अश्वघोष के अनमोल वचन: Difference between revisions
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* सत्य को न देखने के कारण यह संसार जला है, इस समय जल रहा है और जलेगा। | * सत्य को न देखने के कारण यह संसार जला है, इस समय जल रहा है और जलेगा। | ||
* स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। | * स्वजन शत्रु हो जाते हैं और पराए मित्र हो जाते हैं। कार्यवश ही लोग स्नेह करते है और तोड़ते हैं। | ||
* जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक- | * जिस प्रकार वास वृक्ष पर समागम के पश्चात् पक्षी पृथक-पृथक् दिशाओं में चले जाते हैं, उसी प्रकार प्राणियों के समागम का अन्त वियोग है। | ||
* शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता है। | * शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता है। | ||
* जिस प्रकार [[बादल]] एकत्र होकर फिर अलग हो जाते हैं , उसी प्रकार प्राणियों का संयोग और वियोग है। | * जिस प्रकार [[बादल]] एकत्र होकर फिर अलग हो जाते हैं , उसी प्रकार प्राणियों का संयोग और वियोग है। |