स्वामी रामतीर्थ के अनमोल वचन

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स्वामी रामतीर्थ के अनमोल वचन

[[चित्र:Swami-Rama-Tirtha-2.jpg|thumb|स्वामी रामतीर्थ]]

  • तुम समाज के साथ ही ऊपर उठ सकते हो और समाज के साथ ही तुम्हें नीचे गिरना होगा। यह नितांत असंभव है कि कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन सके।
  • आलस्य आपके लिए मृत्यु के समान है। केवल उद्योग ही आपके लिए जीवन है।
  • जब तक तुममें दूसरों को व्यवस्था देने या दूसरों के अवगुण ढूंढने, दूसरों के दोष ही देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना कठिन है।
  • यदि तुमने आसक्ति का राक्षस नष्ट कर दिया तो इच्छित वस्तुएं तुम्हारी पूजा करने लगेंगी।
  • आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है।
  • दूसरों में दोष न निकालना, दूसरों को उतना उन दोषों से नहीं बचाता जितना अपने को बचाता है।
  • वही उन्नति कर सकता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।
  • किसी काम को करने से पहले इसे करने की दृढ़ इच्छा अपने मन में कर लें और सारी मानसिक शक्तियों को उस ओर झुका दें। इससे आपको अधिक सफलता प्राप्त होगी।
  • कामनाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं।
  • निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है।
  • सत्य किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है।
  • सहयोग प्रेम की सामान्य अभिव्यक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
  • अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो।
  • ग़लती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं।
  • लक्ष्मी पूजा के अनेक रूप हैं। लेकिन ग़रीबों की पेट पूजा करना ही श्रेष्ठ लक्ष्मी पूजन है। इससे आत्मतोष भी होता है।
  • सभी सच्चे काम आराम हैं।
  • अमरत्व को प्राप्त करना अखिल विश्व का स्वामी बनना है।
  • केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब ज़रूरतों से परे कर सकता है।
  • संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं।
  • अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा।
  • सर्वोपरि श्रेष्ठ दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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