Difference between revisions of "अनमोल वचन 2"
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# संकल्प ही मनुष्य का बल है। | # संकल्प ही मनुष्य का बल है। | ||
# सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। | # सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। | ||
+ | # सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी। | ||
+ | # '''सुख''' बाहर से नहीं भीतर से आता है। | ||
+ | # सदविचार ही सद्व्यवहार का मूल है। | ||
+ | # स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिद्धि मिलेगी। | ||
+ | # सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है, कि शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक ज़ोर से बोलते हैं। अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है। | ||
# अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। | # अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। | ||
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# '''अहिंसा''' सर्वोत्तम धर्म है। | # '''अहिंसा''' सर्वोत्तम धर्म है। | ||
# अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | # अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | ||
+ | # अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं। | ||
+ | # अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है। | ||
+ | # अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। | ||
+ | # आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। | ||
+ | # आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है। | ||
+ | # असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंजिल नहीं मिलती। | ||
+ | # '''आयुर्वेद''' हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है। | ||
+ | # '''आयुर्वेद''' वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है। | ||
+ | # आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा। | ||
# जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो जिन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं। | # जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो जिन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं। | ||
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# जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | # जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | ||
# जैसा अन्न, वैसा मन। | # जैसा अन्न, वैसा मन। | ||
+ | # जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। | ||
+ | # '''जीवन''' को छोटे उद्देश्यों के लिए जीना जीवन का अपमान है। | ||
+ | # जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया। | ||
+ | # जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं। | ||
+ | # जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है। | ||
+ | # जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है। | ||
+ | # जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।। | ||
# मनुष्य को उत्तम शिक्षा अच्चा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सार्थक ग्रहण करके जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए। | # मनुष्य को उत्तम शिक्षा अच्चा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सार्थक ग्रहण करके जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए। | ||
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# मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। | # मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। | ||
# मुस्कान प्रेम की भाषा है। | # मुस्कान प्रेम की भाषा है। | ||
+ | # मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ। | ||
+ | # मेरे मस्तिष्क में ब्रह्माण्ड सा तेज़, मेधा, प्रज्ञा व विवेक है। | ||
+ | # मैं माँ भारती का अमृतपुत्र हूँ, 'माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:'। | ||
+ | # मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ, बाद में सन्यासी, ग्रहस्थ, नेता, अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ। | ||
+ | # मैं सदा प्रभु में हूँ, मेरा प्रभु सदा मुझमें है। | ||
+ | # मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने इस पवित्र भूमि व देश में जन्म लिया है। | ||
+ | # मैं अपने जीवन पुष्प से माँ भारती की आराधना करुँगा। | ||
+ | # मैं पुरुषार्थवादी, राष्ट्रवादी, मानवतावादी व अध्यात्मवादी हूँ। | ||
+ | # मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ। | ||
+ | # मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है। | ||
+ | # '''माता-पिता''' के चरणों में चारों धाम हैं। माता-पिता इस धरती के भगवान हैं। | ||
+ | # 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव' की संस्कृति अपनाओ! | ||
+ | # माता-पिता का बच्चों के प्रति, आचार्य का शिष्यों के प्रति, राष्ट्रभक्त का मातृभूमि के प्रति ही सच्चा प्रेम है। | ||
+ | # मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान हैं। | ||
# पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है, महान है। | # पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है, महान है। | ||
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# प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है। | # प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है। | ||
# प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं। | # प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं। | ||
+ | # प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है। | ||
+ | # पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं। | ||
+ | # पवित्र विचार-प्रवाह ही जीवन है तथा विचार-प्रवाह का विघटन ही मृत्यु है। | ||
+ | # पवित्र विचार प्रवाह ही मधुर व प्रभावशाली वाणी का मूल स्रोत है। | ||
+ | # प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है। | ||
# कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? | # कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? | ||
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# कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। | # कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। | ||
# कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। | # कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। | ||
+ | # '''कर्म''' ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है। | ||
# यदि तुम फूल चाहते हो तो जल से पौधों को सींचना भी सीखो। | # यदि तुम फूल चाहते हो तो जल से पौधों को सींचना भी सीखो। | ||
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# यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं। | # यथार्थ को समझना ही सत्य है। इसी को विवेक कहते हैं। | ||
# यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते। | # यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते। | ||
+ | # यदि बचपन व माँ की कोख की याद रहे, तो हम कभी भी माँ-बाप के कृतघ्न नहीं हो सकते। अपमान की ऊचाईयाँ छूने के बाद भी अतीत की याद व्यक्ति के ज़मीन से पैर नहीं उखड़ने देती। | ||
# दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है। | # दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है। | ||
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# दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं। | # दु:ख का मूल है पाप। पाप का परिणाम है-पतन, दु:ख, कष्ट, कलह और विषाद। यह सब अनीति के अवश्यंभावी परिणाम हैं। | ||
# दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है। | # दुष्ट चिंतन आग में खेलने की तरह है। | ||
+ | # दूसरों से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है। | ||
# हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरुआत होती है। | # हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरुआत होती है। | ||
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# हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है। | # हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है। | ||
# हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है। | # हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है। | ||
+ | # हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं। | ||
+ | # हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं। | ||
+ | # हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए। | ||
# इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। | # इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। | ||
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# ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। | # ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। | ||
# इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | # इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | ||
+ | # 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। | ||
+ | # इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है। | ||
# '''रोग''' का सूत्रपान मानव मन में होता है। | # '''रोग''' का सूत्रपान मानव मन में होता है। | ||
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# विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है। | # विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है। | ||
# वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है। | # वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है। | ||
+ | # विचारवान व संस्कारवान ही अमीर व महान है तथा विचारहीन ही कंगाल व दरिद्र है। | ||
+ | # विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफ़ान है, साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है। | ||
+ | # विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है। | ||
+ | # विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है। | ||
+ | # विचार ही सम्पूर्ण खुशियों का आधार हैं। | ||
+ | # विचारों का ही परिणाम है - हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का। | ||
+ | # विचारशीलता ही मनुष्यता और विचारहीनता ही पशुता है। | ||
+ | # वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीड़ा व अवनति का कारण है। वैचारिक दृढ़ता ही देश की सुख-समृद्धि व विकास का मूल मंत्र है। | ||
# ज्ञान मूर्खता छुडवाता है और परमात्मा का सुख देता है। यही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है। | # ज्ञान मूर्खता छुडवाता है और परमात्मा का सुख देता है। यही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है। | ||
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# ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए। | # ज्ञान के नेत्र हमें अपनी दुर्बलता से परिचित कराने आते हैं। जब तक इंद्रियों में सुख दीखता है, तब तक आँखों पर पर्दा हुआ मानना चाहिए। | ||
# ज्ञान से एकता पैदा होती है और अज्ञान से संकट। | # ज्ञान से एकता पैदा होती है और अज्ञान से संकट। | ||
+ | # ज्ञान का अर्थ मात्र जानना नहीं, वैसा हो जाना है। | ||
# उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | # उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | ||
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# ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | # ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | ||
# उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन। | # उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन। | ||
+ | # उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो! | ||
# एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। | # एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। | ||
Line 380: | Line 438: | ||
# बहुमत की आवाज़ न्याय का द्योतक नहीं है। | # बहुमत की आवाज़ न्याय का द्योतक नहीं है। | ||
# बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। | # बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। | ||
+ | # बाह्य जगत में प्रसिद्धि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है। | ||
+ | # बुढ़ापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है। | ||
+ | # बिना सेवा के चित्त शुद्धि नहीं होती और चित्तशुद्धि के बिना परमात्मतत्व की अनुभूति नहीं होती। | ||
# धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो। | # धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो। | ||
Line 385: | Line 446: | ||
# धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है। | # धर्मवान् बनने का विशुद्ध अर्थ बुद्धिमान, दूरदर्शी, विवेकशील एवं सुरुचि सम्पन्न बनना ही है। | ||
# धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। | # धर्म का मार्ग फूलों की सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं। | ||
+ | # ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो, तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है। | ||
+ | # धन अपना पराया नहीं देखता। | ||
# न तो दरिद्रता में मोक्ष है और न सम्पन्नता में, बंधन धनी हो या निर्धन दोनों ही स्थितियों में ज्ञान से मोक्ष मिलता है। | # न तो दरिद्रता में मोक्ष है और न सम्पन्नता में, बंधन धनी हो या निर्धन दोनों ही स्थितियों में ज्ञान से मोक्ष मिलता है। | ||
Line 396: | Line 459: | ||
# नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं। | # नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं। | ||
# निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है। | # निरंकुश स्वतंत्रता जहाँ बच्चों के विकास में बाधा बनती है, वहीं कठोर अनुशासन भी उनकी प्रतिभा को कुंठित करता है। | ||
+ | # निष्काम कर्म, कर्म का अभाव नहीं, कर्तृत्व के अहंकार का अभाव होता है। | ||
+ | # 'न' के लिए अनुमति नहीं है। | ||
+ | # निन्दक दूसरों के आर-पार देखना पसन्द करता है, परन्तु खुद अपने आर-पार देखना नहीं चाहता। | ||
# लोगों को चाहिए कि इस जगत में मनुष्यता धारण कर उत्तम शिक्षा, अच्छा स्वभाव, धर्म, योग्याभ्यास और विज्ञान का सम्यक ग्रहण करके सुख का प्रयत्न करें, यही जीवन की सफलता है। | # लोगों को चाहिए कि इस जगत में मनुष्यता धारण कर उत्तम शिक्षा, अच्छा स्वभाव, धर्म, योग्याभ्यास और विज्ञान का सम्यक ग्रहण करके सुख का प्रयत्न करें, यही जीवन की सफलता है। | ||
Line 403: | Line 469: | ||
# गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | # गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | ||
# गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | # गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | ||
+ | # गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। | ||
+ | # गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है। | ||
# भाग्यशाली होते हैं वे, जो अपने जीवन के संघर्ष के बीच एक मात्र सहारा परमात्मा को मानते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। | # भाग्यशाली होते हैं वे, जो अपने जीवन के संघर्ष के बीच एक मात्र सहारा परमात्मा को मानते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। | ||
Line 412: | Line 480: | ||
# भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है। | # भगवान को घट-घट वासी और न्यायकारी मानकर पापों से हर घड़ी बचते रहना ही सच्ची भक्ति है। | ||
# भाग्य साहसी का साथ देता है। | # भाग्य साहसी का साथ देता है। | ||
+ | # '''भगवान''' सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं। | ||
+ | # भीड़ में खोया हुआ इंसान खोज लिया जाता है, परन्तु विचारों की भीड़ के बीहड़ में भटकते हुए इंसान का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है। | ||
# तीनों लोकों में प्रत्येक व्यक्ति सुख के लिये दौड़ता फिरता है, दुखों के लिये बिल्कुल नहीं, किन्तु दुःख के दो स्रोत हैं-एक है देह के प्रति मैं का भाव और दूसरा संसार की वस्तुओं के प्रति मेरेपन का भाव। | # तीनों लोकों में प्रत्येक व्यक्ति सुख के लिये दौड़ता फिरता है, दुखों के लिये बिल्कुल नहीं, किन्तु दुःख के दो स्रोत हैं-एक है देह के प्रति मैं का भाव और दूसरा संसार की वस्तुओं के प्रति मेरेपन का भाव। | ||
Line 421: | Line 491: | ||
# शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। | # शालीनता बिना मूल्य मिलती है, पर उससे सब कुछ ख़रीदा जा सकता है। | ||
# शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती। | # शत्रु की घात विफल हो सकती है, किन्तु आस्तीन के साँप बने मित्र की घात विफल नहीं होती। | ||
+ | # शरीर स्वस्थ और निरोग हो, तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है। | ||
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|'''अनमोल वचन''' | |'''अनमोल वचन''' | ||
− | # | + | # दृढ़ता हो, ज़िद्द नहीं। बहादुरी हो, जल्दबाज़ी नहीं। दया हो, कमज़ोरी नहीं। |
− | # | + | # घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे। |
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|'''सुभाषित''' | |'''सुभाषित''' |