चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव: Difference between revisions
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[[चैतन्य महाप्रभु]] ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने अपने मत की पुष्टि के लिए भाष्य और अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, जबकि चैतन्य ने [[ब्रह्मसूत्र]], [[गीता]] आदि पर भी भाष्य नहीं लिखे। | [[चैतन्य महाप्रभु]] ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने अपने मत की पुष्टि के लिए भाष्य और अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, जबकि चैतन्य ने [[ब्रह्मसूत्र]], [[गीता]] आदि पर भी भाष्य नहीं लिखे। | ||
यह आश्चर्यजनक बात ही है कि भाष्य आदि की रचना न करने पर भी महाप्रभु चैतन्य को एक बड़े भारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना गया। यह सम्भवत: इस कारण सम्भव हुआ कि इनका मत अत्यधिक भावात्मक रहा, अत: उसको आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि [[चैतन्य महाप्रभु]] का आचार्यात्व शास्त्र विश्लेषण पर उतना आधारित नहीं, जितना कि उनके व्यावहारिक प्रभाव पर आधारित रहा। इनके उत्तरवर्ती शिष्यों ने उस शास्त्रीय आधार के अभाव की भी पूर्ति कर दी, जो भाष्य की रचना न करने के कारण इस सम्प्रदाय में चल रहा था। [[भक्ति]] को आधार बनाकर चैतन्य ने यथापि कोई नई परम्परा नहीं चलाई, फिर भी भावविह्लता का जितना पुट चैतन्य ने भक्ति में मिलाया, उतना किसी अन्य ने नहीं। | यह आश्चर्यजनक की बात ही है कि भाष्य आदि की रचना न करने पर भी महाप्रभु चैतन्य को एक बड़े भारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना गया। यह सम्भवत: इस कारण सम्भव हुआ कि इनका मत अत्यधिक भावात्मक रहा, अत: उसको आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि [[चैतन्य महाप्रभु]] का आचार्यात्व शास्त्र विश्लेषण पर उतना आधारित नहीं, जितना कि उनके व्यावहारिक प्रभाव पर आधारित रहा। इनके उत्तरवर्ती शिष्यों ने उस शास्त्रीय आधार के अभाव की भी पूर्ति कर दी, जो भाष्य की रचना न करने के कारण इस सम्प्रदाय में चल रहा था। [[भक्ति]] को आधार बनाकर चैतन्य ने यथापि कोई नई परम्परा नहीं चलाई, फिर भी भावविह्लता का जितना पुट चैतन्य ने भक्ति में मिलाया, उतना किसी अन्य ने नहीं। | ||
[[वल्लभाचार्य]] आदि ने [[धर्म]] के और [[भक्ति]] के विधानात्मक पक्ष को महत्त्व दिया था, जबकि चैतन्य ने भावात्मक पक्ष को प्रश्रय दिया। चैतन्य की विचारधारा पर पांचरात्र साहित्य, [[भागवत]], [[पुराण]] तथा [[गीत गोविन्द]] का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। विभिन्न रूपों में प्रचलित और लिपिबद्ध [[कृष्ण]] की [[कथा]] ने उनके व्यक्तित्व को भीतरी भाग तक अवश्य ही छुआ होगा। | [[वल्लभाचार्य]] आदि ने [[धर्म]] के और [[भक्ति]] के विधानात्मक पक्ष को महत्त्व दिया था, जबकि चैतन्य ने भावात्मक पक्ष को प्रश्रय दिया। चैतन्य की विचारधारा पर पांचरात्र साहित्य, [[भागवत]], [[पुराण]] तथा [[गीत गोविन्द]] का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। विभिन्न रूपों में प्रचलित और लिपिबद्ध [[कृष्ण]] की [[कथा]] ने उनके व्यक्तित्व को भीतरी भाग तक अवश्य ही छुआ होगा। |
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[[चित्र:Chetanya-Mahaprabhu-2.jpg|thumb|300px|चैतन्य महाप्रभु मन्दिर, गोवर्धन, मथुरा]] चैतन्य महाप्रभु ने 'अचिन्त्य भेदाभेदवाद' का प्रवर्तन किया, किन्तु प्रामाणिक रूप से इनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता। इनके कुछ शिष्यों के मतानुसार 'दशमूल श्लोक' इनके रचे हुए हैं। अन्य सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने अपने मत की पुष्टि के लिए भाष्य और अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, जबकि चैतन्य ने ब्रह्मसूत्र, गीता आदि पर भी भाष्य नहीं लिखे।
यह आश्चर्यजनक की बात ही है कि भाष्य आदि की रचना न करने पर भी महाप्रभु चैतन्य को एक बड़े भारी सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना गया। यह सम्भवत: इस कारण सम्भव हुआ कि इनका मत अत्यधिक भावात्मक रहा, अत: उसको आम लोगों का समर्थन प्राप्त हो गया। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि चैतन्य महाप्रभु का आचार्यात्व शास्त्र विश्लेषण पर उतना आधारित नहीं, जितना कि उनके व्यावहारिक प्रभाव पर आधारित रहा। इनके उत्तरवर्ती शिष्यों ने उस शास्त्रीय आधार के अभाव की भी पूर्ति कर दी, जो भाष्य की रचना न करने के कारण इस सम्प्रदाय में चल रहा था। भक्ति को आधार बनाकर चैतन्य ने यथापि कोई नई परम्परा नहीं चलाई, फिर भी भावविह्लता का जितना पुट चैतन्य ने भक्ति में मिलाया, उतना किसी अन्य ने नहीं।
वल्लभाचार्य आदि ने धर्म के और भक्ति के विधानात्मक पक्ष को महत्त्व दिया था, जबकि चैतन्य ने भावात्मक पक्ष को प्रश्रय दिया। चैतन्य की विचारधारा पर पांचरात्र साहित्य, भागवत, पुराण तथा गीत गोविन्द का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। विभिन्न रूपों में प्रचलित और लिपिबद्ध कृष्ण की कथा ने उनके व्यक्तित्व को भीतरी भाग तक अवश्य ही छुआ होगा।
यों तो सारा भारत ही चैतन्य से प्रभावित हुआ, किन्तु पश्चिम बंगाल का जनजीवन तो उनकी विचारधारा के साथ आमूलचूल एकाकार हो गया। फलस्वरूप न केवल हिन्दू अपितु तत्कालीन मुसलमान भी उनके मत से प्रभावित हुए बिना न रह सके। भक्ति भावना के अपेक्षाकृत ह्रास के बावजूद अब भी चैतन्य का प्रभाव समाज में लगातार अक्षुण्ण बना हुआ है। महाप्रभु की प्रभुता बढ़ाने और बनाए रखने में उनकी सुन्दरता, मृदुता, साहसिकता, सूझबूझ, विद्वत्ता और शालीनता का बड़ा हाथ रहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- चैतन्य महाप्रभु
- गौरांग ने आबाद किया कृष्ण का वृन्दावन
- Gaudiya Vaishnava
- Lord Gauranga (Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu)
- Gaudiya History
- Sri Gaura Purnima Special: Scriptures that Reveal Lord Chaitanya’s Identity as Lord Krishna
- Gaudiya Vaishnavas
- चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय
- परिचय- चैतन्य महाप्रभु
- जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (लेखक- अमृतलाल नागर)
- श्री संत चैतन्य महाप्रभु
- चैतन्य महाप्रभु यदि वृन्दावन न आये होते तो शायद ही कोई पहचान पाता कान्हा की लीला स्थली को
- Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)
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