रवींद्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('<div style="float:right; width:98%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> {| width="98%" class="bharattable-purple" style="float:ri...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
Line 28: Line 28:
* फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।   
* फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।   
* अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है।   
* अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है।   
* दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे।  
* दु:ख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे।  
* भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं।   
* भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं।   
* मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है।   
* मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है।   

Revision as of 14:02, 2 June 2017

रवींद्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन

[[चित्र:Rabindranath-Tagore.jpg|thumb|रवींद्रनाथ टैगोर]]

  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता।
  • निरर्थक आशा से बंधा हुआ मानव अपना हृदय सुखा डालता है और आशा की कड़ी टूटते ही वह झट से विदा हो जाता है।
  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
  • जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है।
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।
  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
  • तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।
  • यदि तुम सूर्य के खो जाने पर आंसू बहाओगे, तो तारों को भी खो बैठोगे।
  • विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
  • मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है।
  • बड़ों की कुछ समता हम विनीत होकर ही पाते हैं।
  • हंसते तो सभी हैं। लेकिन जब मैं स्वयं पर हंसता हूं तो मेरा अपना बोझ हलका हो जाता है।
  • धूल स्वयं अपमान सहन कर लेती है और बदले में पुष्पों का उपहार देती है।
  • पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है।
  • सत्य की सरिता अपनी भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है।
  • तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।
  • जो शांत भाव से सहन करता है, वही गंभीर रूप से आहत होता है।
  • फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
  • अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है।
  • दु:ख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे।
  • भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं।
  • मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है।
  • हम संसार को ग़लत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है।
  • हम महान व्यक्तियों के निकट पहुंच जाते हैं, जब हम नम्रता में महान होते हैं।
  • भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं।
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।
  • धूल अपमानित की जाती है किंतु बदले में वह अपने फूलों की ही भेंट देती है।
  • प्राणों में छिपा हुआ प्रेम पवित्र होता है। हृदय के अंधकार में वह माणिक्य के समान जलता है, किंतु प्रकाश में वह काले कलंक के समान दिखाई देता है।
  • मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है।
  • जब हम सत्य को पाते हैं तब वह अपने सारे अभाव और अपूर्णता के बावजूद हमारी आत्मा को तृप्त करता है।
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए द्वार बंद कर दोगे तो सत्य भी बाहर रह जाएगा।
  • मुक्ति शून्यता में नहीं, पूर्णता में है। पूर्णता सृजन करती है, ध्वंस नहीं करती।
  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख