गंगाद्वार: Difference between revisions
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'''गंगाद्वार''' [[महाभारत]] में | '''गंगाद्वार''' का [[महाभारत]] में कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है। गंगा नदी का पहाड़ी से नीचे आकर मैदान में प्रवाहित होने का स्थान 'हरद्वार' या [[हरिद्वार]]। यह कहा जाता है कि यहीं भगवान [[विष्णु]] ने [[वामन अवतार|वामन रूप]] धारण कर [[बलि]] को छला था। शैव क्षेत्र के रूप में इसकी ख्याति है।<ref>हिन्दी विश्वकोश खण्ड-3 | पृष्ठ संख्या- 343</ref> | ||
*गंगाद्वार का उल्लेख महाभारत में अनेक बार आया है। [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]]<ref>[[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 213, 6</ref> में [[अर्जुन]] का अपने द्वादश वर्षीय वनवास काल में यहाँ कुछ समय तक ठहरने का वर्णन है- | |||
<blockquote>"सगंगाद्वारमावित्य निवेशमक रोत् प्रभु:।"</blockquote> | |||
*इसी स्थान पर अर्जुन ने [[पाताल]] में प्रवेश कर उस देश की राजकन्या से [[विवाह]] किया था। | |||
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*[[महाभारत]], [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]]<ref>[[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] 97, 11</ref> में गंगद्वार में [[अगस्त्य]] की तपस्या का उल्लेख है- | |||
<blockquote>'गंगाद्वारमथागम्य भगवान्षिसत्तम:, उग्रमातिष्ठत तप: सह पल्यानुकूलया।'</blockquote> | |||
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Revision as of 13:57, 31 October 2012
गंगाद्वार का महाभारत में कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है। गंगा नदी का पहाड़ी से नीचे आकर मैदान में प्रवाहित होने का स्थान 'हरद्वार' या हरिद्वार। यह कहा जाता है कि यहीं भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर बलि को छला था। शैव क्षेत्र के रूप में इसकी ख्याति है।[1]
- गंगाद्वार का उल्लेख महाभारत में अनेक बार आया है। आदिपर्व[2] में अर्जुन का अपने द्वादश वर्षीय वनवास काल में यहाँ कुछ समय तक ठहरने का वर्णन है-
"सगंगाद्वारमावित्य निवेशमक रोत् प्रभु:।"
'एतस्या: सलिलं मर्ध्नि वृषांक: पर्यधारत् गंगाद्वारे महाभाग येन लोकस्थितिर्भवेत्।'[3]
अर्थात "शिव ने गंगाद्वार में इसी नदी का पावन जल लोक रक्षाणार्थ अपने सिर पर धारण किया था।
'गंगाद्वारमथागम्य भगवान्षिसत्तम:, उग्रमातिष्ठत तप: सह पल्यानुकूलया।'
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख