कालिदास के अनमोल वचन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('<div style="float:right; width:98%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> {| width="98%" class="bharattable-purple" style="float:ri...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
Line 13: Line 13:
* रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात।   
* रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात।   
* गुण ही व्यक्ति की असली पहचान होती है। गुण सभी स्थानों पर अपना आदर करा लेता है।   
* गुण ही व्यक्ति की असली पहचान होती है। गुण सभी स्थानों पर अपना आदर करा लेता है।   
* दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।   
* दु:ख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।   
* दुख में अपने स्वजनों को देखते ही दुख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए।   
* दु:ख में अपने स्वजनों को देखते ही दु:ख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए।   
* संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है।     
* संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है।     
* सज्जनों का लेना भी देने के लिए ही होता है, जैसे कि बादलों का।   
* सज्जनों का लेना भी देने के लिए ही होता है, जैसे कि बादलों का।   
Line 26: Line 26:
* योग्य शिष्य को जो शिक्षा दी जाती है, वह अवश्य फलती है।   
* योग्य शिष्य को जो शिक्षा दी जाती है, वह अवश्य फलती है।   
* यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा?   
* यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा?   
* किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दुख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं।   
* किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दु:ख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं।   
* काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए।   
* काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए।   
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता।   
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता।   

Revision as of 14:03, 2 June 2017

कालिदास के अनमोल वचन

[[चित्र:Poet-Kalidasa.jpg|thumb|कालिदास]]

  • तुमने निंदायुक्त वचनों को उत्तम मानकर जो यहां कहा है उनसे कोई कार्य तो सिद्ध हुआ नहीं, केवल तुम्हारे स्वरूप का स्पष्टीकरण हो गया है।
  • उत्कृष्ट शिष्य को दी गई शिक्षक की कला अधिक गुणवती है जैसे मेघ का जल समुद्र की सीपी में पड़ने पर मोती बन जाता है।
  • रथचक्र की अरों के समान मनुष्य के जीवन की दशा ऊपर-नीचे हुआ करती है। कभी के दिन बड़े कभी की रात।
  • गुण ही व्यक्ति की असली पहचान होती है। गुण सभी स्थानों पर अपना आदर करा लेता है।
  • दु:ख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।
  • दु:ख में अपने स्वजनों को देखते ही दु:ख उसी प्रकार बढ़ जाता है, जैसे रुकी वस्तु को बाहर निकलने के लिए बड़ा द्वार मिल जाए।
  • संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है।
  • सज्जनों का लेना भी देने के लिए ही होता है, जैसे कि बादलों का।
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है।
  • वास्तव में धीर पुरुष वे ही हैं, जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता।
  • प्रार्थी व्यक्ति को लक्ष्मी मिले या न मिले, किन्तु लक्ष्मी जिसे चाहे वह लक्ष्मी के लिए कैसे दुर्लभ हो सकता है।
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है।
  • जैसे आग में डालने से सोना काला नहीं पड़ता, वैसे ही जिस शिक्षक के सिखाने में किसी तरह की भूल न दिखलाई पड़े उसे ही सच्ची शिक्षा कहते हैं।
  • जो खोटे लोग होते हैं वे उन महात्माओं के काम को बुरा बताते ही हैं जिनहें पहचानने की उनमें योग्यता नहीं होती।
  • जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं।
  • योग्य शिष्य को जो शिक्षा दी जाती है, वह अवश्य फलती है।
  • यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा?
  • किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दु:ख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं।
  • काल सब प्राणियों के सिर पर है, इसलिए पहले कुशल-क्षेम पूछना चाहिए।
  • चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता।
  • विपत्ति में पड़े हुए पुरुषों की पीड़ा हर लेना ही सत्पुरुषों की संपत्ति का सच्चा फल है। संपत्ति पाकर भी मनुष्य अगर विपत्ति-ग्रस्त लोगों के काम न आया तो वह संपत्ति किस काम की।
  • विद्वानों की संगति से मूर्ख भी विद्वान बन जाता है जैसे निर्मली के बीज से मटमैला पानी स्वच्छ हो जाता है।
  • अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है।
  • अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है।
  • अनर्थ भी अपने अवसर की ताक में रहते हैं।
  • अच्छी संतान इस लोक और परलोक, दोनों में सुख देती है।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख