एकदण्डी: Difference between revisions
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*दसनामी | *दसनामी सन्न्यासियों के प्रथम तीन में केवल [[ब्राह्मण]] ही सम्मिलित हो सकते हैं। | ||
*शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी आ सकते हैं, किन्तु दंड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं। | *शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी आ सकते हैं, किन्तु दंड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं। | ||
*इन | *इन सन्न्यासियों का दीक्षाव्रत इतना कठिन होता है कि बहुत से लोग दंड के बिना ही रहना पसन्द करते हैं। इन्हीं सन्न्यासियों को 'एकदण्डी' कहा जाता है। | ||
*एकदण्डी | *एकदण्डी सन्न्यासियों के विरुद्ध श्रीवैष्णव संन्यासी, जिनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित होते हैं, 'त्रिदण्ड' धारण करते हैं। दोनों सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें 'एकदण्डी' तथा 'त्रिदण्डी' नामों से पुकारा जाता है। | ||
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Latest revision as of 11:44, 3 August 2017
एकदण्डी शंकराचार्य द्वारा स्थापित 'दसनामी सन्न्यासियों' में से एक हैं। 'दसनामी सन्न्यासियों' में से प्रथम तीन (तीर्थ, आश्रम एवं सरस्वती) विशेष सम्मानीय माने जाते हैं।
- दसनामी सन्न्यासियों के प्रथम तीन में केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित हो सकते हैं।
- शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी आ सकते हैं, किन्तु दंड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं।
- इन सन्न्यासियों का दीक्षाव्रत इतना कठिन होता है कि बहुत से लोग दंड के बिना ही रहना पसन्द करते हैं। इन्हीं सन्न्यासियों को 'एकदण्डी' कहा जाता है।
- एकदण्डी सन्न्यासियों के विरुद्ध श्रीवैष्णव संन्यासी, जिनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित होते हैं, 'त्रिदण्ड' धारण करते हैं। दोनों सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें 'एकदण्डी' तथा 'त्रिदण्डी' नामों से पुकारा जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 141 |