शंखचूड़ (दानव)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:57, 22 October 2011 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

शंखचूड़ दानव भगवान श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा था, जिसे राधा ने दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया था। सुदामा श्रीकृष्ण का पार्षद था, जब श्रीकृष्ण विरिजा के साथ विहार कर रहे थे, सुदामा भी उनके साथ ही था। राधा को ज्ञात हुआ तो रुष्ट होकर वहाँ पहुँचीं। उसने कृष्ण को बहुत फटकारा। लज्जावश विरिजा तो नदी बन गई, किन्तु सुदामा ने क्रुद्ध होकर राधा से बात की। राधा ने क्रोधवश उसे सभा से निकाल दिया और दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया। क्षणिक आवेग जब समाप्त हुआ तो राधा ने दयावश शाप की अवधि गोलोक के आधे क्षण की कर दी, जो कि मृत्यु लोक का एक मन्वंतर होता है। शापवश सुदामा शंखचूड़ नामक दानव हुआ।

देवताओं से युद्ध

गोलोक में भी शंखचूड़ तुलसी पर आसक्त था, अत: भूलोक में भी उसने तुलसी को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। उसके पास हरि का मंत्र और कवच भी थे। तुलसी से विवाह होने के उपरान्त वह ऐश्वर्यपूर्वक रहने लगा। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से शिव ने उस पर आक्रमण किया। शिव की अपरिमित सेना (जो कि देवताओं तथा भगवती से युक्त थी) के होते हुए भी शंखचूड़ परास्त नहीं हो रहा था। सब ने विचारा कि जब तक उसके पास हरि का मंत्र और कवच हैं और उसकी पत्नि पतिव्रता है, तब तक उसे परास्त करना असम्भव है।

वध

सौ वर्षों तक युद्ध होता रहा। शिव मृत देवताओं को पुनर्जीवन देते जा रहे थे। रणक्षेत्र में दानेश्वर शंखचूड़ से एक वृद्ध ब्राह्मण भिक्षा मांगने के लिए आया। राजा ने इच्छित दक्षिणा मांगने को कहा, तो ब्राह्मण ने उससे कवच मांग लिया। शुखचूड़ ने उसे कवच दे दिया। ब्राह्मण ने तुरन्त ही शंखचूड़ का सा रूप धारण किया और तुलसी के पास गया। उसने माया पूर्वक तुलसी में वीर्याधान किया। तत्काल शिव ने हरि के दिये शूल से शंखचूड़ को मार गिराया। दानेश्वर तो रथ सहित भस्म हो गया, किन्तु किशोर सुदामा ने गोलोक धाम में राधा-कृष्ण को प्रणाम किया। शूल भी शीघ्रतापूर्वक कृष्ण के पास पहुँच गया। शंखचूड़ की अस्थियों से शंख जाति का उदभव हुआ। शंख से सभी देवताओं को जल देते हैं, किन्तु शिव को उसका जल नहीं दिया जाता है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 301 |

  1. देवी भागवत, 9।19

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः