राधा स्वामी सत्संग: Difference between revisions
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Latest revision as of 10:34, 26 June 2014
राधा स्वामी सत्संग भारत का गुह्य धार्मिक मत है। इस मत के अनुयायी हिन्दू और सिक्ख दोनों हैं। इस मत या संप्रदाय की स्थापना 1861 में शिव दयाल साहब ने की थी, जो आगरा के एक हिन्दू महाजन थे। उनका विश्वास था कि मानव अपनी उच्चतम क्षमताओं को सिर्फ ईश्वर के 'शब्द' या 'नाम' के जप द्वारा ही पूर्णता प्रदान कर सकता है।
- राधा स्वामी वाक्यखंड आत्मा के साथ ईश्वर, ईश्वर के नाम और ईश्वर से उत्पन्न अंतर्ध्वनि के सम्मिलन को दर्शाता है।
- इस संप्रदाय में सच्चे लोगों की सभा, अर्थात सत्संग को विशेष महत्व दिया जाता है।
- संप्रदाय के संस्थापक शिवदयाल साहब की मृत्यु के बाद राधा स्वामी संप्रदाय दो गुटों मे विभाजित हो गया। मुख्य समूह आगरा में ही स्थापित रहा, जबकि दूसरी शाखा की स्थापना शिवदयाल साहब के सिक्ख अनुयायी जयमाल सिंह ने की।
- इस समूह के सदस्यो को 'व्यास के राधा स्वामी' के रूप सें जाना जाता है, क्योंकि उनका मुख्यालय अमृतसर के पास व्यास नदी के तट पर है।
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