कनखल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=कनखल |लेख का नाम=कनखल (बहुविकल्पी)}} | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=कनखल |लेख का नाम=कनखल (बहुविकल्पी)}} | ||
कनखल [[हरिद्वार]] के निकट अति प्राचीन स्थान है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार दक्षप्रजापति ने अपनी राजधानी कनखल में ही वह [[यज्ञ]] किया था जिसमें अपने पति [[शिव]] का अपमान सहन न करने के कारण, दक्षकन्या [[सती]] जल कर भस्म हो गई थी। कनखल में दक्ष का मंदिर तथा यज्ञ स्थान आज भी बने हैं। [[महाभारत]] में कनखल का तीर्थरूप में वर्णन है- | कनखल [[हरिद्वार]] के निकट अति प्राचीन स्थान है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार दक्षप्रजापति ने अपनी राजधानी कनखल में ही वह [[यज्ञ]] किया था जिसमें अपने पति [[शिव]] का अपमान सहन न करने के कारण, दक्षकन्या [[सती]] जल कर भस्म हो गई थी। कनखल में दक्ष का मंदिर तथा यज्ञ स्थान आज भी बने हैं। [[महाभारत]] में कनखल का तीर्थरूप में वर्णन है- | ||
Line 16: | Line 15: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पौराणिक स्थान}} | |||
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | ||
[[Category: | [[Category:पौराणिक स्थान]][[Category:पौराणिक कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 13:00, 22 August 2011
चित्र:Disamb2.jpg कनखल | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कनखल (बहुविकल्पी) |
कनखल हरिद्वार के निकट अति प्राचीन स्थान है। पुराणों के अनुसार दक्षप्रजापति ने अपनी राजधानी कनखल में ही वह यज्ञ किया था जिसमें अपने पति शिव का अपमान सहन न करने के कारण, दक्षकन्या सती जल कर भस्म हो गई थी। कनखल में दक्ष का मंदिर तथा यज्ञ स्थान आज भी बने हैं। महाभारत में कनखल का तीर्थरूप में वर्णन है-
'कुरुक्षेत्रसमागंगा यत्र तत्रावगाहिता,
विशेषो वैकनखले प्रयागे परमं महत्।'[1]
'एते कनखला राजनृषीणांदयिता नगा:,
एषा प्रकाशते गंगा युधिष्ठिर महानदी'[2]
मेघदूत में कालिदास ने कनखल का उल्लेख मेध की अलका-यात्रा के प्रसंग में किया-
- 'तस्माद् गच्छेरनुकनखलं शैलराजावतीर्णां जह्नो: कन्यां सगरतनयस्वर्गसोपान पंक्तिम्।'[3]
हरिवंश पुराण में कनखल को पुण्यस्थान माना है, 'गंगाद्वारं कनखलं सोमो वै तत्र संस्थित:', तथा 'हरिद्वारे कुशावर्ते नील के भिल्लपर्वते, स्नात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते'। मोनियर विलियम्स के संस्कृत-अंग्रेजी कोश के अनुसार कनखल का अर्थ छोटा खला या गर्त है। कनखल के पहाड़ों के बीच के एक छोटे-से स्थान में बसा होने के कारण यह व्युत्पत्ति सार्थक भी मानी जा सकती है। स्कंदपुराण में कनखल शब्द का अर्थ इस प्रकार दर्शाया गया है- 'खल: को नाम मुक्तिं वै भजते तत्र मज्जनात्, अत: कनखलं तीर्थं नाम्ना चक्रुर्मुनीश्वरा:' अर्थात् खल या दुष्ट मनुष्य की भी यहाँ स्नान से मुक्ति हो जाती है इसीलिए इसे कनखल कहते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वन पर्व महाभारत 85,88
- ↑ वन पर्व महाभारत 135,5
- ↑ पूर्वमेघ, 52