शिलाहार वंश: Difference between revisions
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*अन्हिलवाड़ा के चालुक्यों ने उन्हें अपनी अधीनता मानने के लिए विवश किया, और बाद में [[देवगिरि का यादव वंश | *अन्हिलवाड़ा के चालुक्यों ने उन्हें अपनी अधीनता मानने के लिए विवश किया, और बाद में [[देवगिरि का यादव वंश|देवगिरि के यादव]] राजा सिंघण ने उन्हें विजय किया। | ||
*सिंघण ने न केवल उत्तरी कोंकण को जीता, अपितु कोल्हापुर के शिलाहार वंश को भी उसने अपने अधीन किया। | *सिंघण ने न केवल उत्तरी कोंकण को जीता, अपितु कोल्हापुर के शिलाहार वंश को भी उसने अपने अधीन किया। | ||
*वस्तुतः शिलाहारों ने बहुत कम समय तक स्वतंत्रापूर्वक शासन किया। | *वस्तुतः शिलाहारों ने बहुत कम समय तक स्वतंत्रापूर्वक शासन किया। |
Revision as of 09:41, 2 November 2010
- शिलाहार राजवंश के राजाओं की स्थिति भी पहले सामन्तों के समान थी।
- जिस समय दक्षिणापथ में राष्ट्रकूटों की प्रभुता थी, तब (आठवीं-नवीं सदियों में) शिलाहारों के तीन राज्य उत्तरी कोंकण, दक्षिणी कोंकण और कोल्हापुर में विद्यमान थे।
- इनमें उत्तरी कोंकण का शिलाहार राज्य मुख्य था।
- कोंकण के ये शिलाहार राजा राष्ट्रकूटों के सामन्त थे।
- जब दसवीं सदी के अन्तिम भाग में चालुक्यों के उत्कर्ष के कारण राष्ट्रकूटों की शक्ति क्षीण हुई, तो शिलाहारों ने भी अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। पर उनकी स्वतंत्रता देर तक क़ायम नहीं रह सकी।
- अन्हिलवाड़ा के चालुक्यों ने उन्हें अपनी अधीनता मानने के लिए विवश किया, और बाद में देवगिरि के यादव राजा सिंघण ने उन्हें विजय किया।
- सिंघण ने न केवल उत्तरी कोंकण को जीता, अपितु कोल्हापुर के शिलाहार वंश को भी उसने अपने अधीन किया।
- वस्तुतः शिलाहारों ने बहुत कम समय तक स्वतंत्रापूर्वक शासन किया।
- विविध समयों में वे राष्ट्रकूट, चालुक्य और यादव वंशों के राजाओं की महत्वाकांक्षाओं के शिकार बनते रहे।
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