जेंसेनवाद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:44, 7 November 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

जेंसेनवाद रोमन कैथोलिक संप्रदाय के भीतर चलाया गया एक अभियान। इसके प्रवर्तक बिशप कार्नेलियस जेंसेन थे, इसीलिए उन्हीं के नाम पर यह 'जेंसेनवाद' कहलाया।

  • बिशप कार्नेलियस जेंसन की पुस्तक 'आगस्टिनस' में, जो उसकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई थी, नियतिवाद तथा ईश्वरीय अनुकंपा के संबंध में उसी स्थिति पर बल दिया गया था, जिसका प्रतिपादन इसके पहले आगस्टाटाइन की रचनाओं में किया गया था।
  • जेंसेनवाद कठोर नीतिवाद से संबद्ध समझा जाता था, विशेषकर फ़्राँस में, जहाँ पैस्कल के लेखों में जेसुइट लेखकों के धर्माधर्म संबंधी प्रमादी विचारों की तीव्र आलोचना की गई थी (1656-57)। इससे धार्मिक विवाद उठ खड़ा हुआ था।
  • जब क्वेसनेल की पुस्तक 'रिपलेवशन्स मोरेल्स' से भी जेंसेनवाद के प्रचार को सहायता मिलने लगी तो सन 1713 ई. में पोप क्लेमेंट एकादश ने 'यूनीजेनिंटस' शीर्षक धर्माज्ञप्ति में जेंसेनवाद की तीव्र भर्त्सना की। इसके विरुद्ध फ़्राँस के 20 बिशपों अर्थात् धर्माचार्यों ने जनरल काउंसिल (बृहदधर्म परिषद) अपील की। किंतु अब जेंसेनवाद का धार्मिक प्रभाव बहुत कुछ समाप्त हो चुका था। उसका कठोरतावाद, इस रूप में भले ही अग्राह्य और परित्यक्त कर दिया गया हो, किंतु इतना लाभ तो उससे हुआ ही, उसने कैथोलिक धर्म की नैतिकता के व्यापक विकास में सहायता पहुँचाई।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जेंसेनवाद (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 मई, 2014।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः