शिवाजी का राज्याभिषेक: Difference between revisions

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सन 1674 तक [[शिवाजी]] ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो [[पुरन्दर की संधि]] के अन्तर्गत उन्हें [[मुग़ल|मुग़लों]] को देने पड़े थे। पश्चिमी [[महाराष्ट्र]] में स्वतंत्र [[हिन्दू]] राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] ने उनका घोर विरोध किया।
सन 1674 तक [[शिवाजी]] ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो [[पुरन्दर की संधि]] के अन्तर्गत उन्हें [[मुग़ल|मुग़लों]] को देने पड़े थे। पश्चिमी [[महाराष्ट्र]] में स्वतंत्र [[हिन्दू]] राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] ने उनका घोर विरोध किया।


शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने ने [[काशी]] में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी [[क्षत्रिय]] नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध [[मेवाड़]] के [[सिसोदिया वंश]] से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी [[पूना]] के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को '[[अष्टप्रधान|अष्टप्रधान मंडल]]' की स्थापना करनी पड़ी।
शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने [[काशी]] में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी [[क्षत्रिय]] नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध [[मेवाड़]] के [[सिसोदिया वंश]] से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]] आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी [[पूना]] के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को '[[अष्टप्रधान|अष्टप्रधान मंडल]]' की स्थापना करनी पड़ी।


विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। [[काशी]] के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से [[4 अक्टूबर]], 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में [[हिन्दू]] स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद [[बीजापुर]] के सुल्तान ने [[कोंकण]] की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को [[शिवाजी]] के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।
विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। [[काशी]] के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से [[4 अक्टूबर]], 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में [[हिन्दू]] स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद [[बीजापुर]] के सुल्तान ने [[कोंकण]] की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को [[शिवाजी]] के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।

Revision as of 13:17, 15 September 2016

शिवाजी विषय सूची

सन 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था, जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया।

शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने काशी में गंगाभ नामक एक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगाभ ने प्रस्ताव ठुकरा दिया, क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे, जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया। विवश होकर शिवाजी को 'अष्टप्रधान मंडल' की स्थापना करनी पड़ी।

विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था, पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से 4 अक्टूबर, 1674 ई. को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण की विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरुद्ध भेजा, पर वे असफल रहे।



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