वाल्मीकि के अनमोल वचन: Difference between revisions
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[[चित्र:Valmiki-Ramayan.jpg|thumb|[[वाल्मीकि]]]] | |||
* शूरवीर व्यक्ति जलहीन [[बादल]] के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते। | * शूरवीर व्यक्ति जलहीन [[बादल]] के समान व्यर्थ गर्जना नहीं करते। | ||
* उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं। | * उत्साह, सामर्थ्य और मन से हिम्मत न हारना, ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गए हैं। | ||
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* जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। | * जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। | ||
* जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित मे लगी रहती है, उसी प्रकार राजा राष्ट्र को सत्य और धर्म मे लगाने वाला होता है। | * जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित मे लगी रहती है, उसी प्रकार राजा राष्ट्र को सत्य और धर्म मे लगाने वाला होता है। | ||
* लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे | * लोग झूठ बोलने वाले मनुष्य से उसी प्रकार डरते हैं जैसे सांप से। संसार मे सत्य सबसे महान् धर्म है। वही सबका मूल है। | ||
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। | * हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। | ||
* सेवा के लिए अर्पण किया गया बल हमेशा टिकेगा, वह अमर होगा। | * सेवा के लिए अर्पण किया गया बल हमेशा टिकेगा, वह अमर होगा। | ||
* धर्म से अर्थ | * धर्म से अर्थ उत्पन्नहोता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है। | ||
* राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है। | * राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा वैसा ही आचरण करने लगती है। | ||
* अच्छे स्वभाव वाले मित्र अपने घर के सोने चांदी अथवा उत्तम आभूषणो को अपने अच्छे मित्रो से अलग नहीं समझते। | * अच्छे स्वभाव वाले मित्र अपने घर के सोने चांदी अथवा उत्तम आभूषणो को अपने अच्छे मित्रो से अलग नहीं समझते। |