चन्देल वंश: Difference between revisions
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Revision as of 11:33, 28 October 2010
जेजाकभुक्ति के प्रारम्भिक शासक प्रतिहार शासकों के सामंत थे। इन्होने खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया। नन्नुक इस वंश का पहला राजा था। उसके अतिरिक्त अन्य सामंत थे- वाक्पति, जयशक्ति (सम्भवतः इसके नाम पर ही बुन्देलखण्ड का नाम जेजाक भुक्ति पड़ा) विजय शक्ति, राहिल एवं हर्ष।
- यशोवर्मन
- धंगदेव
- गंडदेव
- विद्याधर
- विजयपाल
- देववर्मन
- कीर्तिवर्मन
विद्याधर (1019 से 1029 ई.)
गंड के बाद उसका पुत्र विद्याधर गद्दी पर बैठा। चन्देल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली था। मुसलमान लेखक उसका नामक चन्द्र एवं विदा नाम से करते है। उसने प्रतिहार शासक राज्यपाल की हत्या मात्र इसलिए कर दी क्योंकि उसने महमूद गजनवी के कन्नौज पर आक्रमण के समय बिना युद्ध किये ही गजनवी के सामने समर्पण कर दिया था। मुस्लिम स्रोतों से पता चलता है कि 1019-1020 ई. में चन्देलों पर महमूद के प्रथम आक्रमण के समय विद्याधर ने परिस्थितियों को अपने पक्ष में न देखकर सेना को युद्ध क्षेत्र से वापस हटा लिया था। 1022 ई. में महमूद के दूसरे आक्रमण के समय विद्याधर ने उससे शांति का समझौता कर लिया।
विद्याधर के बाद अन्य चन्देल शासक निम्नलिखित थे। - विजयपाल (1030 से 1050 ई.), देववर्मन (1050 से 1060ई.), कीर्तिवर्मन (1060 से 1100ई.), सल्लक्षण वर्मन (1100 से 1115 ई.), जयवर्मन, पृथ्वी वर्मन आदि। कीर्तिवर्मन इस वंश का प्रख्यात शासक हुआ। उसने चेदि वंश के कर्ण को परास्त किया। 'प्रबोध चन्द्रोदय' नामक नाटक की रचना कृष्ण मिश्र ने उसी के दरबार में की थी। उसने महोबा के निकट 'कीरत सागर' झील का निर्माण करवाया था। मदन वर्मन (1129 से 1163 ई.) चंदेल वंश का अन्य पराक्रमी राजा हुआ। परर्माददेव पर 1173 ई. में चालुक्यों से भिलसा को छीन लिया । 1203 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने परार्माददेव को पराजित कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया और अंततः 1305 ई. में चन्देल राज्य दिल्ली में मिल गया।
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