साहित्य (सूक्तियाँ): Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 36: | Line 36: | ||
| अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। | | अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। | ||
| [[कमलेश्वर]] | | [[कमलेश्वर]] | ||
|- | |||
| (9) | |||
| श्रेष्ठ साहित्य मानवीय वृत्तियों का उन्नयन करता है। | |||
| [[प्रोफेसर महावीर सरन जैन]] | |||
|} | |} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
Revision as of 07:32, 3 April 2014
क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
---|---|---|
(1) | साहित्य समाज का दर्पण होता है। | |
(2) | साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) | भर्तृहरि |
(3) | सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। | अनंत गोपाल शेवड़े |
(4) | साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। | डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
(5) | जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। | प्रेमचंद |
(6) | विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। | श्री परमहंस योगानंद |
(7) | सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। | अनंत गोपाल शेवड़े |
(8) | अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। | कमलेश्वर |
(9) | श्रेष्ठ साहित्य मानवीय वृत्तियों का उन्नयन करता है। | प्रोफेसर महावीर सरन जैन |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख