अक्रियावाद: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{धर्म}} | {{धर्म}} | ||
[[Category: | [[Category:बौद्ध धर्म]] | ||
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]] | |||
[[Category:धर्म कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 14:01, 19 January 2012
अक्रियावाद गौतम बुद्ध के समकालीन एक प्रसिद्ध दार्शनिक मतवाद था। यह मत भारत में बुद्ध के समय कुछ अपधर्मी शिक्षकों की मान्यताओं पर आधारित था। यह सिद्धांत एक प्रकार का स्वेच्छाचारवाद था, जो व्यक्ति के पहले के कर्मो का मनुष्य के वर्तमान और भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव के पारंपरिक कार्मिक सिद्धांत को अस्वीकार करता था।
मान्यताएँ
इस मत की मान्यताओं के अनुसार, न तो कोई कर्म है, न कोई क्रिया और न कोई प्रयत्न। जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म दोनों ने अक्रियावद के मत का पूरी तरह से खंडन किया, क्योंकि ये दोनों प्रयत्न, कार्य, बल तथा वीर्य की सत्ता में विश्वास रखते हैं। इसी कारण इन्हें 'कर्मवाद' या 'क्रियावाद' कहकर सम्बोधित किया जाता है। बुद्ध के समय 'पूर्णकश्यप' नाम के एक आचार्य इस मत के प्रख्यात अनुयायी बतलाए जाते हैं।[1]
आलोचना
अक्रियावाद सदाचार या दुराचार के माध्यम से किसी मनुष्य द्वारा अपनी नियति को प्रभावित करने की संभावना से भी इनकार करता है। परिणामस्वरूप अनैतिकता के कारण इस सिद्धांत के उपदेशकों की, बौद्धों सहित सभी धार्मिक विरोधियों ने कड़ी आलोचना की। इनके विचारों की जानकारी बौद्ध और जैन साहित्य में अप्रशंसात्मक उल्लेखों के द्वारा प्राप्त होती है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हि.वि.को., प्रथम खंड, पृष्ठ 68
संबंधित लेख