सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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गिरगिट माहौल देखकर रंग बदलता है और ख़रबूज़ा, ख़रबूज़े को देखकर रंग बदलता है। | गिरगिट माहौल देखकर रंग बदलता है और ख़रबूज़ा, ख़रबूज़े को देखकर रंग बदलता है। | ||
हमारे नेताओं के भी दो ही प्रकार होते हैं और इनमें फ़र्क़ भी वही होता है जो गिरगिट और ख़रबूज़े में... | हमारे नेताओं के भी दो ही प्रकार होते हैं और इनमें फ़र्क़ भी वही होता है जो गिरगिट और ख़रबूज़े में... | ||
न जाने कितने साल पुरानी बात है कि न जाने किस देश के एक [[सुल्तान]] ने अपनी पसंद का महल बनवाने का हुक़्म दिया। बीस साल में महल बनकर तैयार हो गया। अब इतना ही काम बाक़ी रह गया था कि महल के बाहरी दरवाज़े पर सुल्तान का नाम लिख दिया जाये। अगले दिन सुल्तान महल देखने आने वाला था। | न जाने कितने साल पुरानी बात है कि न जाने किस देश के एक [[सुल्तान]] ने अपनी पसंद का महल बनवाने का हुक़्म दिया। बीस साल में महल बनकर तैयार हो गया। अब इतना ही काम बाक़ी रह गया था कि महल के बाहरी दरवाज़े पर सुल्तान का नाम लिख दिया जाये। अगले दिन सुल्तान महल देखने आने वाला था। | ||
लेकिन ये क्या ? सुबह को देखा तो पता चला कि महल के बाहरी दरवाज़े पर तो सुल्तान की बजाय 'इन्ना' का नाम लिखा हुआ है, और फिर रोज़ाना यही होने लगा कि नाम लिखा जाता था सुल्तान का लेकिन वह बदल जाता था इन्ना के नाम से...। | लेकिन ये क्या ? सुबह को देखा तो पता चला कि महल के बाहरी दरवाज़े पर तो सुल्तान की बजाय 'इन्ना' का नाम लिखा हुआ है, और फिर रोज़ाना यही होने लगा कि नाम लिखा जाता था सुल्तान का लेकिन वह बदल जाता था इन्ना के नाम से...। | ||
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"तुम लोगों को मालूम नहीं है। यह मकान मेरी जानकारी में बना था और इसकी छत उतनी मज़बूत नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो, और अधिक लोग चढ़े तो बोझ ज़्यादा हो जाएगा और छत टूट जाएगी। इसलिए मैंने सीढ़ी खींच ली... न सीढ़ी दिखेगी और न कोई और चढ़ेगा" सरपंच ने समझाया। | "तुम लोगों को मालूम नहीं है। यह मकान मेरी जानकारी में बना था और इसकी छत उतनी मज़बूत नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो, और अधिक लोग चढ़े तो बोझ ज़्यादा हो जाएगा और छत टूट जाएगी। इसलिए मैंने सीढ़ी खींच ली... न सीढ़ी दिखेगी और न कोई और चढ़ेगा" सरपंच ने समझाया। | ||
आपको ऐसा नहीं लगता कि इस गाँव का क़िस्सा असल में जगह-जगह रोज़ाना ही घटता है। कभी भीड़ भरी रेलगाड़ी में तो कभी बस में और सबसे ज़्यादा तो ज़िन्दगी में सफलता प्राप्त करने की दौड़ में। हर कोई जैसे सीढ़ी को छुपा देना चाहता है... | आपको ऐसा नहीं लगता कि इस गाँव का क़िस्सा असल में जगह-जगह रोज़ाना ही घटता है। कभी भीड़ भरी रेलगाड़ी में तो कभी बस में और सबसे ज़्यादा तो ज़िन्दगी में सफलता प्राप्त करने की दौड़ में। हर कोई जैसे सीढ़ी को छुपा देना चाहता है... | ||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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{{भारतकोश सम्पादकीय}} | {{भारतकोश सम्पादकीय}} |
Revision as of 13:20, 27 December 2016
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गिरगिट और ख़रबूज़े में क्या फ़र्क़ है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ