अनमोल वचन 11: Difference between revisions
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* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। ~ जयशंकर प्रसाद | * प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। ~ जयशंकर प्रसाद | ||
* जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | * जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* अचल निष्ठा ही | * अचल निष्ठा ही महान् कामों की जननी है। ~ विवेकानंद | ||
* मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद्र बोस | * मनुष्य के मन में जब किसी व्यक्ति के प्रति श्रद्धा बढ़ती है तब उसी अनुपात में स्वार्थपरता घट जाती है। ~ सुभाषचंद्र बोस | ||
* स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त | * स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है, वहां प्रेम नहीं। ~ अश्विनीकुमार दत्त | ||
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* जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ तत्वकथा | * जीव का अपवित्र मन ही प्रधान नरक है, एवं उस मन की वेदना-चिंता और भय-अशांति ही नारकीय यातना है। ~ तत्वकथा | ||
* नम्रता एवं मधुर वचन ही मनुष्य के असली आभूषण हैं। ~ तिरुवल्लुवर | * नम्रता एवं मधुर वचन ही मनुष्य के असली आभूषण हैं। ~ तिरुवल्लुवर | ||
* हम | * हम महान् व्यक्तियों के निकट पहुंच जाते हैं, जब हम नम्रता में महान् होते हैं। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर | ||
* नम्रता की ऊंचाई का कोई नाप नहीं होता। ~ विनोबा | * नम्रता की ऊंचाई का कोई नाप नहीं होता। ~ विनोबा | ||
Line 158: | Line 158: | ||
* संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। ~ जेम्स एलन | * संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। ~ जेम्स एलन | ||
* पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं। ~ अज्ञात | * पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं। ~ अज्ञात | ||
* जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक- | * जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है। ~ अश्वघोष | ||
===जीवन विकास का सिद्धांत है=== | ===जीवन विकास का सिद्धांत है=== | ||
Line 187: | Line 187: | ||
===जिसे तू मारना चाहता है=== | ===जिसे तू मारना चाहता है=== | ||
* मनुष्य की सच्ची परीक्षा विपत्ति में ही होती है। ~ महात्मा गांधी | * मनुष्य की सच्ची परीक्षा विपत्ति में ही होती है। ~ महात्मा गांधी | ||
* उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर | * उन्नत चित्त वाले पुरुषों का यह स्वभाव है कि वे बड़ों पर महान् पराक्रम दिखाते हैं, दुर्बलों पर नहीं। ~ विष्णु शर्मा | ||
* व्यक्ति के अंतर्मन को परखना चाहिए। ~ दशवैकालिक | * व्यक्ति के अंतर्मन को परखना चाहिए। ~ दशवैकालिक | ||
* हंसमुख और बुद्धिमान चेहरा ही संस्कृति का लक्ष्य है। ~ एमर्सन | * हंसमुख और बुद्धिमान चेहरा ही संस्कृति का लक्ष्य है। ~ एमर्सन | ||
Line 219: | Line 219: | ||
===जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं=== | ===जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं=== | ||
* पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और | * पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान् व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता। ~ चाणक्यनीति | ||
* न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी। ~ नीतिविदषाष्टिका | * न शत्रु न शस्त्र, न अग्नि, न विष और न दारुण रोग ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं। जितनी कड़वी वाणी। ~ नीतिविदषाष्टिका | ||
* जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। ~ सुभाषितावलि | * जल से सींचने पर पेड़ बढ़ते हैं, पत्थरों का ढेर नहीं। योग्य ही अपने अनुकूल आचरण पाकर पदार्थ बन जाता है। ~ सुभाषितावलि | ||
Line 238: | Line 238: | ||
===जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है=== | ===जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है=== | ||
* वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुर | * वाक्पटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता। ~ तिरुवल्लुर | ||
* वह विजय | * वह विजय महान् होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है। ~ स्पेनी लोकोक्ति | ||
* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | * जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म होता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी | ||
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद | * अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद | ||
Line 255: | Line 255: | ||
===झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है=== | ===झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है=== | ||
* यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है। ~ राउपाख | * यौवन साहस करता है और वृद्धावस्था विचार करती है। ~ राउपाख | ||
* सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई | * सिर मुंड़ाने या दाढ़ी रखने से ही कोई संन्यासी नहीं हो जाता। बाल के समान पतले इस मार्ग पर चलना बहुत कठिन है। ~ हाफिज | ||
* झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है। ~ विमल मित्र | * झूठ से जो पाऊंगा वह पाना नहीं खोना है और सत्य से जो खोऊंगा वह खोना नहीं पाना है। ~ विमल मित्र | ||
* स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। ~ अश्वघोष | * स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। ~ अश्वघोष | ||
* यह संभव नहीं कि कोई व्यक्ति निरंतर मुस्कराता ही रहे और वह दुष्ट भी हो। ~ शेक्सपियर | * यह संभव नहीं कि कोई व्यक्ति निरंतर मुस्कराता ही रहे और वह दुष्ट भी हो। ~ शेक्सपियर | ||
* जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की | * जो सेवा भावी है, उसे सेवा खोजने या पूछने की ज़रूरत नहीं होती। ज़रूरत पहचान कर वह स्वयं को वहां प्रस्तुत कर देता है। ~ विनोबा भावे | ||
* तू ने स्वर्ग | * तू ने स्वर्ग औरनरकनहीं देखा। समझ ले कि उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक है। ~ अज्ञात | ||
===झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने=== | ===झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने=== | ||
* झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने वाला होता है। ~ बंकिम चंद्र | * झूठ से भरा भाषण प्रजा का नाश करने वाला होता है। ~ बंकिम चंद्र | ||
* संसार मे झूठ पापो का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं। ~ काका कालेलकर | * संसार मे झूठ पापो का सरदार है। स्वार्थपरता, निर्दयता, कुटिलता, और कायरता, सब उसके साथी हैं। ~ काका कालेलकर | ||
* लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे | * लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे महान् धर्म है। वही सबका मूल है। ~ वाल्मीकि | ||
* जहां लुटेरो के चंगुल मे फंस जाने पर झूठी शपथ खाने से छुटकारा मिलता हो, वहां झूठ बोलना ही ठीक है। ऐसे मे उसे ही सत्य समझना चाहिए। ~ वेदव्यास | * जहां लुटेरो के चंगुल मे फंस जाने पर झूठी शपथ खाने से छुटकारा मिलता हो, वहां झूठ बोलना ही ठीक है। ऐसे मे उसे ही सत्य समझना चाहिए। ~ वेदव्यास | ||
* झूठ बोलने वाला कभी भी श्रेष्ठ पद को नहीं पा सकता। ~ उपनिषद | * झूठ बोलने वाला कभी भी श्रेष्ठ पद को नहीं पा सकता। ~ उपनिषद | ||
Line 373: | Line 373: | ||
* स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं। ~ अरविंद | * स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं। ~ अरविंद | ||
* दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है। ~ रस्किन | * दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है। ~ रस्किन | ||
* धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में | * धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दु:ख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दु:ख में महान् धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं। ~ वल्लभदेव | ||
===दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है=== | ===दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है=== | ||
Line 383: | Line 383: | ||
===दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो=== | ===दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो=== | ||
* दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो। ~ चाणक्य | * दूसरों की सुन लो, लेकिन अपना फैसला गुप्त रखो। ~ चाणक्य | ||
* जो | * जो महान् है, वह महान् पर ही वीरता दिखाता है। ~ नारायण पंडित | ||
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति | * अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं। ~ लोकोक्ति | ||
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी | * कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी | ||
Line 428: | Line 428: | ||
===दुख के भीतर मुक्ति है=== | ===दुख के भीतर मुक्ति है=== | ||
* | * ज़रूरी नहीं कि जो रूप-रंग में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी | ||
* जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप। ~ सुकरात | * जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप। ~ सुकरात | ||
* सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दु:ख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब | * सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दु:ख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब | ||
Line 610: | Line 610: | ||
===धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं=== | ===धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं=== | ||
* धर्म से अर्थ | * धर्म से अर्थ उत्पन्नहोता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत् का सार है। ~ वाल्मीकि | ||
* जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी | * जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी | ||
* धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद | * धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद | ||
Line 633: | Line 633: | ||
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। ~ विल्मट | * प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। ~ विल्मट | ||
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली | * धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली | ||
* | * महान् ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। ~ नेहरू | ||
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे | * जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे | ||
Line 672: | Line 672: | ||
===न मित्र न शत्रु=== | ===न मित्र न शत्रु=== | ||
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास | * न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास | ||
* | * महान् लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य | ||
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। ~ भट्टनारायण | * गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। ~ भट्टनारायण | ||
* अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। ~ विमल मित्र | * अहिंसा अच्छी चीज़ है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। ~ विमल मित्र | ||
Line 685: | Line 685: | ||
===नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है=== | ===नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है=== | ||
* किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। ~ अरस्तू | * किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। ~ अरस्तू | ||
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, | * अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान् पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास | ||
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद | * अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद | ||
* ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन | * ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन | ||
Line 703: | Line 703: | ||
* दुखदायी अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्म का दोष नहीं देखता। ~ नारायण पंडित | * दुखदायी अवस्था में मनुष्य दैव को दोष देता है। वह अपने कर्म का दोष नहीं देखता। ~ नारायण पंडित | ||
* भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता | * भिक्षु हो या राजा; जो निष्काम है, वही शोभित होता है। ~ अष्टावक्र गीता | ||
* जिस प्रकार वासवृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक- | * जिस प्रकार वासवृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है। ~ अश्वघोष | ||
===निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति=== | ===निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति=== | ||
Line 714: | Line 714: | ||
* नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। ~ नूरूद्दीन | * नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। ~ नूरूद्दीन | ||
* किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? ~ बृहस्पति नीति सार | * किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? ~ बृहस्पति नीति सार | ||
* अपने को | * अपने को विद्वान् मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है। ~ कल्हण | ||
* उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। ~ माघ | * उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। ~ माघ | ||
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली | * वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली | ||
Line 721: | Line 721: | ||
* मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम | * मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम | ||
* जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद | * जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद | ||
* बल तथा कोश से संपन्न | * बल तथा कोश से संपन्न महान् व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। ~ सोमदेव | ||
* उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात | * उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात | ||
Latest revision as of 10:52, 11 February 2021
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- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
अनमोल वचन |
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