हसरत मुहानी: Difference between revisions
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Revision as of 09:50, 25 July 2015
हसरत मुहानी
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पूरा नाम | मौलना हसरत मुहानी |
अन्य नाम | फ़ज़्लुल्हसन |
जन्म | 1 जनवरी 1875 ई. |
जन्म भूमि | उन्नाव |
मृत्यु | 13 मई 1951 ई. |
मृत्यु स्थान | कानपुर |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'कुलियात-ए-हसरत' |
भाषा | ऊर्दू |
प्रसिद्धि | उर्दू शायर |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | हसरत ने अपना सारा जीवन कविता करने तथा स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रयत्न एवं कष्ट उठाने में व्यतीत किया। इनकी कविता का संग्रह 'कुलियात-ए-हसरत' के नाम से प्रकाशित है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
मौलना हसरत मुहानी (अंग्रेज़ी: Hasrat mohani, जन्म-1 जनवरी 1875 ई.: मृत्यु-13 मई 1951 ई.) लखनऊ के प्रसिद्ध शायर 'तस्लीम' के शिष्य थे। ये एक प्रसिद्ध कवि भी थे। इनका उपनाम नाम फ़ज़्लुल्हसन था, इनका उपनाम इतना प्रसिद्ध हुआ कि लोग इनका वास्तविक नाम भूल गए।[1]
जन्म तथा शिक्षा
हसरत मुहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 ई. में उन्नाव ज़िले के एक मुहान कस्बा में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी और उसके बाद यह अलीगढ़ चले गए। अलीगढ़ के छात्र दो दलों में बँटे हुए थे। एक दल देशभक्त था और दूसरा दल स्वार्थभक्त था। ये प्रथम दल में सम्मिलित होकर उसकी प्रथम पंक्ति में आ गए। यह तीन बार कॉलेज से निर्वासित हुए। उन्होंने सन 1903 ई. में बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके अंर्तगत इन्होंने एक पत्रिका 'उर्दुएमुअल्ला' भी निकाली और नियमित रूप से स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने लगे। यह कई बार जेल गए तथा देश के लिए बहुत कुछ बलिदान किया। उन्होंने एक खद्दर भण्डार भी खोला, जो खूब चला।
प्रसिद्ध शायर
हसरत मुहानी लखनऊ के प्रसिद्ध शायर 'तस्लीम' के शिष्य थे और मोमिन तथा नसीम लखनवी को बहुत मानते थे। हसरत ने उर्दू गजल को एक नितांत नए तथा उन्नतिशील मार्ग पर मोड़ दिया है। उर्दू कविता में स्त्रियों के प्रति जो शुद्ध और लाभप्रद दृष्टिकोण दिखलाई देता है, प्रेयसी जो सहयात्री तथा मित्र रूप में दिखाई पड़ती है तथा समय से टक्कर लेती हुई अपने प्रेमी के साथ सहदेवता तथा मित्रता दिखलाती ज्ञात होती है, वह बहुत कुछ हसरत ही की देन है।
गजलें तथा कविता
उन्होंने ने गजलों में ही शासन, समाज तथा इतिहास की बातों का ऐसे सुंदर ढंग से उपयोग किया है कि उसका प्राचीन रंग अपने स्थान पर पूरी तरह बना हुआ है। उनकी गजलें अपनी पूरी सजावट तथा सौंदर्य को बनाए रखते हुए भी ऐसा माध्यम बन गई हैं कि जीवन की सभी बातें उनमें बड़ी सुंदरता से व्यक्त की जा सकती है। उन्हें सहज में उन्नतशील गजलों का प्रर्वतक कहा जा सकता है। हसरत ने अपना सारा जीवन कविता करने तथा स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रयत्न एवं कष्ट उठाने में व्यतीत किया। साहित्य तथा राजनीति का सुंदर सम्मिलित कराना कितना कठिन है, ऐसा जब विचार उठता है, तब स्वत: हसरत की कविता पर दृष्टि जाती है। इनकी कविता का संग्रह 'कुलियात-ए-हसरत' के नाम से प्रकाशित है।[1]
निधन
हसरत मुहानी की मृत्यु 13 मई, सन 1951 ई. को कानपुर में हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 हसरत मुहानी (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 24 जुलाई, 2015।
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