मालविकाग्निमित्रम्: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "शृंगार" to "श्रृंगार")
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
{{सूचना बक्सा पुस्तक
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Blank-image-book.jpg
|चित्र=Malvikagnimitram.jpg
|चित्र का नाम=  
|चित्र का नाम=  
|लेखक=  
|लेखक=  
Line 24: Line 24:
|टिप्पणियाँ =  
|टिप्पणियाँ =  
}}
}}
'''मालविकाग्निमित्रम्''' चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[कालिदास]] द्वारा रचित एक [[संस्कृत]] ग्रंथ है जिससे [[पुष्यमित्र शुंग]] एवं उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा [[शुंग]] एवं [[यवन]] संघर्ष का उल्लेख मिलता है।
'''मालविकाग्निमित्रम्''' चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[कालिदास]] द्वारा रचित एक [[संस्कृत]] ग्रंथ है जिससे [[पुष्यमित्र शुंग]] एवं उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा [[शुंग]] एवं [[यवन]] संघर्ष का उल्लेख मिलता है।
*यह [[श्रृंगार रस]] प्रधान 5 अंकों का नाटक है।  
*यह [[श्रृंगार रस]] प्रधान 5 अंकों का नाटक है।  
*यह कालिदास की '''प्रथम नाट्य कृति''' है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता तो [[विक्रमोर्वशीय]] अथवा [[अभिज्ञानशाकुन्तलम]] में है।  
*यह कालिदास की '''प्रथम नाट्य कृति''' है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता तो [[विक्रमोर्वशीय]] अथवा [[अभिज्ञानशाकुन्तलम]] में है।  

Latest revision as of 07:57, 7 November 2017

मालविकाग्निमित्रम्
कवि महाकवि कालिदास
मूल शीर्षक मालविकाग्निमित्रम्
मुख्य पात्र अग्निमित्र और मालविका
देश भारत
भाषा संस्कृत
विधा नाटक
विशेष यह श्रृंगार रस प्रधान 5 अंकों का नाटक है।

मालविकाग्निमित्रम् चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कालिदास द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रंथ है जिससे पुष्यमित्र शुंग एवं उसके पुत्र अग्निमित्र के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा शुंग एवं यवन संघर्ष का उल्लेख मिलता है।

  • यह श्रृंगार रस प्रधान 5 अंकों का नाटक है।
  • यह कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता तो विक्रमोर्वशीय अथवा अभिज्ञानशाकुन्तलम में है।
  • विदिशा का राजा अग्निमित्र इस नाटक का नायक है तथा विदर्भ राज की भगिनी मालविका इसकी नायिका है।
  • इस नाटक में इन दोनों की प्रणय कथा है।
  • “वस्तुत: यह नाटक राजमहलों में चलने वाले प्रणय षड़्यन्त्रों का उन्मूलक है तथा इसमें नाट्यक्रिया का समग्र सूत्र विदूषक के हाथों में समर्पित है।”
  • कालिदास ने प्रारम्भ में ही सूत्रधार से कहलवाया है -

पुराणमित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम़्।
सन्त: परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढ: परप्रत्ययनेयबुद्धि:॥[1]

  • वस्तुत: यह नाटक नाट्य-साहित्य के वैभवशाली अध्याय का प्रथम पृष्ठ है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्थात पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों को बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं।

संबंधित लेख