मानमनोहर: Difference between revisions

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*यह शक्तिवाममार्गी थे। इन्होंने न्यायलक्ष्मीविलास नामक एक अन्य ग्रन्थ भी लिखा था, जो कि अब उपलब्ध नहीं है।  
*यह शक्तिवाममार्गी थे। इन्होंने न्यायलक्ष्मीविलास नामक एक अन्य ग्रन्थ भी लिखा था, जो कि अब उपलब्ध नहीं है।  
*मानमनोहर नामक ग्रन्थ में व्योमशिवाचार्य, न्यायलीलावतीकार श्रीवल्लभाचार्य, न्यायकन्दलीकार श्रीधराचार्य, भासर्वज्ञ, आनन्दबोध आदि आचार्यों का उल्लेख है।  
*मानमनोहर नामक ग्रन्थ में व्योमशिवाचार्य, न्यायलीलावतीकार श्रीवल्लभाचार्य, न्यायकन्दलीकार श्रीधराचार्य, भासर्वज्ञ, आनन्दबोध आदि आचार्यों का उल्लेख है।  
*चित्सुखाचार्य ने इनके मत का खण्डन किया है, अत: मानमनोहर के निर्माता वादिवागीश्वराचार्य चित्सुख (1200-1300 ई.) के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं।  
*[[चित्सुखाचार्य]] ने इनके मत का खण्डन किया है, अत: मानमनोहर के निर्माता वादिवागीश्वराचार्य चित्सुख (1200-1300 ई.) के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं।  
*इस ग्रन्थ का प्रकाशन षड्दर्शन-ग्रन्थमाला [[वाराणसी]] से हुआ।  
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*इस ग्रन्थ में निम्नलिखित दस प्रकरण हैं-  
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*इनकी अनुमान-प्रवणता का इनके उत्तरवर्ती अद्वैती आचार्य आनन्दानुभव ने पदार्थतत्त्वनिर्णय तथा न्यायरत्नदीपावली में एवं चित्सुखाचार्य ने तत्त्वप्रदीपिका में उपहासपूर्वक खण्डन किया है।  
*इनकी अनुमान-प्रवणता का इनके उत्तरवर्ती अद्वैती आचार्य आनन्दानुभव ने पदार्थतत्त्वनिर्णय तथा न्यायरत्नदीपावली में एवं चित्सुखाचार्य ने तत्त्वप्रदीपिका में उपहासपूर्वक खण्डन किया है।  
*मानमनोहर में शक्ति, सादृश्य, प्रधान और तमस् के पदार्थत्व का खण्डन किया गया हे। 'नीलं तम:' जैसे अनुभव को भ्रम की संज्ञा देते हुए वादिवागीश्वर कहते हैं कि यह उपचार मात्र है।  
*मानमनोहर में शक्ति, सादृश्य, प्रधान और तमस् के पदार्थत्व का खण्डन किया गया हे। 'नीलं तम:' जैसे अनुभव को भ्रम की संज्ञा देते हुए वादिवागीश्वर कहते हैं कि यह उपचार मात्र है।  
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Latest revision as of 12:33, 16 February 2011

वादिवागीश्वरविरचित मानमनोहर

  • मानमानोहर के रचयिता वादिवागीश्वराचार्य का समय लगभग 1100-1200 ई. माना जा सकता है।
  • यह शक्तिवाममार्गी थे। इन्होंने न्यायलक्ष्मीविलास नामक एक अन्य ग्रन्थ भी लिखा था, जो कि अब उपलब्ध नहीं है।
  • मानमनोहर नामक ग्रन्थ में व्योमशिवाचार्य, न्यायलीलावतीकार श्रीवल्लभाचार्य, न्यायकन्दलीकार श्रीधराचार्य, भासर्वज्ञ, आनन्दबोध आदि आचार्यों का उल्लेख है।
  • चित्सुखाचार्य ने इनके मत का खण्डन किया है, अत: मानमनोहर के निर्माता वादिवागीश्वराचार्य चित्सुख (1200-1300 ई.) के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं।
  • इस ग्रन्थ का प्रकाशन षड्दर्शन-ग्रन्थमाला वाराणसी से हुआ।
  • इस ग्रन्थ में निम्नलिखित दस प्रकरण हैं-
  1. सिद्धि,
  2. द्रव्य,
  3. गुण,
  4. कर्म,
  5. सामान्य,
  6. विशेष,
  7. समवाय,
  8. अभाव,
  9. पदार्थान्तरनिरास तथा
  10. मोक्ष।
  • इसमें बौद्धमत का खण्डन करते हुए अनुमानप्रधान युक्तियों से ईंश्वर, अवयवी और परमाणु की सिद्धि की गई है। इसमें आत्मनिरूपण के संदर्भ में आत्मा के ज्ञानाश्रयत्व का प्रतिपादन और अद्वैतमतसिद्ध ज्ञानात्मैकत्ववाद तथा अखण्डत्ववाद का खण्डन किया गया है।
  • मानमनोहर में दो ही प्रमाण स्वीकार किये गये हैं और वेद को पौरुषेय बताया गया है।
  • वादिवागीश्वर ने माता-पिता के ब्राह्मणत्व को पुत्र के ब्राह्मणत्व का नियामक माना है।
  • मानमनोहर में अप्रमा के दो भेद बताये गये हैं--
  1. निश्चयात्मक और
  2. अनिश्चयात्मक, तथा

संशय आदि का इन्हीं में अन्तर्भाव बताया गया है।

  • वादिवागीश्वराचार्य ने सभी पदार्थों की सिद्धि अनुमान से की है।
  • इनकी अनुमान-प्रवणता का इनके उत्तरवर्ती अद्वैती आचार्य आनन्दानुभव ने पदार्थतत्त्वनिर्णय तथा न्यायरत्नदीपावली में एवं चित्सुखाचार्य ने तत्त्वप्रदीपिका में उपहासपूर्वक खण्डन किया है।
  • मानमनोहर में शक्ति, सादृश्य, प्रधान और तमस् के पदार्थत्व का खण्डन किया गया हे। 'नीलं तम:' जैसे अनुभव को भ्रम की संज्ञा देते हुए वादिवागीश्वर कहते हैं कि यह उपचार मात्र है।

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