सुभाष मुखोपाध्याय (चिकित्सक): Difference between revisions

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==परिचय==
==परिचय==
डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी, 1931 को हुआ था। भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय अपने नाना अनुपम बाबू के घर पैदा हुए थे। अनुपम बाबू उस समय के जाने माने अधिवक्ता थे। सुभाष मुखोपाध्याय की पढ़ाई लिखाई कोलकाता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी। इनकी विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिए भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 3 अक्तूबर, 1978 को कोलकाता में हुआ था।
डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी, 1931 को हुआ था। भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय अपने नाना अनुपम बाबू के घर पैदा हुए थे। अनुपम बाबू उस समय के जाने माने अधिवक्ता थे। सुभाष मुखोपाध्याय की पढ़ाई लिखाई कोलकाता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी। इनकी विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिए भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 3 अक्तूबर, 1978 को कोलकाता में हुआ था।

Latest revision as of 11:16, 30 September 2022

सुभाष मुखोपाध्याय (चिकित्सक)
पूरा नाम सुभाष मुखोपाध्याय
जन्म 16 जनवरी, 1931
जन्म भूमि हज़ारीबाग़, झारखण्ड
मृत्यु 19 जून, 1981
मृत्यु स्थान पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र चिकित्सा विज्ञान
विद्यालय कलकत्ता नेशनल मेडिकल कॉलेज

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग

प्रसिद्धि भारत के प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक चिकित्सक व वैज्ञानिक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी डॉ. आनंद कुमार की पहल के चलते डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्मदाता का खिताब मिला। इसी विषय पर 1990 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक तपन सिन्हा ने ‘एक डॉक्टर की मौत’ नाम से फिल्म बनाई थी।

सुभाष मुखोपाध्याय (अंग्रेज़ी: Subhash Mukhopadhyay, जन्म- 16 जनवरी, 1931; मृत्यु- 19 जून, 1981) भारतीय चिकित्सक व वैज्ञानिक थे। वह विश्व के दूसरे तथा भारत के 'प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी' के जनक थे। भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 3 अक्तूबर, 1978 को कोलकाता में हुआ था। यह डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का दुर्भाग्य ही था कि इनकी इस सफलता को मान्यता नहीं दी गई। सुभाष मुखोपाध्याय अपनी सफलता को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं रख पाये। उनके काम पर संदेह व्यक्त किया गया और उन्हें टोक्यो जाने से रोक दिया गया। इन्हीं सब कारणों से आहत होकर डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने सन 1981 में आत्महत्या कर ली। बाद में उनके कार्य को मान्यता मिली।

परिचय

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का जन्म 16 जनवरी, 1931 को हुआ था। भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय अपने नाना अनुपम बाबू के घर पैदा हुए थे। अनुपम बाबू उस समय के जाने माने अधिवक्ता थे। सुभाष मुखोपाध्याय की पढ़ाई लिखाई कोलकाता और उसके बाद एडिनबर्ग में हुई थी। इनकी विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिए भारत में पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म 3 अक्तूबर, 1978 को कोलकाता में हुआ था।

डॉक्टर्स टीम के अगुवा डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय थे। दुर्भाग्य से इनके काम पर राज्य सरकार ने शक किया। जहां नाकाबिल लोगों की टीम ने इनके काम की जांच कर संदेह जाहिर किया। सुभाष मुखोपाध्याय अपने काम को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर नहीं रख पाए। उनको अपने काम को चिकित्सा वैज्ञानिकों के समक्ष अंतर्राष्ट्रीय फलक पर रखने के लिए टोक्यो जाना था। संदेह जताते हुए उन्हें टोक्यो जाने से रोक दिया गया। इससे निराश होकर उन्होंने 19 जून, 1981 को कोलकाता में आत्महत्या कर ली। बाद में उनके काम को सही ठहराया गया और "भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक" के रूप में मान्यता दी गई।

प्रयोग की शुरुआत

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय जब स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री लेकर कलकत्ता लौटे, तब तक टेस्ट ट्यूब बेबी पर विश्वभर में चर्चा तेज हो चुकी थी, लेकिन कोई सफल प्रयोग होना अभी बाकी थी। ये अस्सी के दशक के शुरुआती वक्त की बात है। कोलकाता में एक धनाढ्य मारवाड़ी परिवार रहता था। उसकी कोई औलाद नहीं थी। उस जमाने में जैसा कि होता था, बे-औलाद परिवार खासकर महिला को न केवल पारिवारिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता था, बल्कि सामाजिक अत्याचार भी बहुत होते थे। वह मारवाड़ी परिवार भी इसी मानसिक प्रताड़ना से गुजर रहा था। उन्हें कहीं से डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय के बारे में जानकारी मिली, तो वे उनसे मिलने साउथर्न एवेन्यू के उनके छोटे से घर में जा पहुंचे। दंपत्ति ने टेस्ट ट्यूब पद्धति से गोद भर देने की गुंजाइश की। डॉ. मुखोपाध्याय भी इसके लिए तैयार हो गए। इस तरह 1977 में छोटे से फ्लैट के बेहद छोटे से कमरे में उन्होंने कुछ यंत्र व रेफ्रिजरेटर की मदद से प्रयोग शुरू कर दिया।[1]

पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म

एक तरफ भारत में डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा करने की सोच रहे थे। वहीं दूसरी ओर ठीक उसी वक्त इंग्लैंड में भी ऐसा ही एक प्रयोग शुरू हो गया था। कहानी वही थी। वहां रहने वाले एक दंपत्ति को लंबे समय से कोई बच्चा नहीं हो रहा था, तो उन्होंने प्रख्यात महिला रोग चिकित्सक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स से मुलाकात की। दोनों डॉक्टरों ने प्रयोग शुरू कर दिया।

इंग्लैड के डॉक्टरों के पास जहां हर तरह के संसाधन थे और सरकार का पूरा सहयोग भी उनके साथ था। वहीं डॉ. मुखोपाध्याय को अपने दम पर बिना किसी सरकारी मदद के काम करना पड़ रहा था। 25 जुलाई, 1978 को चिकित्सक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स ने टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने की घोषणा कर इतिहास रच दिया। दोनों को विश्व में टेस्ट ट्यूब के जरिए सबसे पहले बच्चे को जन्म देने वाले डॉक्टरों का तमगा मिला। उस वक्त डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय के लैब में भी एक भ्रूण आकार ले रहा था। 25 जुलाई की घोषणा के महज 67 दिनों के भीतर 3 अक्टूबर, 1978 को डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने भी एक घोषणा की। उन्होंने दुनिया को बताया की टेस्ट ट्यूब के जरिए बच्चे को जन्म देने का उन्होंने भी सफल प्रयोग कर लिया है। टेस्ट ट्यूब के जरिए जन्मी बच्ची को नाम मिला ‘दुर्गा’। इस नाम के पीछे की कहानी यह है कि 3 अक्टूबर, 1978 को दुर्गा पूजा का पहला दिन था, इसलिए उसका नामकरण ‘दुर्गा’ कर दिया गया। अगर 67 दिन पहले दुर्गा का जन्म हुआ होता, तो टेस्ट ट्यूब पद्धति से बच्चे को जन्म देने वाला भारत दुनिया का पहला देश होता।

इनाम की जगह अपमान

बेहद कम संसाधन व तकनीक के बावजूद डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय का प्रयोग शत-प्रतिशत सफल रहा। किसी और देश में अगर वह होते, तो शायद वहां की सरकार उनकी इस कामयाबी को सर आंखों पर रखती, लेकिन उन्हें मिला अपमान। डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय वैश्विक प्लैटफॉर्म पर जाकर दुनिया को अपने प्रयोग के बारे में बताना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसकी इजाजत उन्हें नहीं दी। इसके उलट उस वक्त की पश्चिम बंगाल की सरकार ने उनके दावों की जांच के लिए 18 नवंबर, 1978 को एक कमेटी बना दी।

कमेटी को चार बिंदुओं की जांच करनी थी। कमेटी ने उनसे अजीबोगरीब सवाल पूछे और अंततः उनके दावे को बोगस करार दे दिया। उनका मजाक उड़ाया गया। उन्हें जापान में अपने प्रयोग के बारे में बताने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन सरकार ने उन्हें वहां भी जाने की इजाजत नहीं दी। सन 1981 में सजा के तौर पर उनका ट्रांसफर रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफ्थॉल्मोलॉजी (कोलकाता) में कर दिया गया।[1]

आत्महत्या

यह अपमान सुभाष मुखोपाध्याय के लिए असह्य था। इस पूरे प्रकरण के बाद उन्होंने खुद को अपने छोटे से घर में कैद कर लिया। अपमान का वह घूंट उनके लिए जहर साबित हुआ। वह तिल-तिल कर मरते रहे और फिर एक दिन उन्होंने अपमान की असह्य पीड़ा से निजात पाने का फैसला कर लिया। अपने घर की सीलिंग से झूलकर उन्होंने 19 जून, 1981 को आत्महत्या कर ली। उन्होंने सोचा भी नहीं था की अपनी खोज का उन्हें यह इनाम मिलेगा। इसके साथ ही एक होनहार डॉक्टर इस दुनिया को छोड़कर चला गया।

मौत के बाद मिली पहचान

डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय रोशनी नहीं एक चमकदार सूरज थे, जिनकी रोशनी पूरी दुनिया में बिखरनी थी। वर्ष 1986 में भारत के ही एक डॉक्टर टी. सी. आनंद कुमार ने भी टेस्ट ट्यूब पद्धति से एक बच्चे को जन्म दिया। उन्हें 'भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म देने वाले पहले डॉक्टर' का खिताब मिला। वर्ष 1997 में उनके हाथ वे महत्वपूर्ण दस्तावेज लग गए, जो इस बात की गवाही देते थे कि उनसे पहले डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ने टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था। सभी दस्तावेजों के गहन अध्ययन के बाद डॉ. आनंद कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि भारत को टेस्ट ट्यूब बेबी की सौगात देने वाले पहले वैज्ञानिक डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय ही थे।

डॉ. आनंद कुमार की पहल के चलते आखिरकार डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय को भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्मदाता का खिताब मिला। इसी विषय पर 1990 में प्रख्यात फिल्म निर्देशक तपन सिन्हा ने ‘एक डॉक्टर की मौत’ नाम से फिल्म बनाई। फिल्म में मुख्य भूमिका पंकज कपूर ने निभाई थी। इसके बाद पूरी दुनिया में डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया।[1]


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