दादूपन्थ: Difference between revisions
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:#'''नागा साधु''' - सुन्दरदासजी के द्वारा बनाये गये ये साधु ब्रह्मचारी रहकर सैनिक का काम करते थे। जयपुर राज्य की रक्षा के लिए ये रियासत की सीमा पर नव पड़ावों में रहते थे। इन्हें जयपुर दरबार से बीस हज़ार का ख़र्च मिलता था। | :#'''नागा साधु''' - सुन्दरदासजी के द्वारा बनाये गये ये साधु ब्रह्मचारी रहकर सैनिक का काम करते थे। जयपुर राज्य की रक्षा के लिए ये रियासत की सीमा पर नव पड़ावों में रहते थे। इन्हें जयपुर दरबार से बीस हज़ार का ख़र्च मिलता था। | ||
:#''' | :#'''उत्तराडो साधु''' - [[पंजाब]] में बनवारीदास के द्वारा बनाई गई इन [[उत्तराडो साधु|उत्तराडो साधुओं]] की मण्डली में प्राय: विद्वान होते हैं, जो साधुओं को पढ़ाते हैं। इनमें से कुछ वैद्य भी होते हैं। ये तीनों प्रकार के साधु जो पेशा चाहें कर सकते हैं। | ||
:#'''विरक्त''' - ये [[साधु]] न कोई पेशा करते हैं और न ही कोई द्रव्य छू सकते हैं। ये घूमते-फिरते और लिखते-पढ़ते रहते हैं। | :#'''विरक्त''' - ये [[साधु]] न कोई पेशा करते हैं और न ही कोई द्रव्य छू सकते हैं। ये घूमते-फिरते और लिखते-पढ़ते रहते हैं। | ||
:#'''खाकी साधु''' - ये भस्म लपेटे रहते हैं और भाँति-भाँति की तपस्या करते हैं। | :#'''खाकी साधु''' - ये भस्म लपेटे रहते हैं और भाँति-भाँति की तपस्या करते हैं। |
Revision as of 15:17, 19 May 2011
- महात्मा दादू दयाल के चलाये हुए धर्म को ‘दादूपन्थ’ कहा जाता है।
- यह पन्थ राजस्थान में अधिक प्रचलित है।
- दादूपन्थी या तो ब्रह्मचारी साधु होते हैं या गृहस्थ जो ‘सेवक’ कहलाते हैं।
- दादूपन्थी शब्द साधुओं के लिए ही व्यवहारिक रूप से प्रयुक्त होता है।
- इन साधुओं के पाँच प्रकार हैं-
- खालसा - इन लोगों का स्थान जयपुर से 40 मील पर 'नरायना' में है, जहाँ दादूजी (दादू दयाल) की मृत्यु हुई थी। इनमें जो विद्वान हैं, वे उपासना, अध्ययन और शिक्षण में व्यस्त रहते हैं।
- नागा साधु - सुन्दरदासजी के द्वारा बनाये गये ये साधु ब्रह्मचारी रहकर सैनिक का काम करते थे। जयपुर राज्य की रक्षा के लिए ये रियासत की सीमा पर नव पड़ावों में रहते थे। इन्हें जयपुर दरबार से बीस हज़ार का ख़र्च मिलता था।
- उत्तराडो साधु - पंजाब में बनवारीदास के द्वारा बनाई गई इन उत्तराडो साधुओं की मण्डली में प्राय: विद्वान होते हैं, जो साधुओं को पढ़ाते हैं। इनमें से कुछ वैद्य भी होते हैं। ये तीनों प्रकार के साधु जो पेशा चाहें कर सकते हैं।
- विरक्त - ये साधु न कोई पेशा करते हैं और न ही कोई द्रव्य छू सकते हैं। ये घूमते-फिरते और लिखते-पढ़ते रहते हैं।
- खाकी साधु - ये भस्म लपेटे रहते हैं और भाँति-भाँति की तपस्या करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पाण्डेय, डॉ. राजबली हिन्दू धर्मकोश, द्वितीय संस्करण-1988 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 318।