गोपाल वर्मन: Difference between revisions

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*[[शंकर वर्मन]] के बाद गोपाल वर्मन [[कश्मीर]] का शासक हुआ।  
*उसके शासन काल में कश्मीर में चारों ओर अव्यवस्था एवं अशान्ति की स्थिति व्याप्त हो गयी।  
*उसके शासन काल में कश्मीर में चारों ओर अव्यवस्था एवं अशान्ति की स्थिति व्याप्त हो गयी।  
*इसका फ़ायदा उठाकर 939 ई. में [[ब्राह्मण]] कुल में उत्पन्न यशस्कर ने कश्मीर की सत्ता ग्रहण किया।  
*इसका फ़ायदा उठाकर 939 ई. में [[ब्राह्मण]] कुल में उत्पन्न यशस्कर ने कश्मीर की सत्ता ग्रहण किया।  
*इस प्रकार उसके शासन काल में शान्ति व्यवस्था की स्थिति पुनः कायम हो सकी।  
*इस प्रकार उसके शासन काल में शान्ति व्यवस्था की स्थिति पुनः क़ायम हो सकी।  
*948 ई. में यशस्कर की मृत्यु के बाद उसका मंत्री 'पर्वगुप्त' सिंहासनारूढ़ हुआ।  
*948 ई. में यशस्कर की मृत्यु के बाद उसका मंत्री 'पर्वगुप्त' सिंहासनारूढ़ हुआ।  
*एक वर्ष के शासन के उपरान्त 950 ई. में उसके पुत्र 'क्षेमगुप्त' ने कश्मीर की राजगद्दी ग्रहण की।  
*एक वर्ष के शासन के उपरान्त 950 ई. में उसके पुत्र 'क्षेमगुप्त' ने कश्मीर की राजगद्दी ग्रहण की।  
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*पति क्षेमेन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद रानी दिद्दा ने शासन की वागडोर संभाली।  
*पति क्षेमेन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद रानी दिद्दा ने शासन की वागडोर संभाली।  
*उसने लगभग 50 वर्षो तक कुशलता से कश्मीर पर शासन किया।  
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Latest revision as of 14:16, 29 January 2013

गोपाल वर्मन ने 902 से 904 ई. तक शासन किया। शंकर वर्मन के बाद गोपाल वर्मन कश्मीर का शासक हुआ।

  • उसके शासन काल में कश्मीर में चारों ओर अव्यवस्था एवं अशान्ति की स्थिति व्याप्त हो गयी।
  • इसका फ़ायदा उठाकर 939 ई. में ब्राह्मण कुल में उत्पन्न यशस्कर ने कश्मीर की सत्ता ग्रहण किया।
  • इस प्रकार उसके शासन काल में शान्ति व्यवस्था की स्थिति पुनः क़ायम हो सकी।
  • 948 ई. में यशस्कर की मृत्यु के बाद उसका मंत्री 'पर्वगुप्त' सिंहासनारूढ़ हुआ।
  • एक वर्ष के शासन के उपरान्त 950 ई. में उसके पुत्र 'क्षेमगुप्त' ने कश्मीर की राजगद्दी ग्रहण की।
  • उसने लगभग 958 ई. तक शासन किया।
  • इसका विवाह हिन्दुशाही वंश की राजकुमारी दिद्दा से हुआ था।
  • पति क्षेमेन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद रानी दिद्दा ने शासन की वागडोर संभाली।
  • उसने लगभग 50 वर्षो तक कुशलता से कश्मीर पर शासन किया।
  • 1003 ई. में रानी दिद्दा की मृत्यु के बाद उसके भतीजे संग्रामराज ने कश्मीर में लोहार वंश की स्थापना की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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