कृष्णिका सीमा: Difference between revisions

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'''कृष्णिका सीमा''' किसी सतह या चट्टान की वह सीमा, जहां पर सूर्यातप का अवशोषण करके चट्टान अथवा सतह पूर्णतः संतृप्त हो जाती है तथा उनमें और अधिक गर्मी नहीं समा सकती है। उल्लेखनीय है कि इस सीमा के पश्चात् चट्टानों अथवा सतह द्वारा पार्थिव दीर्घ [[तरंग|तरंगों]] के रूप में विकरण प्रारम्भ हो जाता है।  


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Latest revision as of 06:57, 30 August 2014

कृष्णिका सीमा किसी सतह या चट्टान की वह सीमा है, जहां पर सूर्य ताप का अवशोषण करके चट्टान अथवा सतह पूर्णतः संतृप्त हो जाती है तथा उनमें और अधिक गर्मी नहीं समा सकती है। उल्लेखनीय है कि इस सीमा के पश्चात् चट्टानों अथवा सतह द्वारा पार्थिव दीर्घ तरंगों के रूप में विकरण प्रारम्भ हो जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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