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#'''डाक काँवर''' - डाक काँवरिया काँवर यात्रा की शुरुआत से [[शिव]] के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं। | #'''डाक काँवर''' - डाक काँवरिया काँवर यात्रा की शुरुआत से [[शिव]] के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं। | ||
#'''खड़ी काँवर''' - कुछ [[भक्त]] खड़ी काँवर लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी काँवर लेकर काँवर को चलने के | #'''खड़ी काँवर''' - कुछ [[भक्त]] खड़ी काँवर लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी काँवर लेकर काँवर को चलने के अंदाज़में हिलाते-डुलाते रहते हैं। | ||
#'''दांडी काँवर''' - ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब काँवर पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक [[महीने]] तक का वक्त लग जाता है। | #'''दांडी काँवर''' - ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब काँवर पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक [[महीने]] तक का वक्त लग जाता है। | ||
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thumb|250px|काँवर ले जाते काँवरिये काँवर बाँस का वह मोटा व लम्बा डण्डा, जिसके सिरे पर बंधे छींकों में वस्तुएँ रखी जाती हैं तथा जिसे कन्धे पर रखकर वस्तुएँ ढोते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि वह डण्डा जिसके सिरों पर टोकरियाँ बाँधते हैं तथा विशेष पर्वों पर उनमें गंगाजल आदि रखकर तीर्थयात्री ले जाते हैं। काँवरों में तीर्थयात्री पदयात्रा करते हुए हरिद्वार से गंगाजल लाकर कहीं शिवलिंग पर चढ़ाते हैं या पवित्र स्थानों पर छिड़कते हैं।
महत्त्व
ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किए जाने से शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। 'काँवर' संस्कृत भाषा के शब्द 'काँवांरथी' से बना है। यह एक प्रकार की बहंगी है, जो बाँस की फट्टी से बनाई जाती है। 'काँवर' तब बनती है, जब फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप की खुशबू, मुख में 'बोल बम' का नारा, मन में 'बाबा एक सहारा।' माना जाता है कि पहला 'काँवरिया' रावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को काँवर चढ़ाई थी।[1]
काँवरिया
काँवर उठाने वाले भगवान शिव के भक्तों को 'काँवरिया' कहते हैं। काँवरियों के कई रूप और काँवर के कई प्रकार होते हैं। उनके तन पर सजने वाला 'गेरुआ' मन को वैराग्य का अहसास कराता है। ब्रह्मचर्य, शुद्ध विचार, सात्विक आहार और नैसर्गिक दिनचर्या काँवरियों को हलचल भरी दुनिया से कहीं दूर भक्ति-भाव के सागर किनारे ले जाते हैं।
काँवर के प्रकार
- सामान्य काँवर - सामान्य काँवरिए काँवर यात्रा के दौरान जहाँ चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के दौरान काँवर स्टैंड पर रखी जाती है, जिससे काँवर जमीन से न छुए।
- डाक काँवर - डाक काँवरिया काँवर यात्रा की शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं।
- खड़ी काँवर - कुछ भक्त खड़ी काँवर लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी काँवर लेकर काँवर को चलने के अंदाज़में हिलाते-डुलाते रहते हैं।
- दांडी काँवर - ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब काँवर पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शिव का महिना सावन (हिन्दी) नवभारतटाइम्स। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2014।
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