ज़रदोज़ी: Difference between revisions

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==ज़री के काम को क़ानूनी मान्यता==
==ज़री के काम को क़ानूनी मान्यता==
देश-विदेश में अपने बेहतरीन डिजाइनों के लिए मशहूर बनारस की साड़ी और ज़री के काम को भौगोलिक रुप से क़ानूनी संरक्षण मिल गया है। यह संरक्षण कपड़ा मंत्रालय के तहत कपड़ा समिति ने भौगोलिक संकेत क़ानून  1999 के तहत प्रदान किया है। समिति कपड़ा मंत्रालय के तहत एक संवैधानिक संस्था है। देश के इस परम्परागत खजाने पर घरेलू उत्पादकों और आयातकों द्वारा हमेशा अतिक्रमण किया जाता रहा है। इन उत्पादों की ऊँची कीमत और बाज़ार हिस्से को अतिक्रमण के ज़रिये उड़ा लिया जाता था। संरक्षण से बनारस के इन उत्पादों को देश और विदेश में विकास करने में मदद मिलेगी।<ref>{{cite web |url=http://www.cgnewsupdate.com/cnu/category_detail.php?id=230&typeid=5 |title=ज़री के काम को क़ानूनी मान्यता |accessmonthday=[[2 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=complete Grassroots news update|language=[[हिन्दी]]}}</ref>  
देश-विदेश में अपने बेहतरीन डिजाइनों के लिए मशहूर बनारस की साड़ी और ज़री के काम को भौगोलिक रुप से क़ानूनी संरक्षण मिल गया है। यह संरक्षण कपड़ा मंत्रालय के तहत कपड़ा समिति ने भौगोलिक संकेत क़ानून  1999 के तहत प्रदान किया है। समिति कपड़ा मंत्रालय के तहत एक संवैधानिक संस्था है। देश के इस परम्परागत खजाने पर घरेलू उत्पादकों और आयातकों द्वारा हमेशा अतिक्रमण किया जाता रहा है। इन उत्पादों की ऊँची कीमत और बाज़ार हिस्से को अतिक्रमण के ज़रिये उड़ा लिया जाता था। संरक्षण से बनारस के इन उत्पादों को देश और विदेश में विकास करने में मदद मिलेगी।<ref>{{cite web |url=http://www.cgnewsupdate.com/cnu/category_detail.php?id=230&typeid=5 |title=ज़री के काम को क़ानूनी मान्यता |accessmonthday=[[2 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=complete Grassroots news update|language=[[हिन्दी]]}}</ref>  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Revision as of 06:46, 18 August 2012

[[चित्र:Zardozi-Work.jpg|thumb|250px|ज़री का काम]] ज़री के कार्य को ज़रदोज़ी कढ़ाई कहते है। यह कार्य भारत में ऋग्वेद के समय से प्रचलित है। यह कार्य मुग़ल बादशाह अकबर के समय में और मज़बूत हुआ। लेकिन बाद में राजसी संरक्षण के अभाव और औद्योगिकरण के दौर में इसका पतन होने लगा। वर्तमान में यह कार्य फिर उभरा है। अब यह कार्य भारत के लखनऊ, भोपाल और चेन्नई जैसे कई महानगरों में हो रहा है। ज़रदोज़ी का नाम फ़ारसी से आया है, जिसका अर्थ है: सोने की कढ़ाई।[1]

ज़री

ज़री सोने का पानी चढ़ा हुआ चाँदी का तार है तथा इस तार से बने वस्त्र भी ज़री कहलाते हैं।

उद्योग के रूप में

भारत का ज़री उद्योग प्राचीन काल से विश्वविख्यात रहा है ओर यहाँ के बने ज़री वस्त्रों को धारण कर देश विदेश के नृपति अपने को गौरवान्वित समझते रहे हैं। काशी ज़री उद्योग का केंद्र रहा है। बनारस की प्रसिद्ध बनारसी सड़ियाँ और दुपट्टे शताब्दियों से लोकप्रिय रहे हैं। आज इनकी खपत, अमेरिका, ब्रिटेन और रूस आदि देशों में क्षिप्र गति से वृद्धि प्राप्त कर रही है। गुजरात वर्तमान भारतीय ज़री तार उद्योग का केंद्र है। इसके पूर्व काशी ही इसका केंद्र था। पहले चाँदी के तारों को सोने की पतली पत्तरों पर खींचकर सुनहला बनाया जाता था, किंतु विज्ञान को उन्नति ने इस श्रमसाध्य विधि के स्थान पर विद्युद्विश्लेषण विधि प्रदान की है। विदेश से आने वाले ज़री के तार इसी विधि द्वारा सुनहले बनाए जाते हैं और भारतीय विधि से बने तारों की अपेक्षा सस्ते भी होते हैं।

सूती वस्त्रों के लिए

अब ज़री शब्द का व्यवहार उभाड़दार अभिकल्प के बने सूती वस्त्रों के लिए भी होने लगा है। इन वस्त्रों के अंतर्गत पर्दे तथा बच्चों एवं स्त्रियों के पहनने के वस्त्र आते हैं। सूती ज़री वस्त्र दोनों ओर एक-सा या उल्टा सीधा होता है। इसके उल्टा सीधा होने पर ताने बाने कई रंग, विभिन्न संख्या और कई किस्म के हो सकते हैं। पर्दे के ताने-बाने की संख्या और किस्म में पहनने के वस्त्र की अपेक्षा कम विषमता होती है। [[चित्र:Zardozi-Work-1.jpg|thumb|250px|ज़री का काम करते कारीगर]]

हाथ द्वारा

ज़री के काम की ख़ासियत ये होती है कि ये काम हाथ से किया जाता है इसमें किसी भी तरह की मशीन का कोई इस्तेमाल नहीं होता है। हाथ से किया गया ये काम इतना बारीक़ और ख़ूबसूरत होता है कि कोई भी इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह सकता हाथ से की गई इस कारीगरी में एक डिजाइन को पूरा करने में कई-कई दिन लग जाते हैं। लकड़ी का अड्डा (फ्रेम) बनाकर उसमें सलमा-सितारे, कटदाना, कसब, नलकी, मोती, स्टोन आदि बड़ी सफाई से टांकते है।[2]

ज़री के काम को क़ानूनी मान्यता

देश-विदेश में अपने बेहतरीन डिजाइनों के लिए मशहूर बनारस की साड़ी और ज़री के काम को भौगोलिक रुप से क़ानूनी संरक्षण मिल गया है। यह संरक्षण कपड़ा मंत्रालय के तहत कपड़ा समिति ने भौगोलिक संकेत क़ानून 1999 के तहत प्रदान किया है। समिति कपड़ा मंत्रालय के तहत एक संवैधानिक संस्था है। देश के इस परम्परागत खजाने पर घरेलू उत्पादकों और आयातकों द्वारा हमेशा अतिक्रमण किया जाता रहा है। इन उत्पादों की ऊँची कीमत और बाज़ार हिस्से को अतिक्रमण के ज़रिये उड़ा लिया जाता था। संरक्षण से बनारस के इन उत्पादों को देश और विदेश में विकास करने में मदद मिलेगी।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

मेहरोत्रा, अजीत नारायण “खण्ड 4”, हिन्दी विश्वकोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, पृष्ठ संख्या- 400।

  1. Zardozi in India (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) Culture india। अभिगमन तिथि: 2 मई, 2011
  2. धुंधली पड़ रही है जरी कारीगरी की चमक (हिन्दी) (पी.एच.पी) जनोक्ति। अभिगमन तिथि: 2 मई, 2011
  3. ज़री के काम को क़ानूनी मान्यता (हिन्दी) (पी.एच.पी) complete Grassroots news update। अभिगमन तिथि: 2 मई, 2011

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