बनाया और जलप्रपात रूप में परिणित किया। जब [[शाहजहाँ]] अपने [[पिता]] [[जहाँगीर]] के कार्यकाल में शहर बुरहानपुर आया था, तब ही उसे  'गुलआरा' नाम की गायिका से प्रेम हो गया था। 'गुलआरा' अत्यंत सुंदर होने के साथ अच्छी गायिका भी थी। इस विशेषता से शाहजहाँ उस पर मुग्ध हुआ। वह उसे दिल-ओ-जान से चाहने लगा था। उसने विवाह कर उसे अपनी बेगम बनाया और उसे 'गुलआरा' की उपाधि प्रदान  की थी। शाहजहाँ ने करारा गाँव में उतावली नदी के किनारे दो सुंदर महलों का निर्माण  कराया और इस गांव के नाम को परिवर्तित कर बेगम के नाम से 'महल गुलआरा' कर दिया।
====शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा====
{{main|शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा}}
'''शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा''', बुरहानपुर के उत्तर में 2 किमी. के फासले पर उतावली नदी के किनारे [[काला रंग|काले]] पत्थर से निर्मित [[मुग़ल]] शासन काल का एक दर्शनीय भव्य मक़बरा है। बुरहानपुर में [[मुग़ल काल]] में निर्मित अन्य इमारतों में से इस इमारत का अपना विशेष स्थान है। शाह नवाज़ ख़ाँ का असली नाम 'इरज' था।  इसका जन्म [[अहमदाबाद]] ([[गुजरात]]) में हुआ था। यह बुरहानपुर के सूबेदार [[रहीम|अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना]] का ज्येष्ठ पुत्र था। यह मक़बरा इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात् भी अच्छी स्थिति में है। यह स्थान शहरवासियों के लिए सर्वोत्तम पर्यटन स्थल माना जाता है।
====जामा मस्जिद====
{{main|जामा मस्जिद बुरहानपुर}}
बुरहानपुर दक्षिण [[भारत]] का प्राचीन नगर है, जिसे 'नासिरउद्दीन फ़ारूक़ी' बादशाह ने सन् 1406 ई. में आबाद किया था। [[फ़ारूक़ी वंश|फ़ारूक़ी]] शासनकाल में अनेक इमारतें और मस्जिदें बनाई गई थीं। इनमें सबसे सर्वश्रेष्ठ इमारत जामा मस्जिद है, जो अपनी पायेदारी और सुंदरता की दृष्टि से सारे भारत में अपना विशेष स्थान एवं महत्व रखती है। यह मस्जिद निर्माण कला की दृष्टि से एक उत्तम उदाहरण है। प्राचीन काल में बुरहानपुर की अधिकतर आबादी उत्तर दिशा में थी। इसीलिए फ़ारूक़ी शासनकाल में बादशाह 'आजम हुमायूं' की बेगम 'रूकैया' ने 936 हिजरी सन् 1529 ई. में मोहल्ला इतवारा में एक मस्जिद बनवायी थी, जिसे [[बीबी की मस्जिद]] कहते हैं। यह शहर बुरहानपुर की पहली जामा मस्जिद थी। धीरे-धीरे शहर की आबादी में विस्तार होता गया। लोग चारों तरफ़ बसने लगे, तो यह मस्जिद शहर से एक तरफ़ पड गई, जिससे [[जुमा]] [[शुक्रवार]] की [[नमाज़]] पढ़ने के लिये लोगों को परेशानी होने लगी थी।
==उद्योग व व्यवसाय==
बिरहानपुर से आगरा को रूई भेजी जाती थी। [[अंग्रेज़]] यात्री '[[पीटर मुण्डी]]' ने इस नगर के बारे में लिखा है कि यहाँ सभी आवश्यक वस्तुओं का भण्डार था। यहाँ बड़े-बड़े 'काफ़िले' सामान लेकर पहुँचते रहते थे। बुरहानपुर में व्यापक पैमाने पर मलमल, [[सोना|सोने]] और [[चाँदी]] की जरी बनाने और लेस बुनने का व्यापार विकसित हुआ, जो 18वीं शताब्दी में मंदा पड़ गया, फिर भी लघु स्तर पर इन पर इन वस्तुओं का उत्पादन जारी रहा।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
==संबंधित लेख==
{{मध्य प्रदेश के नगर}}{{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
[[Category:मध्य प्रदेश]][[Category:मध्य प्रदेश के नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:इतिहास_कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:मध्य_प्रदेश]][[Category:ऐतिहासिक_स्थल]][[Category:इतिहास_कोश]]
__NOTOC__

Latest revision as of 07:33, 7 November 2017

thumb|250px|राजा जय सिंह की छतरी, बुरहानपुर बुरहानपुर मध्य प्रदेश में ताप्ती नदी के किनारे पर स्थित खानदेश का एक प्रख्यात नगर है। यह नगर पहले ख़ानदेश की राजधानी हुआ करता था। 14वीं शताब्दी में इस नगर को ख़ानदेश के फ़ारूक़ी वंश के सुल्तान मलिक अहमद के पुत्र नसीर द्वारा बसाया गया। मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की प्रिय बेगम मुमताज की सन 1631 में इसी स्थान पर मृत्यु हुई थी, जहाँ से उसका शव आगरा ले जाया गया था।

इतिहास

अकबर ने 1599 ई. में ही बुरहानपुर पर अधिकार कर लिया था। उसने 1601 ई. में ख़ानदेश को मुग़ल साम्राज्य में शामिल किया। शाहजहाँ की प्रिय बेगम मुमताज की सन 1631 ई. में इसी स्थान पर प्रसव काल में मृत्यु हुई। मराठों ने बुरहानपुर को अनेक बार लूटा और बाद में इस प्रांत से चौथ वसूल करने का अधिकार भी मुग़ल साम्राट से प्राप्त कर लिया। शाहजहाँ तथा औरंगज़ेब के समय में बुरहानपुर दक्कन के सूबे का मुख्य स्थान था। बुरहानपुर कई वर्षों तक मुग़लों और मराठों की झड़पों का गवाह रहा और इसे बाद में आर्थर वेलेजली ने सन् 1803 ई. में जीता। सन् 1805 ई. में इसे सिंधिया को वापस कर दिया और 1861 ई. में यह ब्रिटिश सत्ता को हस्तांतरित हो गया।

मुख्य केन्द्र

शेरशाह के समय बुरहानपुर की सड़क का मार्ग सीधा आगरा से जुड़ा हुआ था। दक्षिण जाने वाली सेनायें बुरहानपुर होकर जाती थी। अकबर के समय बुरहानपुर एक बड़ा, समृद्ध एवं जन-संकुल नगर था। बुरहानपुर सूती कपड़ा बनाने वाला एक मुख्य केन्द्र था। आगरा और सूरत के बीच सारा यातायात बुरहानपुर होकर जाता था। बुरहानपुर में ही मुग़ल युग की अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना द्वारा बनवाई गई प्रसिद्ध 'अकबरी सराय' भी है।

स्थापत्य कला

बुरहानपुर में अनेकों स्थापत्य कला की इमारतें आज भी अपने सुन्दर वैभव के लिए जानी जाती हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

अकबरी सराय

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

बुरहानपुर के मोहल्ला क़िला अंडा बाज़ार की ताना गुजरी मस्जिद के उत्तर में मुग़ल युग की प्रसिद्ध यादगार अकबरी सराय है। जिसे अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना ने बनवाया था। उस समय ख़ानख़ाना सूबा ख़ानदेश के सूबेदार थे। बादशाह जहांगीर का शासन था और निर्माण उन्हीं के आदेश से हुआ था। बादशाह जहांगीर के शासन काल में इंग्लैंड के बादशाह जेम्स प्रथम का राजदूत सर टॉमस रॉ यहाँ आया था। वह इसी सराय मे ठहरा था। उस समय शहज़ादा परवेज़ और उसका पिता जहांगीर शाही क़िले में मौजूद थे।

स्थापत्य कला की इमारतें
महल गुलआरा, बुरहानपुर|200px|center
महल गुलआरा, बुरहानपुर
शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, बुरहानपुर|200px|center
शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, बुरहानपुर
जामा मस्जिद, बुरहानपुर|200px|center
जामा मस्जिद, बुरहानपुर

महल गुलआरा

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्यमहल गुलआरा बुरहानपुर से लगभग 21 किमी. की दूरी पर, अमरावती रोड पर स्थित ग्राम सिंघखेड़ा से उत्तर की दिशा में है। फ़ारूक़ी बादशाहों ने पहाड़ी नदी बड़ी उतावली के रास्ते में लगभग 300 फुट लंबी एक सुदृढ दीवार बाँधकर पहाड़ी जल संग्रह कर सरोवर बनाया और जलप्रपात रूप में परिणित किया। जब शाहजहाँ अपने पिता जहाँगीर के कार्यकाल में शहर बुरहानपुर आया था, तब ही उसे 'गुलआरा' नाम की गायिका से प्रेम हो गया था। 'गुलआरा' अत्यंत सुंदर होने के साथ अच्छी गायिका भी थी। इस विशेषता से शाहजहाँ उस पर मुग्ध हुआ। वह उसे दिल-ओ-जान से चाहने लगा था। उसने विवाह कर उसे अपनी बेगम बनाया और उसे 'गुलआरा' की उपाधि प्रदान की थी। शाहजहाँ ने करारा गाँव में उतावली नदी के किनारे दो सुंदर महलों का निर्माण कराया और इस गांव के नाम को परिवर्तित कर बेगम के नाम से 'महल गुलआरा' कर दिया।

शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

शाह नवाज़ ख़ाँ का मक़बरा, बुरहानपुर के उत्तर में 2 किमी. के फासले पर उतावली नदी के किनारे काले पत्थर से निर्मित मुग़ल शासन काल का एक दर्शनीय भव्य मक़बरा है। बुरहानपुर में मुग़ल काल में निर्मित अन्य इमारतों में से इस इमारत का अपना विशेष स्थान है। शाह नवाज़ ख़ाँ का असली नाम 'इरज' था। इसका जन्म अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ था। यह बुरहानपुर के सूबेदार अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना का ज्येष्ठ पुत्र था। यह मक़बरा इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात् भी अच्छी स्थिति में है। यह स्थान शहरवासियों के लिए सर्वोत्तम पर्यटन स्थल माना जाता है।

जामा मस्जिद

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

बुरहानपुर दक्षिण भारत का प्राचीन नगर है, जिसे 'नासिरउद्दीन फ़ारूक़ी' बादशाह ने सन् 1406 ई. में आबाद किया था। फ़ारूक़ी शासनकाल में अनेक इमारतें और मस्जिदें बनाई गई थीं। इनमें सबसे सर्वश्रेष्ठ इमारत जामा मस्जिद है, जो अपनी पायेदारी और सुंदरता की दृष्टि से सारे भारत में अपना विशेष स्थान एवं महत्व रखती है। यह मस्जिद निर्माण कला की दृष्टि से एक उत्तम उदाहरण है। प्राचीन काल में बुरहानपुर की अधिकतर आबादी उत्तर दिशा में थी। इसीलिए फ़ारूक़ी शासनकाल में बादशाह 'आजम हुमायूं' की बेगम 'रूकैया' ने 936 हिजरी सन् 1529 ई. में मोहल्ला इतवारा में एक मस्जिद बनवायी थी, जिसे बीबी की मस्जिद कहते हैं। यह शहर बुरहानपुर की पहली जामा मस्जिद थी। धीरे-धीरे शहर की आबादी में विस्तार होता गया। लोग चारों तरफ़ बसने लगे, तो यह मस्जिद शहर से एक तरफ़ पड गई, जिससे जुमा शुक्रवार की नमाज़ पढ़ने के लिये लोगों को परेशानी होने लगी थी।

उद्योग व व्यवसाय

बिरहानपुर से आगरा को रूई भेजी जाती थी। अंग्रेज़ यात्री 'पीटर मुण्डी' ने इस नगर के बारे में लिखा है कि यहाँ सभी आवश्यक वस्तुओं का भण्डार था। यहाँ बड़े-बड़े 'काफ़िले' सामान लेकर पहुँचते रहते थे। बुरहानपुर में व्यापक पैमाने पर मलमल, सोने और चाँदी की जरी बनाने और लेस बुनने का व्यापार विकसित हुआ, जो 18वीं शताब्दी में मंदा पड़ गया, फिर भी लघु स्तर पर इन पर इन वस्तुओं का उत्पादन जारी रहा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख