कालाग्निरुद्रोपनिषद: Difference between revisions

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==कालाग्निरुद्रोपनिषद==
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Revision as of 08:11, 25 March 2010


कालाग्निरुद्रोपनिषद

  • कृष्ण यजुर्वेदीय इस उपनिषद में ब्रह्म ज्ञान के साधना भूत 'त्रिपुण्ड्र' धारण की विधि का उल्लेख किया गया है। यह उपनिषद सनत्कुमार और कालाग्निरुद्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर के रूप में है। इसमें बताया गया है कि जो मनुष्य इस उपनिषद का अध्ययन करता है, वह शिव-रूप हो जाता है। इसमें मात्र दस मन्त्र हैं।
  • सनत्कुमार के पूछने पर कालाग्निरुद्र 'त्रिपुण्ड्र-विधि' बताते हुए कहते हैं। कि 'त्रिपुण्ड्र' के लिए अग्निहोत्र की भस्म का प्रयोग किया जाता है। इस भस्म को 'सद्योजातादि' पंचब्रह्म मन्त्रों का उच्चारण करते हुए ग्रहण करना चाहिए। ये पंचब्रह्म मन्त्र- अग्निरिति भस्म, वायुरिति भस्म, खमिति भस्म, जलमिति भस्म और स्थलमिति भस्म हैं।
  • दोनों भौहों के मध्य में तीन रेखाओं द्वारा ललाट पर त्रिपुण्ड्र धारण करें। ये तीनों रेखाएं महेश्वरदेव के रूप को व्याख्यायित करती हैं। ये 'ॐ' की प्रतीक हैं। जो ब्रह्मचारी इसे धारण करता है, वह सभी पातकों से मुक्त हो जाता है; क्योंकि 'ॐ' ही सत्य है और वही शिव-रूप है।


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