अनुच्छेद 370: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (श्रेणी:राज्य संरचना (को हटा दिया गया हैं।))
Line 33: Line 33:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत का संविधान}}{{संविधान संशोधन}}
{{भारत का संविधान}}{{संविधान संशोधन}}
[[Category:भारत का संविधान]][[Category:जम्मू और कश्मीर]][[Category:गणराज्य संरचना कोश]][[Category:राज्य संरचना]]
[[Category:भारत का संविधान]][[Category:जम्मू और कश्मीर]][[Category:गणराज्य संरचना कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 07:42, 16 July 2014

[[चित्र:Satyameva-Jayate.jpg|thumb|200px|भारत का राष्ट्रचिन्ह]] अनुच्छेद 370 का वर्णन भारत के संविधान में है। यह एक अस्थायी प्रबंध है, जिसके जरिये जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता वाले राज्य का दर्जा दिया गया है। इससे सम्बन्धित प्रावधानों की चर्चा संविधान के भाग 21 में है, जो अस्थायी, परिवर्ती और विशेष प्रबन्ध वाले राज्यों से सम्बन्धित है। इस अनुच्छेद की वजह से ही जम्मू-कश्मीर में वे क़ानून लागू नहीं किए जा सकते, जो देश के अन्य राज्यों में लागू होते हैं। देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक अनुच्छेद 370 भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रहा है। भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं। भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का 'अनुच्छेद 370' जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था।

ऐसे पड़ी नींव

ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति के साथ ही जम्मू और कश्मीर भी आज़ाद हुआ था। शुरू में इसके शासक महाराज हरीसिंह ने फैसला किया कि वह भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित न होकर स्वतंत्र रहेंगे, लेकिन 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थक आज़ाद कश्मीर सेना ने राज्य पर आक्रमण कर दिया, जिससे महाराज हरीसिंह ने राज्य को भारत में मिलाने का फैसला लिया। उस विलय पत्र पर 26 अक्टूबर, 1947 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू और महाराज हरीसिंह ने हस्ताक्षर किये। इस विलय पत्र के अनुसार- "राज्य केवल तीन विषयों- रक्षा, विदेशी मामले और संचार -पर अपना अधिकार नहीं रखेगा, बाकी सभी पर उसका नियंत्रण होगा। उस समय भारत सरकार ने आश्वासन दिया कि इस राज्य के लोग अपने स्वयं के संविधान द्वारा राज्य पर भारतीय संघ के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करेंगे। जब तक राज्य विधान सभा द्वारा भारत सरकार के फैसले पर मुहर नहीं लगाया जायेगा, तब तक भारत का संविधान राज्य के सम्बंध में केवल अंतरिम व्यवस्था कर सकता है। इसी क्रम में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया, जिसमें बताया गया कि जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी है, स्थायी नहीं।

निर्माण

भारतीय संविधान का 'अनुच्छेद 370' एक 'अस्‍थायी प्रबंध' के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है। अनुच्छेद 370 का खाका 1947 में शेख़ अब्दुल्ला ने तैयार किया था, जिन्हें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। तब शेख़ अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्‍थायी रूप में ना किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए लोहे की तरह मजबूत स्वायत्ता की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था। 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह 'सदर-ए-रियासत' और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।[1]

विशेष अधिकार

  1. 'अनुच्छेद 370' के तहत भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले क़ानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते। भारत सरकार केवल रक्षा, विदेश नीति, वित्त और संचार जैसे मामलों में ही दखल दे सकती है। इसके अलावा संघ और समवर्ती सूची के तहत आने वालों विषयों पर केंद्र सरकार क़ानून नहीं बना सकती।
  2. जम्मू-कश्मीर की नागरिकता, प्रॉपर्टी की ओनरशिप और अन्य सभी मौलिक अधिकार राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इन मामलों में किसी तरह का क़ानून बनाने से पहले संसद को राज्य की अनुमति लेनी आवश्यक है।
  3. अलग प्रॉपर्टी ओनरशिप होने की वजह से किसी दूसरे राज्य का भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर में जमीन या अन्य प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकता।
  4. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है। एक नागरिकता जम्मू-कश्मीर की तथा दूसरी भारत की।
  5. भारत के दूसरे राज्यों के नागरिक यहाँ कोई भी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सकते।[2]
  6. जम्मू-कश्मीर का अपना अलग राष्ट्र ध्वज होता है।
  7. राज्य की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का है।
  8. जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं माना जाता।
  9. भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।
  10. यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत यदि वह महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस पाकिस्तानी पुरुष को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
  11. कश्मीर में महिलाओं पर शरियत क़ानून लागू है।
  12. राज्य में अल्पसंख्यकों (हिन्दू-सिक्ख) को 16 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता।
  13. 'अनुच्छेद 370' की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।

नहीं लग सकता आपातकाल

'अनुच्छेद 370' की वजह से केंद्र जम्मू-कश्मीर राज्य पर 'अनुच्छेद 360' के तहत आर्थिक आपातकाल जैसा कोई भी क़ानून नहीं थोप सकता। राष्ट्रपति राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं कर सकते। केंद्र राज्य पर युद्ध और बाहरी आक्रमण के मामले में ही आपातकाल लगा सकता है। केंद्र सरकार राज्य के अंदर की गड़बडियों के कारण भी आपातकाल नहीं लगा सकता। उसे ऐसा करने से पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी।

बदलाव

अनुच्छेद 370 को लेकर भले ही समय-समय पर विरोध होता रहा हो, लेकिन इस अनुच्छेद में समय के साथ-साथ कई बदलाव भी किये गये हैं। जैसे-

  1. वर्ष 1965 तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनके स्थान पर ‘सदर-ए-रियासत’ तथा प्रधानमंत्री के पद होते थे। लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया।
  2. इसी तरह पहले जम्मू-कश्मीर में कोई भारतीय नागरिक यदि जाता था तो उसे अपने साथ पहचान-पत्र रखना आवश्यक होता था। लेकिन बाद में यह प्रावधान भी विरोध के कारण हटा लिया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जानिए आखिर क्या है अनुच्छेद 370 (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 19 जून, 2014।
  2. जानिए क्या है विवादित धारा 370 (हिन्दी) पत्रिका.कॉम। अभिगमन तिथि: 19 जून, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख