Difference between revisions of "भारत की जाति-वर्ण व्यवस्था -आदित्य चौधरी"
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भारतीय प्राचीन, [[ब्राह्मण]]-सनातन-[[हिन्दू धर्म]]-[[संस्कृति]] और पौराणिक ग्रंथों पर, जातिवादी वर्ण व्यवस्था के कारण अनेक आरोप लगाए जाते हैं। विशेषकर [[मनुस्मृति]] को सबसे अधिक लांछित किया जाता है। स्वयं मैं भी जाति और धार्मिक भेदभाव को बहुत नापसंद करता हूँ किन्तु क्या यह पूर्णत: सही है? | भारतीय प्राचीन, [[ब्राह्मण]]-सनातन-[[हिन्दू धर्म]]-[[संस्कृति]] और पौराणिक ग्रंथों पर, जातिवादी वर्ण व्यवस्था के कारण अनेक आरोप लगाए जाते हैं। विशेषकर [[मनुस्मृति]] को सबसे अधिक लांछित किया जाता है। स्वयं मैं भी जाति और धार्मिक भेदभाव को बहुत नापसंद करता हूँ किन्तु क्या यह पूर्णत: सही है? | ||
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वृद्ध स्त्री- ऐसा मत कहो बेटा। वही तुम्हारे पिता हैं, क्योंकि उन्होंने तुम्हें जीने का एक उद्देश्य दिया है। उनकी इच्छा पूरी करो। ताम्रलिप्ति के दुष्ट राजा जनासंघ का नाश, यही तुम्हारे जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए तुमको पिंड उस विद्रोही के हाथ में ही रखना चाहिए। | वृद्ध स्त्री- ऐसा मत कहो बेटा। वही तुम्हारे पिता हैं, क्योंकि उन्होंने तुम्हें जीने का एक उद्देश्य दिया है। उनकी इच्छा पूरी करो। ताम्रलिप्ति के दुष्ट राजा जनासंघ का नाश, यही तुम्हारे जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए तुमको पिंड उस विद्रोही के हाथ में ही रखना चाहिए। | ||
आइए अब भारतकोश पर चलते हैं- | आइए अब भारतकोश पर चलते हैं- | ||
− | इस कथा में उत्तर वैदिक काल की मान्यताओं की झलक मिलती है। एक स्त्री के द्वारा वचन निबाहने की पराकाष्ठा और एक शूद्रों के विद्रोही नेता, जिसकी | + | इस कथा में उत्तर वैदिक काल की मान्यताओं की झलक मिलती है। एक स्त्री के द्वारा वचन निबाहने की पराकाष्ठा और एक [[शूद्र|शूद्रों]] के विद्रोही नेता, जिसकी जाति का पता नहीं, एक [[वैश्य]] स्त्री से [[विवाह]] करता है। उस स्त्री को एक [[ब्राह्मण]] से बेटा होता है, जिसे एक [[क्षत्रिय]] राजा गोद लेता है। इससे जाति के उतार-चढ़ाव का पता चलता है। चंद्रप्रभा के पिता के रूप में विद्रोही के अधिकार को ही मान्यता दी जाती है, न कि ब्राह्मण या क्षत्रिय के अधिकार को। व्यक्ति के अधिकार के संदर्भ में जाति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। |
− | मैं मात्र इतना कहना चाहता हूँ कि हिन्दू धर्म ही नहीं अपितु किसी भी धर्म अथवा संस्कृति की आलोचना से पहले, हमारा गहराई से अध्ययन करना अति आवश्यक है। मैं न तो अंधविश्वास की बात कर रहा हूँ और न ही यह कह रहा हूँ कि धर्म को विज्ञान की कसौटी पर न परखा जाय वरन् मेरा आशय मात्र इतना है कि किसी पौराणिक व्यवस्था का विवेचन देश-काल-परिस्थिति को दृष्टिगत रखकर होना चाहिए। | + | मैं मात्र इतना कहना चाहता हूँ कि [[हिन्दू धर्म]] ही नहीं अपितु किसी भी धर्म अथवा संस्कृति की आलोचना से पहले, हमारा गहराई से अध्ययन करना अति आवश्यक है। मैं न तो अंधविश्वास की बात कर रहा हूँ और न ही यह कह रहा हूँ कि धर्म को विज्ञान की कसौटी पर न परखा जाय वरन् मेरा आशय मात्र इतना है कि किसी पौराणिक व्यवस्था का विवेचन देश-काल-परिस्थिति को दृष्टिगत रखकर होना चाहिए। |
इस बार इतना ही... अगली बार कुछ और... | इस बार इतना ही... अगली बार कुछ और... |
Latest revision as of 14:58, 3 March 2015
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|fesabuk par bharatakosh (nee shuruat) bharatakosh bharat ki jati-varn vyavastha -adity chaudhari bharatiy prachin, brahman-sanatan-hindoo dharm-sanskriti aur pauranik granthoan par, jativadi varn vyavastha ke karan anek arop lagae jate haian. visheshakar manusmriti ko sabase adhik laanchhit kiya jata hai. svayan maian bhi jati aur dharmik bhedabhav ko bahut napasand karata hooan kintu kya yah poornat: sahi hai? |
tika tippani aur sandarbh
pichhale sampadakiy
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