प्रार्थना समाज: Difference between revisions

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प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 ई. में [[ब्रह्मसमाज]] के नेता [[केशवचन्द सेन]] के निर्देशन में [[महाराष्ट्र]] में की गई।
'''प्रार्थना समाज''' की स्थापना वर्ष [[1867]] ई. में [[बम्बई]] में आचार्य केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से [[महादेव गोविन्द रानाडे]], डॉ. आत्माराम पांडुरंग, चन्द्रावरकर आदि द्वारा की गई थी। जी.आर. भण्डारकर प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे। प्रार्थना समाज का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि, [[विधवा विवाह|विधवा-विवाह]], स्त्री शिक्षा आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना था।
===विचार एवं कर्तव्य===
==प्रचार-प्रसार==
ब्रह्म समाजियों के विपरीत प्रार्थना समाज के सदस्य अपने को हिन्दू मानते थे। वे [[एकेश्वरवाद]] में विश्वास करते थे और महाराष्ट्र के [[तुकाराम]] तथा [[रामदास]] जैसे महान संतों की परम्परा के अनुयायी थे। उन्होंने अपना मुख्य ध्यान हिन्दुओं में समाज सुधार के कार्यों, जैसे सहभोज, अंतर्जातीय विवाह, विधवा विवाह, अछूतोद्धार आदि में लगाया। प्रार्थना समाज ने बहुत से समाज सुधारकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसमें जस्टिस [[महादेव गोविन्द रानाडे]] भी थे। मुख्य रूप से उनके प्रयत्न से प्रार्थना समाज की ओर से '''दक्कन एजुकेशन सोसाइटी''' (दक्षिण शिक्षा समिति) जैसी लोकोपकारी संस्थाओं की स्थापना की गई।
प्रार्थना समाज संस्था के सहयोग से [[कालान्तर]] में दलित जाति मंडल, समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा की स्थापना हुई। [[पंजाब]] में इस समाज के प्रचार-प्रसार में दयाल सिंह के प्रन्यास ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। दक्षिण [[भारत]] में विश्वनाथ मुदलियर के नेतृत्व में ‘वेद समाज’ का नाम बदल कर ‘दक्षिण भारत ब्रह्मसमाज’ रखा गया।
==सुधार कार्य==
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प्रार्थना समाज की स्थापना वर्ष 1867 ई. में बम्बई में आचार्य केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेव गोविन्द रानाडे, डॉ. आत्माराम पांडुरंग, चन्द्रावरकर आदि द्वारा की गई थी। जी.आर. भण्डारकर प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे। प्रार्थना समाज का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरुष विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा-विवाह, स्त्री शिक्षा आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना था।

प्रचार-प्रसार

प्रार्थना समाज संस्था के सहयोग से कालान्तर में दलित जाति मंडल, समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा की स्थापना हुई। पंजाब में इस समाज के प्रचार-प्रसार में दयाल सिंह के प्रन्यास ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। दक्षिण भारत में विश्वनाथ मुदलियर के नेतृत्व में ‘वेद समाज’ का नाम बदल कर ‘दक्षिण भारत ब्रह्मसमाज’ रखा गया।

सुधार कार्य

ब्रह्मसमाजियों के विपरीत प्रार्थना समाज के सदस्य अपने को हिन्दू मानते थे। वे एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे और महाराष्ट्र के तुकाराम तथा गुरु रामदास जैसे महान् संतों की परम्परा के अनुयायी थे। प्रार्थना समाजियों ने अपना मुख्य ध्यान हिन्दुओं में समाज सुधार के कार्यों, जैसे सहभोज, अंतर्जातीय विवाह, विधवा विवाह, अछूतोद्धार आदि में लगाया। प्रार्थना समाज ने बहुत से समाज सुधारकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसमें जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे भी थे। मुख्य रूप से जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे के प्रयत्न से प्रार्थना समाज की ओर से 'दक्कन एजुकेशन सोसाइटी' (दक्षिण शिक्षा समिति) जैसी लोकोपकारी संस्थाओं की स्थापना की गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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