ताज भोपाली

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ताज भोपाली
पूरा नाम मोहम्मद अली ताज
जन्म 1926
जन्म भूमि भोपाल, मध्य प्रदेश
मृत्यु 12 अप्रॅल 1978
मृत्यु स्थान भोपाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य
भाषा उर्दू
प्रसिद्धि उर्दू शायर
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जब जनाब एस.एम.सागर ताज जी को ज़िद करके फ़िल्मों में गीत लिखने को बम्बई ले गए तो वह थोड़ा-बहुत वक़्त ही वहाँ रह पाए। भोपाल की गलियों सदा उनके कानो में ऐसी गूंजती रही कि काम-धाम छोड़-छाड़ वापस लौट आए।
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ताज भोपाली (अंग्रेज़ी: Taj Bhopali, जन्म: 1926, मृत्यु: 12 अप्रॅल 1978; भोपाल) एक सुप्रसिद्ध शायर थे।

संक्षिप्त परिचय

  • ताज भोपाली का असली नाम मोहम्मद अली ताज था ।
  • उनका जन्म भोपाल में 1926 में हुआ।
  • कभी अपनी मोहब्बत से, कभी अपनी शायरी से और कभी-कभी अपनी बातों से ताज भोपाली जी लोगों को जलाया करते थे।
  • शक्लो-सूरत की परवाह उन्होने कभी नहीं की फिर भी उनका धुर काला रंग यूं दमकता रहता था।
  • उनको अपनी इस फक़ीराना तबियत से इस क़दर आशनाई थी कि जब 60 के दशक में उन्हें अशोक कुमार के सेक्रेटरी जनाब एस.एम.सागर ज़िद कर फ़िल्मों में गीत लिखने को बम्बई ले गए तो थोड़ा-बहुत वक़्त ही वहाँ रह पाए। भोपाल की गलियों सदा उनके कानो में ऐसी गूंजती रही कि काम-धाम छोड़-छाड़ वापस लौट आए।

;ताज भोपाली द्वारा लिखी 1969 की फ़िल्म ‘आंसू बन गए फूल’ में

  • यह गीत -. ‘इलेक्शन में मालिक के लड़के खड़े हैं / इन्हें कम न समझो ये खुद भी बड़े हैं’ किशोर कुमार की आवाज़ में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत के साथ चुनाव और नेताओं पर खूबसूरत व्यंग किया गया था।
  • इसी गीत की लाईने है कि – ‘इस शहर में जितने हैं, अखबार इनके हैं / काले-सफेद सैकड़ों व्यापार इनके हैं / ...सब अस्पताल इनके हैं, बीमार इनके हैं / परनाम लाख बार करो / इनको वोट दो / वादों पे ऐतबार करो इनको वोट दो’।
  • इसी फ़िल्म का दूसरा गीत आशा भोंसले ने क्या खूब गाया है –‘ महरबां, महबूब, दिलबर, जानेमन / आज हो जाए कोई दीवानापन’[1]
यह ताज साहब का एक रूप है। दूसरे रूप में उन्हें देखिए तो पहचानना मुश्किल हो जाए।


नुमाइश के लिए जो मर रहे हैं

वो घर के आइनों से डर रहे हैं

बला से जुगनूओं का नाम दे दो

कम-से-कम रोशनी तो कर रहे हैं

तुम्हे कुछ भी नहीं मालूम लोगो

फरिश्तों की तरह मासूम लोगो

ज़मीं पर पांव आँखेंं आस्मां पर

रहोगे उम्र भर मग़मूम लोगो

रहोगे कब तलक मज़लूम लोगो

निर्वाण घर में बैठ के होता नहीं कभी

बुद्ध की तरह कोई मुझे घर से निकाल दे

पीछे बन्धे हैं हाथ मगर शर्त है सफर

किससे कहें कि पांव के कांटे निकाल दे[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 बाजे वाली गली (हिन्दी) bajewaligali.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 25 जून, 2017।

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