नरक: Difference between revisions

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[[महाभारत]] में [[परीक्षित|राजा परीक्षित]] इस संबंध में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं, तब शुकदेवजी कहते हैं कि- "राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर [[पृथ्वी]] से नीचे [[जल]] के ऊपर स्थित है। उस लोग में [[सूर्य देव|सूर्य]] के पुत्र पितृराज भगवान [[यम]] हैं। वे अपने सेवकों के सहित रहते हैं तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहाँ लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/religion-hindu/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%95-1120915028_1.htm|title=कितने और कहाँ होते हैं नरक|accessmonthday=29 जुलाई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==विभिन्न नरकों के नाम==
==विभिन्न नरकों के नाम==
'[[श्रीमद्भागवत]]' और '[[मनुस्मृति]]' के अनुसार नरकों के नाम इस प्रकार हैं-
[[श्रीमद्भागवत]], [[मनुस्मृति]] और 'गीता अमृत'<ref>गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं</ref> के अनुसार 28 नरकों के नाम इस प्रकार बताये गए हैं-
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|रौवर
|[[रौरव]]
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|[[महारौरव]]
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|कुम्भीपाक
|[[कुम्भी पाक]]
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|कालसूत्र
|[[कालसूत्र]]
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|आसिपंवन
|[[असिपत्रवन]]
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|सकूरमुख
|[[सूकर मुख]]
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|अंधकूप
|[[अन्ध कूप]]
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|मिभोजन
|[[कृमि भोजन]]
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|संदेश
|[[सन्दंश]]
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|तप्तसूर्मि
|[[तप्तसूर्मि]]
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|वज्रकंटकशल्मली
|[[वज्रकंटक शाल्मली]]
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|वैतरणी
|[[वैतरणी नदी|वैतरणी]]
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|पुयोद
|[[पूयोद]]
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|प्राणारोध
|[[प्राण रोध]]
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|विशसन
|[[विशसन]]
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|लालभक्ष
|[[लालाभक्ष]]
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|सारमेयादन
|[[सारमे पादन]]
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|क्षरकर्दम
|[[क्षारकर्दम]]
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|रक्षोगणभोजन
|[[रक्षोगणभोजन]]
|24.
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|शूलप्रोत
|[[शूलप्रोत]]
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|दंदशूक
|[[दन्दशूक]]
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|अवनिरोधन
|[[अवटनिरोधन]]
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|पर्यावर्तन
|[[पर्यावर्तन]]
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|सूचीमुख
|[[सूची मुख]]
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Revision as of 10:16, 23 November 2017

नरक पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार वह स्थान है, जहाँ पापियों की आत्मा दंड भोगने के लिए भेजी जाती है। दंड का फल भोगने के पश्चात् कर्मानुसार उनका दूसरी योनियों में जन्म होता है। स्वर्ग धरती के ऊपर है तो नरक धरती के नीचे। सभी नरक धरती के नीचे यानी पाताल भूमि में हैं। नरक, स्वर्ग का विलोमार्थक है। विश्व की प्राय: सभी जातियों और धर्मों की आदिम तथा प्राचीन मान्यताओं के अनुसार नरक एक प्रकार का मरणोत्तर अधौलोक, स्थान या अवस्था है, जहाँ किसी देवता, देवदूत या राक्षस द्वारा अधर्मी, नास्तिक, पापी और अपराधी दुष्टात्माएँ दंडित किया जाता है।

लोक

नरक को 'अधोलोक' भी कहते हैं। 'अधोलोक' यानी 'नीचे का लोक'। 'ऊर्ध्व लोक' का अर्थ है- 'ऊपर का लोक' अर्थात् 'स्वर्ग'। मध्य लोक में हमारा ब्रह्मांड है। कुछ लोग इसे कल्पना भी मानते हैं तो कुछ लोग सत्य। ऐसा प्रसिद्ध है कि 'नरक' एक लोक है, जहाँ जीव अपने पापों का फल भोगता है। पाप का फल दुःख है। 'गरुड़पुराण' आदि के ज्ञान से प्रतीत होता है कि नरक लोक बहुत दूर नीचे की ओर एक स्थान है। यमराज के दूत पापी जीव को बाँधकर ले जाते हैं और नाना प्रकार की पीड़ा देते हैं। विभिन्न प्रकार के पापों के लिए नरक रूपी कारागार में तरह-तरह के दण्ड दिये जाते हैं। जीव को ये दण्ड भोगने के लिए यातना शरीर प्राप्त होता है। जीव बहुत कष्ट पाने पर भी उस शरीर को छोड़ नहीं पाता। यह काटने-छाटने से पीड़ा तो देता है, किन्तु नष्ट नहीं होता। नरक का वर्णन संसार के सभी सम्प्रदायों में किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि नरक की अवधारणा मिथ्या नहीं है। यह मनुष्य को पाप कर्म से विरत करने के लिए मात्र डराने धमकाने की बात नहीं है।[1]

कौन जाता है नरक

  • ज्ञानी से ज्ञानी, आस्तिक से आस्तिक, नास्तिक से नास्तिक और बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ज्ञान, विचार आदि से तय नहीं होता है कि कोई व्यक्ति अच्छा है या बुरा। मनुष्य की अच्छाई उसके नैतिक बल में छिपी होती है। उसकी अच्छाई यम और नियम का पालन करने में निहित है। अच्छे लोगों में ही होश का स्तर बढ़ता है और वे देवताओं की नजर में श्रेष्ठ बन जाते हैं। लाखों लोगों के सामने अच्छे होने से भी अच्छा है, स्वयं के सामने अच्छा बनना।
  • धर्म, देवता और पितरों आदि का अपमान करने वाले, पापी, मूर्छित और अधोगा‍मी गति के व्यक्ति नरकों में जाते हैं। पापी आत्मा जीते जी तो नरक झेलती ही है, मरने के बाद भी उसके पापानुसार उसे अलग-अलग नरक में कुछ काल तक रहना पड़ता है।
  • निरंतर क्रोध में रहना, कलह करना, सदा दूसरों को धोखा देने का सोचते रहना, शराब पीना, मांस भक्षण करना, दूसरों की स्वतंत्रता का हनन करना और पाप करने के बारे में सोचते रहने से व्यक्ति का चित्त खराब होकर नीचे के लोक में गति करने लगता है और मरने के बाद वह स्वत: ही नरक में गिर जाता है। वहाँ उसका सामना यम से होता है।

पुराण वर्णन

पुराणों में 'गरुड़पुराण' का नाम सभी ने सुना है। 'नरक', 'नरकासुर', 'नरक चतुर्दशी' और 'नरक पूर्णिमा' का वर्णन पुराणों में मिलता है। 'नरकस्था' अथवा 'नरक नदी' को 'वैतरणी' कहा जाता हैं। 'नरक चतुर्दशी' के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए। इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है, जो पिता के रहते हुए भी किया जा सकता है।

नरक का स्थान

महाभारत में राजा परीक्षित इस संबंध में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं, तब शुकदेवजी कहते हैं कि- "राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोग में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम हैं। वे अपने सेवकों के सहित रहते हैं तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहाँ लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।[2]

विभिन्न नरकों के नाम

श्रीमद्भागवत, मनुस्मृति और 'गीता अमृत'[3] के अनुसार 28 नरकों के नाम इस प्रकार बताये गए हैं-

नरक के नाम
क्रम संख्या नाम क्रम संख्या नाम
1. तामिस्र 2. अन्धतामिस्र
3. रौरव 4. महारौरव
5. कुम्भी पाक 6. कालसूत्र
7. असिपत्रवन 8. सूकर मुख
9. अन्ध कूप 10. कृमि भोजन
11. सन्दंश 12. तप्तसूर्मि
13. वज्रकंटक शाल्मली 14. वैतरणी
15. पूयोद 16. प्राण रोध
17. विशसन 18. लालाभक्ष
19. सारमे पादन 20. अवीचि
21. अयःपान 22. क्षारकर्दम
23. रक्षोगणभोजन 24. शूलप्रोत
25. दन्दशूक 26. अवटनिरोधन
27. पर्यावर्तन 28. सूची मुख


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वर्ग और नरक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2013।
  2. कितने और कहाँ होते हैं नरक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 जुलाई, 2013।
  3. गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण, अध्याय 16, श्लोक 21 - त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं

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