सागर सरहदी

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 16:56, 2 May 2021 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा कलाकार |चित्र=Sagar-Sarhadi.jpg |चित्र का नाम=सागर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
सागर सरहदी
पूरा नाम सागर सरहदी
जन्म 11 मई, 1933
जन्म भूमि एबटाबाद, पाकिस्तान
मृत्यु 22 मार्च, 2021
मृत्यु स्थान मुंबई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हिन्दी सिनेमा
मुख्य फ़िल्में 'कभी कभी', 'चांदनी', 'सिलसिला', 'नूरी', 'दीवाना', 'कहो न प्यार है', 'कारोबार', 'बाजार' और 'चौसर' आदि।
प्रसिद्धि हिन्दी पटकथा लेखक व निर्देशक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सागर सरहदी के कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने ने 'मसीहा', 'मिर्ज़ा साहिबा' जैसे नाटक लिखे जिसमें देश के विभाजन का ज़िक़्र ज़्यादा रहा। जब भारत का विभाजन हुआ तब उनकी उम्र 8 से 9 साल की थी।

सागर सरहदी (अंग्रेज़ी: Sagar Sarhadi, जन्म- 11 मई, 1933; मृत्यु- 22 मार्च, 2021) भारतीय हिन्दी सिनेमा के दिग्गज पटकथा लेखक थे। उन्होंने 'कभी कभी', 'चांदनी', 'सिलसिला', 'नूरी', 'दीवाना', 'कहो न प्यार है', जैसी कई बेहतरीन फ़िल्मों की पटकथा लिखी। एक नाटक प्रेमी होने के साथ ही उन्होंने फ़िल्मों के संवाद लेखन और निर्देशन भी किया। स्मिता पाटिल की सबसे यादगार फ़िल्मों में से एक 'बाज़ार' की न केवल सागर सरहदी ने कहानी लिखी बल्कि उसके निर्माता निर्देशक भी वे ही थे। सागर सरहदी ने रंगमंच की दुनिया में फ़ारुख़ शेख़ और शबाना आज़मी जैसे दिग्गज कलाकारों को मौका दिया था। उनका नाम उन सितारों में शुमार था, जिन्होंने अपने दम पर पर हिंदी सिनेमा जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

परिचय

सागर सरहदी का जन्म 11 मई, 1933 को बाफ़ा, पाकिस्तान में हुआ था। वह अपने गांव एबटाबाद को छोड़कर पहले दिल्ली के किंग्सवे कैंप और फिर मुंबई की एक पिछड़ी बस्ती में रहे। इसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत के दम पर फिल्मों में अपना कॅरियर बनाया। फिल्म 'बाजार' से उन्होंने डायरेक्शन में डेब्यू किया था। इस फिल्म में स्मिता पाटिल, फ़ारुख़ शेख़ और नसीरुद्दीन शाह थे। सन 1982 में रिलीज हुई ये फिल्म इंडियन क्लासिक मानी जाती है। सागर सरहदी इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और राइटर तीनों थे। उन्होंने फिल्म 'नूरी' (1979), 'सिलसिला' (1981), 'चांदनी' (1989), 'रंग' (1993), 'जिंदगी' (1976), 'कर्मयोगी', 'कहो ना प्यार है', 'कारोबार', 'बाजार' और 'चौसर' जैसी हिट फिल्मों की स्क्रीप्ट लिखी थी।

यश चोपड़ा के साथ जोड़ी

सागर सरहदी का नाम उन लेखकों में शुमार है, जिन्होंने अपनी लेखनी से एक बदलाव लाने की कोशिश की। उन्होंने जो भी पहचान बनाई वो अपने दम पर बनाई। उनकी लेखनी का जादू कुछ इस तरह था कि जाने-माने निर्देशक यश चोपड़ा ने अपनी सभी बड़ी फ़िल्मों की कहानी उन्हीं से लिखवाई। उन दोनों की ये जोड़ी उस दौर में बेहद कामयाब मानी जाती थी।[1]

सागर से सरहदी का जुड़ाव

उनका नाम सागर से सागर सरहदी कैसे हुआ? इस पर 'साथ साथ', 'सरहद पार', जैसी फ़िल्मों के लेखक और जानेमाने निर्देशक, अभिनेता रमन कुमार ने बीबीसी हिंदी को बताया था कि- "मैं सागर जी के साथ शुरू से ही जुड़ा रहा हूँ। आज मैं जो भी हूँ उन्ही की वजह से हूँ। उन्ही से सीखा है लिखना। सरहदी सागर जी का तख़ल्लुस था, क्योंकि वो सरहदी थे। पाकिस्तान से आए थे। पाकिस्तान में जहाँ वे रहते थे वहाँ से अफ़ग़ानिस्तान ख़त्म होता था और हिंदुस्तान शुरू होता था। आज़ादी से पहले उस इलाक़े को सरहद कहा जाता था। देश के विभाजन की वजह से उन्हें अपना घर, अपना वतन, अपना इलाक़ा छोड़ना पड़ा था। वो सरहद से आये थे, इसलिए उन्होंने अपना नाम 'सरहदी' रख लिया था।"

सागर सरहदी के कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने 'मसीहा', 'मिर्ज़ा साहिबा' जैसे नाटक लिखे जिसमें देश के विभाजन का ज़िक़्र ज़्यादा रहा। जब भारत का विभाजन हुआ तब उनकी उम्र 8 से 9 साल की थी। उन्होंने उस दर्द को बहुत क़रीब से महसूस किया था। ये दर्द उनके नाटकों में भी झलकता था। लेकिन हाँ, किसी बात पर रोना उनके व्यक्तित्व में नहीं था। वो हमेशा सकारात्मक सोचने वाले इंसान ही रहे।[1] ==पैसों के लिए कभी काम नहीं किया सागर सरहदी अपने काम के साथ किसी भी तरह का समझौता करना पसंद नहीं करते थे। सागर जी अपने मन की सुनते थे। उन्होंने कभी समझौता करना पसंद नहीं किया। 'कभी कभी', 'दूसरा आदमी', 'सिलसिला' जैसी फ़िल्में लिखी। वे अपने लेखन से समझौता करना कभी पसंद नहीं करते थे। उनके पास कई लोग आते थे काम के लिए। उन्हें मुँह मांगी रक़म देने के लिए तैयार रहते थे। उन्होंने राज कँवर की 'दीवाना' लिखी। काम वही किया जो उनको पसंद आया। ये नहीं सोचा कि इसके लिए ज़्यादा पैसे मिल रहे हैं तो कर लूं। अभिनेता और निर्देशक राकेश रोशन उनके पास कई बार आए। वे चाहते थे कि सागर साहब उनके लिए लिखें और तब उन्होंने कहा था कि तुम्हारे बेटे के लिए उसकी पहली फ़िल्म मैं ज़रूर लिखूंगा। उन्होंने ऋतिक रोशन की पहली फ़िल्म 'कहो न प्यार है' लिखी।

स्त्री नज़रिया

सागर सरहदी साहब की फ़िल्मों में औरतों को ताक़तवर रूप में ही दिखाया गया है। वे इस बात पर यकीन भी किया करते थे। उनके नाटक 'तन्हाई', 'दूसरा आदमी' में भी यही दिखाया गया है। उनके नज़रिए से समाज को बदलने के लिए महिलाओं का आगे आना ज़रूरी है। 'बाज़ार', 'कभी-कभी' और 'दूसरा आदमी' ये तीन फ़िल्में थीं जो उन्हें बेहद पसंद थीं और वे हमेशा से ही कुछ ऐसा ही नया लिखना चाहते थे।

सबसे बड़ा दुःख

सागर सरहदी ने स्मिता पाटिल को लेकर बेहद खूबसूरत फ़िल्म बनाई थी, जिसका नाम था 'तेरे शहर में'। लेकिन इस फ़िल्म को कभी रिलीज़ नहीं कर पाए। इसकी वजह थी निर्माताओं के साथ फाइनेंस के झगड़े। उन्होंने कहानी लिखी, उसका निर्देशन भी किया था। इस फ़िल्म के रिलीज़ नहीं होने का मलाल उन्हें अंत तक था। एक और फ़िल्म 'चौसर' थी, जो पूरी तरह से तैयार थी, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की पहली फ़िल्म थी। इसे फिर से रिलीज़ करने की बात चल रही थी, लेकिन लॉकडाउन हो गया तो रिलीज़ नहीं हो सकी।[1]

सादा जीवन

सागर सरहदी को न बड़े घर का शौक था और न ही गाड़ियों का। साइन में उनका एक घर था। उसी में वे अकेले रहा करते थे क्योंकि वे शादीशुदा नहीं थे। उन्होंने खुद ये फ़ैसला लिया था कि वे कभी शादी नहीं करेंगे। यह फ़ैसला उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में ही कर लिया था। उन्होंने कहा था कि वे शादी इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें अपने काम के साथ किसी तरह का समझौता न करना पड़े। वे कहते थे कि मैं वही लिखूंगा जो मैं चाहूंगा। इसके लिए मुझे अगर ज़्यादा पैसे भी मिले तो नहीं चाहूंगा। घर पर न बीवी थी, न बच्चे लेकिन वे कभी अकेले हुए नहीं। उनकी किताबें और नाटक से जुड़े लोग अक्सर उनके पास रहा करते थे। उन्हें अंत तक नाटक लिखने का शौक था और वो लिखते भी थे। थिएटर ग्रुप के लोग अक्सर उनके साथ रहे।

घर या पुस्तकालय

जाने माने निर्देशक और निर्माता रमेश तलवार सागर सरहदी के भतीजे हैं। वे 'इत्तेफ़ाक़', 'त्रिशूल', 'कभी कभी', 'काला पत्थर', 'दीवार' जैसी फ़िल्म के सहायक निर्देशक रहे और उन्होंने 'दो आदमी', 'बसेरा', 'दुनिया' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन किया है। रमेश तलवार के अनुसार- "उन्हें किसी भी तरह का कष्ट नहीं था, वो अपनी ज़िंदगी में बेहद खुश रहा करते थे। बढ़ती उम्र के कारण घर पर ही रहते थे। मेरे सगे चाचा थे। शुरू से ही मैं उनसे बहुत प्रभावित रहा हूँ। उन्होंने जब फ़िल्मों में क़दम रखा, तब एक जैसी फ़िल्में लिखी जा रही थीं। लेकिन वे उस दौर में भी अलग काम कर रहे थे। जब भी किसी फ़िल्म की कहानी लिखनी होती, वे एकांत में जाना पसंद करते थे। कभी खंडाला तो कभी किसी और जगह पर। उन्हें किताबों से बेहद प्यार रहा है। उनका घर किताबों से ही भरा हुआ था। उनका घर ऐसा लगता है जैसे किसी कॉलेज की लाइब्रेरी। उनके घर पर 70 फ़ीसद किताबें और 30 फ़ीसद वे रहा करते थे। उन्हें अंत तक भी लिखना पढ़ना पसंद था। रोज़ सुबह 5 बजे उठकर किताबे पढ़ा करते थे।"[1]

मृत्यु

बॉलिवुड के मशहूर पटकथा लेखक और निर्देशक सागर सरहदी का निधन 22 मार्च, 2021 की सुबह मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ। वह 88 साल के थे। सागर सरहदी को हार्ट प्रॉब्लम के कारण मुंबई के एक हॉस्पिटल में आईसीयू वार्ड में भर्ती कराया गया था। उनको इससे पहले भी फ़रवरी 2018 में हार्ट अटैक के बाद इसी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 नहीं रहे कभी कभी, सिलसिला और चांदनी के लेखक (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 02 मई, 2021।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः